आपका-अख्तर खान

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24 सितंबर 2020

में अख़बार हूँ ,, वही अखबार जिसकी खबरों में ललकार थी , जिसकी खबरों में गाँधी की अहिंसा की हुंकार थी ,,, जिसकी क्रांति से भारत में आज़ादी की झंकार थी ,वही अख़बार में आज भी हूँ ,कल भी था

 में अख़बार हूँ ,, वही अखबार जिसकी खबरों में ललकार थी , जिसकी खबरों में गाँधी की अहिंसा की हुंकार थी ,,, जिसकी क्रांति से भारत में आज़ादी की झंकार थी ,वही अख़बार में आज भी हूँ ,कल भी था ,,जी हाँ में कल भी अख़बार था ,,आज भी अख़बार हूँ ,,बस अब में मालिक के इशारों पर चलता हूँ , अब मुझे में पत्रकार नहीं ,नौकरी करने वाले बेरोज़गार लोग काम करते है ,पहले मुझे खुद मालिक लिखा करता करता था ,, अब मुझे मुझमे काम करने वाले नौकर , मालिक की मर्ज़ी के मुताबिक़ लिखा करते है ,,, मुझे मालिक उसकी मन मर्ज़ी के मुताबिक़ इस्तेमाल करता है , मुझे लिखने वालों को बेचारों को कभी मेले लगाने पढ़ते है ,कभी गोष्ठियां करना पढ़ती है ,कभी कार्यक्रम करना पढ़ते है ,, बस मुझे में कागज़ होते है ,विज्ञापन होते ,है ,कुछ सरकारी खबरें , तो कुछ मेरे मालिक की मन मर्ज़ी की खबरे तो कुछ घटना , दुर्घटना की खबरें और हाँ ,धोखा धड़ी के विज्ञापनों से तो में भरा पढ़ा मिलता हूँ ,मुझे में ,नामर्दी की दवा ,,बाल उगाने की दवा , तिलिस्मी जादू ,, काला जादू ,वशीकरण मंत्र के विज्ञापन ही विज्ञापन है ,,जी हाँ में अखबार हूँ ,, में पत्रकार हूँ ,में इन दिनों संचार हूँ ,व्यापार हूँ ,,फिर भी हूँ तो , में अख़बार हूँ ,, पत्रकारिता के बच्चों को मेरे बदलाव के क़िस्से अब क्या पढ़ाये ,, मुझे में एक प्रथम पेज हुआ करता था ,जिसकी अहमियत देश में सर्वोच्च न्यायालय की तरह हुआ करती थी ,,मेरा प्रथम पृष्ठ विज्ञापन मुक्त , खबर युक्त हुआ करता था ,,इसमें फर्स्ट लीड खबर ,सेंड लीड खबर , प्रान्तीस बॉक्स , इनर बॉक्स ,,स्टीमर सहित कई महत्वपूर्ण स्थान , महत्वपूर्ण खबरों के लिए सुरक्षति ,आरक्षित हुआ करते थे ,और इन स्थानों पर मुझे में छपी एक खबर भी ,,देश भर में तहलका मचाकर सरकारें गिराने ,,सरकारें बनाने ,,अधिकारयों को निलंबित कर जेल भिजवाने के लिए काफी हुआ करती थी ,,लेकिन अब मेरा वोह प्रथम पेज , उसका डिस्प्ले खो गया है ,प्रथम पेज ,द्वितीय पेज ,तृतीय पेज विज्ञापन ही विज्ञापन , फिर कहीं चौथे पांचवे पेज पर ,खबरें ,,में कल भी अख़बार था आज भी अख़बार हूँ , बस फ़र्क़ इतना है ,आज विज्ञापन हूँ , व्यापार हूँ ,पत्रकारों के लिए रोज़गार हूँ ,,में सबसे तेज़ आगे बढ़ने वाला हूँ ,में सबसे ज़्यादा छपने वाला हूँ ,में सबसे ज़्यादा पढ़ा जाने वाला हूँ , मेरी यह खूबियां कोई दूसरा नहीं बताता , मुझे खुद को मेरे ही अख़बार में ,यह सब छापना पढ़ता है ,लिखना पढ़ता है ,विज्ञापित करना पढ़ता है ,, ज़रूरत पढ़ने पर दूसरे चैनलों पर इसका प्रसारण भी करवाना पढ़ता है , मुझ में काम करने वाले लेखक या चलो पत्रकार ही कह देते है ,,नौकरी करने वाले पत्रकार साहिब पर कोई विपत्ति आ जाए , तो कोई साथ नहीं देता ,,मुझ में मेरे यहाँ काम करने वाले के साथ होने वाली ज़्याददति की कहानी का प्रकाशन भी नहीं होता ,,मुझमें काम करने वाले को अगर कोई पुरस्कार मिल जाए ,,कोई प्रशंसनीय कार्य हो जाए ,तो उसकी मुझ में खबर तक नहीं होती ,यह तो छोड़िये जी , मेर लिए मुझे में खबर बनाते वक़्त अगर ,,, नोकरी करने वाले क़लमकार , या यूँ कहिये पत्रकार जी को कोई ठोक दे , अधिकारी अपमानित कर दे ,, तो में बेबस लाचार हो जाता हूँ , मुझमे मेरे साथ ,मेरा परिवार का सदस्य बनकर , मेरे लिए जान जोखिम में डालकर संघर्ष करने वाले का अपमान करने वाले के खिलाफ ,कोई खबर प्रकाशित नहीं होती ,कोई कार्यवाही ऐसे पत्रकार के पक्ष में खबर बनकर नहीं आती ,, मेरा कोई संगठन नहीं बस जेबी संगठन है ,, जिसे मेरे मालिक ही पालते है , पोसते है ,कुछ संगठन है भी तो बिमारी , पेंशन ,इलाज ,,भूखंड , चुनाव ,भवन पर क़ब्ज़ागीरी ,,हिसाब , किताब तक ही सीमित रहते है ,, , अब क्या बताऊँ पहले मुझे जो लिखते थे ,उनके आगे पीछे सरकारें चलती थीं ,मंत्री ,मुख्यमंत्री ,प्रधानमंत्री उनसे थर्राते थे ,लेकिन अब मुझ में काम करने वाले हर व्यक्ति के भाईसाहब है ,, पार्टी है ,विचारधारा है ,,कोई मंत्री जी का अघोषित प्रेस अटेची है ,कोई पार्टी का प्रवक्ता है , तो कोई कुंठा ग्रस्त होकर अपने भाईसाहब को हरा देने वाले नेता के पीछे क़लम लेकर पिल पढ़ा है ,,इतना सब कुछ है ,लेकिन फिर भी में अख़बार हूँ ,,, छोड़िये जी तेज़ी से बढ़ते लोगों की बातें ,छोड़िये जी ,उद्योपतियों की तरह सरकारों को एजस्ट करने वालों की बातें ,,फिर भी में तो अख़बार हूँ ,,लेकिन मेरा वुजूद है , मेरा ज़मीर है ,,मेरा अपना अनुभव है ,आज भी में ज़िंदा हूँ ,में छोटे , मंझोले समाचार पत्रों में ज़िंदा हूँ ,में साप्ताहिक ,पाक्षिक , मासिक ,सांध्य दैनिकों में ज़िंदा हूँ , इस वर्ग इस समूह के लोगों ने मुझे आज भी ज़िंदा कर रखा है ,,,मुझे बढ़ा कहकर चलाने वाले ,हज़ारों हज़ार रूपये वेतन लेकर जो नहीं लिख पाता , वोह जोखिम भरा निष्पक्ष लेखन , सिर्फ सैकड़ों के महनताने में ,ही मुझ छोटे से अख़बार में ,,सच को प्रकाशित कर ,मेरे स्वाभिमान को ज़िंदा रखता है ,,मुझे मज़बूती देता है ,मेरे वुजूद को ताक़त देता है ,,मुझे गौरवान्वित होने के कई बार यहीं छोटे अख़बार के ,,छोटे ,पत्रकार , जिन्हे बढे अख़बार ,मालिक ब्लेकमेलर तक कहने से नहीं चूकते ,, यही मेरे वुजूद को ज़िंदा रखते है ,, हाँ में अख़बार हूँ ,,मेरे प्रकाशन के लिए क़ानून है ,लेकिन अव्वल तो 1867 से आज तक उसे बदला नहीं गया ,,दूसरे कलेक्टर ,थानेदार , पुलिस की गुलामी में हूँ ,शीर्षक लोग ,फिर आपराधिक रिकॉर्ड की जांच करवाइये ,,ग्रेजुएट हो या नहीं ,,मंत्री बन जाओ ,विधायक बन जाओ ,लेकिन अख़बार के प्रकाशक हम नहीं बनने देंगे ,फिर घोषणा पत्र ,यानी ,अख़बार की सभी जानकारियों का विशेषीष्ट उल्लेख जिसकी पालना ज़रूरी है ,,उसका उलंग्घन ,, सुबह का प्रकाशन ,शाम का प्रकाशन ,डाक एडिशन ,मॉर्निंग एडिशन फिर आंचलिक प्रकाशन ,जिलेवार प्रकाशन ,अख़बार वही ,शीर्षक वही ,,घोषणा पत्र एक , लेकिन, प्रकाशक , सम्पादक को तीन साल की सज़ा के प्रावधान के बावजूद भी यह सब गड़बडियाँ ठाठ से चल रही है ,,फिर भी में अख़बार हूँ ,, शुक्र है सोशल मीडिया का जो मेरे वुजूद को फिर से इन्होने छोटे बढ़े से हठाकर ,बराबर का करने की कोशिश की है ,,में बढ़ा अख़बार हूँ तो मेरा डिजिटल अख़बार भी है ,चैनल भी है ,,लेकिन छोटा हूँ तो मेरी पी डी एफ फ़ाइल लोगों के लिए एक आकर्षक पठनीय है ,,उसकी कतरनें सोशल मीडिया पर सर्वाधिक लोकप्रिय होती है ,मुझे ख़ुशी होती है ,,अगर कोई बढे कथित अख़बार में प्रथम पेज पर खबरें प्रकाशित हो , लेकिन अब वोह ज़माना नहीं ,चुनाव ,,विज्ञापन ,व्यवसाय बढ़ाने के लिए झूंठे ,भ्रामक ,विज्ञापनों की पार्टनरशिप ,खुद की विज्ञापन एजेंसियां ,सरकारी विज्ञापनों में भी कमीशन ,, सभी कुछ तो बिगाड़ मुझे में है ,,निगम ,न्यास ,वक़्फ़ जो भी हो सभी सम्पत्तियों पर पर्तिस्पर्धा के विज्ञापन में , में शामिल नहीं तो क्या मेरे मालिक तो शामिल है ,,, फिर भी में अख़बार था ,अख़बार हूँ ,अख़बार रहूँगा ,क्योंकि बढे तो वोह होते है ,जो दुनिया से लूट कर ,उसका राई बराबर एक हिस्सा लोगों के मनोरंजन पर खर्च कर देते है ,,बदले में चाहे वोह खबरों की तरह सिर्फ़ पम्पलेट ,प्रचार सामग्री ही परोसते हो ,खुद के निजी विचार परोसते हों ,लेकिन बढे से भी बढे वोह अख़बार भी होते है ,जिनके संवाददाता जान जोखिम में डालकर खबरे लाते है ,जो रोज़ स्थानीय विधायक ,मंत्री ,कलेक्टर , एस पी ,थानाधिकारी , छोटे बढे नेताओं से पंगा लेकर ,, लोगों के दुःख दर्द की वजह तलाशकर , उन्हें खत्म करने की खबरें प्रकाशित करते है ,भ्रष्टाचार उजागर करते है ,सट्टे , जुएं की खबरें देते है ,, ऐसा नहीं के कोई विज्ञापन दाता कोचिंग ,, अस्पताल या कोई भी ,,बढे बढ़े से बढ़ा अपराध कर दे ,इनकम टेक्स छापे पढ़ जाए तो एक निजी अस्पताल ,एक निजी संस्थान प्रकाशित कर खबर की इतिश्री करे ,,या खबर ही न दें ,,, और अगर एक गली छाप सटोरिये को थानेदार जी पचास रूपये के साथ पकड़े , तो उसका नाम ,बाप का नाम , आयु ,जाती , पता वगेरा सब मुझे में पूरी जानकारी के साथ यह लोग छाप रहे है ,, खेर फिर भी में अख़बार था ,अख़बार हूँ ,अख़बार रहूँगा ,,मुझ में एक बार फिर देख लेना ,क्रान्ति आएगी ,ज़रूर आएगी ,, क्योंकि में अख़बार हूँ मुझमें आज भी हिन्दुस्तानियों का दुःख दर्द पलता है , मुझमें आज भी हिन्दुस्तानियों को इंसाफ की जंग में ,उन्हें हारते हुए देखने का दुःख है ,तकलीफ है ,,में ज़िंदा हूँ ,में ज़िंदा रहूंगा ,एक बार फिर मेरा स्वाभिमान जागेगा ,में फिर से एक नए हिंदुस्तान के लिए आदर्श हिंदुस्तान के लिए ,, मूल्यों की राजनीती के लिए , मुझे में खबरें ,लेख ,, प्रकाशित होते हुए देखूंगा , तुम भी देख लेना ,लेकिन ये में अकेला नहीं ,तुम्हे भी मेरे साथ मिलजुलकर इसके लिए अभियान चलाना है ,तब कहीं चलकर यह सब मुमकिन हो पायेगा ,क्योंकि में अख़बार हूँ ,मुझे फिर से अख़बार बनकर ,इस देश को ,इस हिंदुस्तान को काले अंग्रेज़ों से आज़ाद कराना है ,,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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