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26 सितंबर 2020

कोटा सहित राजस्थान के विभिन्न ज़िलों की क़ानून अव्यवस्था से स्पष्ट है के राजस्थान की पुलिसिंग पूर्व रूप से विफल है ,इस मामले में ,राजस्थान के मुख्यमंत्री ने गंभीरता से लेते हुए हाल ही में राजस्थान के हर ज़िले के पुलिस अधिकारीयों की खिंचाई कर आवश्यक निर्देश दिए थे ,

 कोटा सहित राजस्थान के विभिन्न ज़िलों की क़ानून अव्यवस्था से स्पष्ट है के राजस्थान की पुलिसिंग पूर्व रूप से विफल है ,इस मामले में ,राजस्थान के मुख्यमंत्री ने गंभीरता से लेते हुए हाल ही में राजस्थान के हर ज़िले के पुलिस अधिकारीयों की खिंचाई कर आवश्यक निर्देश दिए थे , लेकिन चैंबरों में बैठे अधिकारी ,आम जनता से ,शिकायतकर्ताओं से खुद की दूरी बनाकर ,बिचोलियों को उनके हवाले कर ,मज़े कर रहे है ,और पुलिस विभाग में जो लापरवाही ,,अव्यवस्था का नज़ारा है यह सब इसी का  नतीजा है ,,, राजस्थान सरकार को इस मामले में खासकर कोटा शहर के मामले में गंभीर क़दम उठाने की ज़रूरत है ,, वैसे तो जब जब भी ,, हेलमेट ,,चेकिंग , वाहन चेकिंग अभियान की खुली छूट होती ,है तो ट्रेफिक पुलिस ,होमगार्ड ,,सहित थानों की आधी पुलिस इसी काम में लग जाती है ,और थानों का बीट निरीक्षण , गश्त सिस्टम सहित कई व्यवस्थाएं गड़बड़ा जाती है ,,थानों का यह हाल है के ट्रिपल तलाक़ क़ानून के गैर जमानतीय अपराध जैसे मामले में थानों पर ही , नयापुरा पुलिस ने ज़मानत ले ली है ,इतना ही नहीं पुलिस अधीक्षक कोटा नगर ने इस मामले में थानाधिकारी के खिलाफ कार्यवाही के स्थान पर इसे विधि सम्मत ठहरा दिया जबकि यही हाल ,, पुलिस उप महानिरीक्षक का इस घटना में ,,पुलिस के खिलाफ कार्यवाही एक्शन की जगह पुलिस का समर्थन का रहा है ,,,ऐसे ही पिछले दिनों एक मामले में एस सी एस टी एक्ट मामले में भी ,,थाने में ही ज़मानत स्वीकार करने को लेकर अदालत में सरकारी वकील ने ऐतराज़ जताया था ,,, घटनाये होती है ,,पुलिस उन घटनाओं का अनुसंधान करती है ,, कार्यवाही करती है , लेकिन प्लाट ,, मकान ,ज़मीन जायदाद मामलों में पुलिस का अनुसंधान अलग रहता है ,बलात्कार के मामलों में ,एफ आर लगाने , और एफ आर  स्वीकार करवाने की समझौता प्रणाली का फार्मूला अलग है ,,,सामान्य अनुक्रम में फरियादी पक्ष की स्थिति , नियमित समीक्षा से ही सामने आना सम्भव है , लेकिन फरियादी की थाने में क्या स्थिति होती है ,सभी जानते है ,अगर थाने में फरियादी की सुनवाई नहीं होती , तो वोह पुलिस अधीक्षक के पास जाने के प्रयास में जब लगता है तो वहां , कार्यालय के बाहर पहले से ही बेरियर बिठाये गए है ,बाहर क्या परिवाद लाये हो ,क्यों मिलना चाहते हो ,हम सी आई से कह देंगे , इसमें तो बस यही होगा ,,फालतू बातें मत करों  , फिर आना ,साहब अभी नहीं मिलेंगे ,वगेरा वगेरा ,, बस फरियादी का हौसला पस्त हो गया ,इधर थानाधिकारी ,अनुसंधान अधिकारी को सुचना के तेरे खिलाफ शिकायत आयी थी ,टाल दी गयी , मान लीजिये कोई फरियादी हिम्मत करके अगर ,पुलिस अधीक्षक से मिल भी ले ,तो भी उसे रेस्पोंस नहीं मिल पाता , ,पुलिस अधीक्षक के पास जाने के बाद ,अनुंसधान में अगर लापरवाही का उदाहरण मिले तो तुरंत पत्रावली मंगाकर ,,ऐसे अनुसंधान अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही हुआ चाहिए , लेकिन बस परिवाद का रुक़्क़ा मिल गया ,, नियमानुसार कार्यवाही के निर्देश मिल गए ,, अनुसंधान अधिकारी वहीँ के वहीँ जमे है ,, अब अगर बेचारा फरियादी , हिम्मत करके पुलिस अधीक्षक की सुनवाई से असंतुष्ट होकर ,आई जी की पोस्ट पर बैठे डी आई जी साहब के पास जाता है ,तो वहां का भी नज़ारा ,बाहर ही रीडर साहब ,नियुक्त अधिकारी साहब ,क्यों आये ,किस्से मिलना है ,क्यों मिलना है , इसमें तो सही कार्यवाही हो रही है ,,ज़मानत ले ली तो क्या ,जमानतीय अपराध है वगेरा वगेरा , जैसे  कई  जुमले सुनकर फरियादी के कान पक जाते है ,हिम्मत करके अगर वोह फरियादी ,आई जी की कुर्सी पर बैठे डी आई जी साहब से मिलने की ज़िद कर बैठे ,और अगर उसको उनसे मिलने का सौभाग्य मिल जाए तो , वहां उसे तसल्ली जी जगह ,,, वही नीचे की कहानी जो अफसरों को पहले से ही पूर्वाग्रह से ग्रसित कर देती है ,सुनने को मिलती है ,,और वही रटा रटाया जवाब ,,  उस फरियादी को तोड़ देता है ,आखिर फरियादी कहा जाए ,,देश की  किसी भी पुलिस ने कोटा के अलावा ,,ट्रिपल तलाक़ मामले में जिसमे अदालत में ही ज़मानत के वक़्त ,फरियादी का पक्ष सुनकर ,मजिस्ट्रेट को ज़मानत लेने का निर्देश है ,उस मामले में नयापुरा पुलिस द्वारा ली गयी ज़मानत को ,पुलिस अधीक्षक ,पुलिस उप महानिरीक्षक ने यथावत स्वीकार किया ,अजीब बात है ना ,,पुलिस और अपराधियों की सांठगांठ , साथ में प्रॉपर्टी डीलिंग की पूरी तरह से , राजस्थान सरकार ,और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियो के निर्देशों के बावजूद भी छटनी नहीं हुई ,कोई सूचि ,पुलिस और आम अपराधियों या  प्रॉपर्टी डीलिंग ,या व्यवसायियों से सांठगांठ की तैयार नहीं की गयी ,,,तैयार भी हुई तो कोई कार्यवाही नहीं की गयी ,,घूम फिर कर वही अधिकारी , कोटा के अलग अलग थानों ,फिर प्रमोशन होने के बाद कोटा में ही चक्कर काटते देखे जाते है ,तर्क रहता है ,,यह कोटा के भूगोल को जानते है , कोटा से अपराधियों के सफाये में मदद मिलेगी , लेकिन हो उल्टा रहा है ,,इनके संबंध पुराने रिश्ते ,कहीं न कहीं पुलिसंग को नुकसान कर रही है ,,,कोटा में फ्रेश पुलिस अधिकारीयों की नियुक्ति की ज़रूरत है ,जबकि यहाँ फरियादी ,  अपराधियों  को झूठा फंसाने की शिकायत मामले में ,, पुलिस अधीक्षक स्तर पर सीधी व्यक्तिगत सम्पर्क सुनवाई का फार्मूला हो ,,पुलिस अधीक्षक से असंतुष्ट परिवादी ,,अपराध में फंसाने का शिकायत करता , सीधे पुलिस उप महानिरीक्षक ,,या पुलिस महानिरीक्षक जो भी हो उनसे सम्पर्क कर सके ,, बिचौलियों में रीडर ,,अधीनस्थ अधिकारीयों के पास तो बाद में मामला जाए पहले सीधे सुनवाई हो वरना जिसके खिलाफ शिकायत होती है , उसे सतर्क कर दिया जाता है ,,,, अनुंसधान में लापरवाही , ढील पोल करने वाले अनुसंधान अधिकारीयों को शिकायत मिलने पर मिलने पर फील्ड पोस्टिंग से हटाने का भी प्रावधान हो ,,, चार्जशीट निलंबन की भी कार्यवाही हो ,,,पुलिस , अपराधी ,,व्यापारी ,,प्रॉपर्टी डीलिंग की सांठ गांठ की सूचि सूक्ष्म अनुसंधान के साथ तैयार हो , और ऐसे लोगों के खिलाफ गंभीर कार्यवाही हो ,तभी कुछ बदलाव सम्भव है ,,, ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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