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29 अगस्त 2020

लोकडाउन लोकडाउन लोकडाउन , अगर बीमारी का यही इलाज है , तो फिर कोटा सहित पुरे देश में तीन माह के लोकडाउन के बाद ,, यह बिमारी खत्म हो जाना थी ,,

 लोकडाउन लोकडाउन लोकडाउन , अगर बीमारी का यही इलाज है , तो फिर कोटा सहित पुरे देश में तीन माह के लोकडाउन के बाद ,, यह बिमारी खत्म हो जाना थी ,, लोकडाउन से ज़्यादा यहाँ , इलाज की विश्वसनीयता ,रिपोर्ट की तत्काल  मोबाइल पर डिलीवरी , सहित कई विश्वसनीय उपायों की ज़रूरत है ,वरना दोहरे किरदार वाले  लोकडाउन बीमारियां फैलाने से ज़्यादा कुछ नहीं ,, कर्मचारी मूवमेंट ,स्कूल के सारे टीचर्स के मूवमेंट ,स्कूल में बढ़ी परीक्षाये ,, वगेरा वगेरा वगेरा यह सब  कोरोना नियंत्रण उपायों के मामले में सार्थक व्यवस्थाओं के नाम पर ,शतुरमुर्ग की तरह रेत  में मुंह छिपाने की तरह है ,,, ऐसे हालातों में लोकडाउन एक इलाज नहीं एक रोग हो गया है ,,आखिर कोन हैं वोह लोग जिनसे मशवरा करके ,, लोकडाउन की घोषणा की जाती है ,, क्या किसी गरीब मज़दूर ,किसी थड़ी होल्डर्स, कच्ची बस्तियों के प्रतिनिधि  के प्रतिनिधि उस बैठक में बुलाये जाते है ,गिनती के वी आई पी ,एयरकंडीशन से उठकर बैठक में चले जाते है ,ऐसे लोग जो कभी अस्पताल गरीबों के हालत देखने नहीं गए ,जिन्होंने मज़दूरों की भुखमरी की स्थिति नहीं देखी ,, जिन्होंने तत्काल बीमार होने वाले मरीज़ की लोकडाउन में आवाजाही में बाधाएं नहीं देखीं वोह लोग इस बैठक में क्यों जाते है ,, ,आखिर लोकडाउन के फैसले की बैठक में ,,लोगों को बुलाकर विचार विमर्श करने का क्राइटेरिया किया है ,,सिर्फ इस मेन लोग , जिनके पास कोरोना संक्रमण को रोकने , कम करने के उपायों में लोकडाउन के अलावा कोई भी दूसरा वैकल्पिक सुझाव नहीं ,, बैठक में ,,कोरोना पीड़ितों की इलाज में कोताही ,देखरेख में कोताही पर चर्चा क्यों नहीं होती ,, कोरोना जांच के वक़्त जब , हर मरीज़ का या जिसकी जांच होती है उसका मोबाइल नंबर लिया जाता है , तो फिर कोरोना रिपोर्ट जांच के बाद रिपोर्ट पोजेटिव है , ,नेगेटिव है यह रिपोर्ट तत्काल उस मोबाइल पर क्यों नहीं भेजी जाती , क्वारेंटाइन सेंटर पर , इलाज के लिए अस्पतालों पर सामान्य मरीज़ों के अलावा ,गंभीर मरीज़ों ,हृदयरोगियों ,अस्थमा के रोगियों में भरोसा क्यों क़ायम नहीं हो रहा है , जो लोग ठीक होकर गए है ,, उनकी पूरी सूचि उनके ब्लड ग्रुप के साथ ,,प्लाज़्मा डोनेशन के लिए तैयार करवाकर सार्वजनिक क्यों नहीं की गयी ,, कई ऐसे सवाल है जो इस  कोरोना प्रबंधन मामले में हमे असफल साबित करता नज़र आता है ,, जांचों की संख्या बढ़ेगी , लोगों के सफर बढ़ेंगे , ट्रेनों में आरक्षण के साथ ,जांचें होंगी ,,सार्वजनिक जांचों में सरकारी दफ्तरों ,, या कॅरियर जैसी व्यस्थाओं में जांचों की संख्या होगी तो ,, पोजेटिव की संख्या भी बढ़ेगी ,, लेकिन इलाज तत्काल करवाने की व्यवस्था भी ज़रूरी है ,, अस्पतालों में स्टाफ की कमी ,डॉक्टरों के चौबीस घंटे कामकाज ,, चिढ़चिड़ापन ,, दूर करने के लिए अतिरिक्त चिकित्सक , अतिरिक्त स्टाफ ,दवाये ,बजट , वार्डों में बिस्तरे भी होना ज़रूरी है ,,,,व्यापार महासंघ कभी कहता है ,लोकडाउन करो ,कभी कहता है , लोकडाउन से नुकसान हो रहा है ,, कभी कहता है हम ज़बरदस्ती दुकाने खोलेंगे ,, ज़िले से बाहर आवाजाही रहेगी ,किराना ,डेयरी ,, मेडिकल , आटे की चक्कियां खुलेंगी , परीक्षाएं होंगी , स्कूलों में टीचर्स की उपस्थिति ,दफ्तरों में कर्मचारियों की उपस्थिति ज़रूरी रहेगी ,, तो फिर कितने प्रतिशत लोग रुके ,, थड़ी वाले ,खोमचे वाले ,दैनिक मज़दूर ,ठेले वाले ,सब्ज़ी वाले , ,बढे लोगों को तो इसका कोई नुक़सान नहीं है ,, व्यापारियों का फैसला था के अब व्यापारी खुद स्वेच्छिक जांच कराएंगे ,, कितने व्यापरियों ने , होटल कारोबारियों ने ,,खुद , की , खुद के कर्मचारियों की , सहयोगी कर्मचारियों की जांच करवाई , लोकडाउन हो गया न सभी व्यापार महासंघ की सूचि लेकर ,इस लोकडाउन में सभी की जांच कर ली जाए ,,अदालत में भी तो केम्प लगाकर ,वकीलों ,न्यायिक अधिकारीयों कर्मचारियों की जांच हो चुकी है ,,, तो जनाब शतुरमुर्ग की तरह अव्यवहारिक लोग ,  जिन्हे जनप्रतिनिधि समझा जाता है ,अगर वोह लोग ,, कोरोना के इलाज की व्यवस्था , मरीज़ों के खाने पीने की व्यवस्था ,, उनकी जांच होते ही ,, उनके मोबाइल नंबर पर तत्काल ,, कोरोना जांच पोजेटिव , नेगेटिव की सुचना पहुंचाकर उन्हें इधर उधर कोरोना फैलाने से रोकने की व्यवस्था ,जिनकी नेगेटिव रिपोर्ट है उन्हें मानसिक तनाव से बचाने की व्यवस्था , परीक्षाएं स्थगित करने का दबाव बनाने ,, स्कूलों में अध्यापकों की उपस्थिति , सरकारी दफ्तरों में अनावश्यक कर्मचारियों की उपस्थित रोकने की मांग क्यों नहीं उठाते ,अगर सही मायनों में लोकडाउन से संरकमण की चेन तोडना है तो यह सब करना होगा ,,,, लेकिन क्या हम ऐसा कर रहे है ,, प्रशासन के साथ बैठकों में ,सियासी भीड़ को तो साथ में रखो , लेकिन गरीब मज़दूरों के प्रतिनधियों ,थड़ी होल्डर्स के प्रतिनधियों ,कोरोना से प्रताड़ित लोगों के प्रतिनिधियों को भी उनके सुझाव लेकर शामिल करना ज़रूरी है ,, उनका दर्द भी तो सुनिए , उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्थाएं भी तो कीजिये , इंद्रा रसोई का खाना , उन मज़दूर , ग़रीबों तक पहुंचाइये ,, भामाशाहों से इंद्रा रसोई का जो खर्छ है वोह वाहन करने के लिए कहिये ,, गरीब को खाना भी मिले , मूवमेंट ज़ीरो मोबिलिटी हो ,तभी यह सब सभव है ,इलाज की गुणवत्ता बढे ,, इलाज का लाइव टेलीकास्ट अगर नहीं भी हो ,तो कमसे कम इलाज की समस्त गतिविधियों ऑडियो के साथ सी सी टी वी कैमरे में हो ताकि मरीज़ का अटेंडेंट उन्हें देखकर ,,इलाज के प्रति विश्वास जाग्रत कर सके ,,, लोकडाउन का फैसला सभी ने मिलकर लिया है ,सभी इस लोकडाउन की पालना करते रहे है ,आगे भी करेंगे ,लेकिन व्यवहारिक ज्ञान के साथ ,ऐसी गंभीर संक्रमित बीमारी के लिए व्यवहारिक फैसले भी  होना ही चाहिए ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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