आपका-अख्तर खान

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23 जुलाई 2020

मैं तो वकील हूं,

मैं तो वकील हूं,
ना खुद को ही समय देता हूं,
ना परिवार को अपना बना पाता हूं।
वकालत में ही खो जाता हूं,
मेरी किताबों की ही अपना बना पाता हूं।।
मेरा घर तरसता मेरी आहट को,
मैं हांफती काया से भी कचहरी चढ़ता हूं।
फैसला जानने को न्यायाधीश की भृकुटी पढ़ता हूं,
मोवक्किल के भले के लिए पटकथा भी गढ़ता हूं।।
ना गीत,ना ग़ज़लें और कव्वालियां सुनता हूं,
अपना सब कष्ट भूल जाता हूं ।
जब अंजान लोगों के मुख से,
उनकी पीड़ा की क्रीड़ा सुनता हूं।।
सताए हुए लोगो के दर्द को मैं जान लेता हूं,
मुस्कान लाने के तरीके को पहचान देता हूं।
मुफलिस जिंदगी में भी चमक नहीं खोता हूं,
मैं वकील ही हूं जो सभी को ज्ञान देता हूं।।
,,,,,झुझार।

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