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22 जुलाई 2020

जनता को समझ नहीं आता क्या सारा काला धन अखबार के जरिए सफेद किया जाता है

जैसे समाचार पत्र में काम करने वाले सभी लोग पत्रकारों की श्रेणी में नहीं आते,
उसी प्रकार न्यूज़ चैनलों रेडियो इंटरनेट पर काम करने वाले सभी लोग पत्रकारों की श्रेणी में नहीं आते,
अस्पताल के सभी कर्मचारियों को डॉक्टर कहने वालों की भी कमी हमारे देश में नहीं है,
शरीर को संचालित करने के लिए तंत्र mechanism की जरूरत होती है ,
पहले के जमाने में
कंपाउंडर साहब भी
डॉक्टर साहब की
तरह ही पूजे जाते थे,
वर्तमान में डॉक्टर भी स्वयंभू कसाई घोषित हो गए हैं,
इसी प्रकार पत्रकारों ने भी
अपनी पहले वाली छवि को चाटुकारिता के जरिए
धूमिल ही किया है।
पहले जनता पढ़ी-लिखी नहीं थी अखबार के जरिए जनता तक अक्षर ज्ञान भी पहुंचाया जाता था जनता को समझ में आने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए समाचारों के हेडिंग लगाए जाते थे।
संवाददाता भी शहर कोतवाल की तरह इज्जत रखता था,
कई भ्रष्टाचारी अधिकारी तो जनता के द्वारा अखबार में खबर छपवा देने के नाम से डरते थे
और ऐसे लोगों का काम पहले बिना फाइल पर नोटों का बंडल रखे निपटा देते थे,
पहले वही लोग समाचार पत्र
उद्योग में आते थे जो पढ़े-लिखे होने के साथ व्यवस्था परिवर्तन और समाज कल्याण की भावना मन में रखते थे।
पहले के समय में पत्रकारिता
स्वच्छ जीविका उपार्जन का
जरिया तो था ही ,
इसके साथ साथ समाज कल्याण शिक्षा और समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना से किया जाता था।
जिसके पास एक कलम खरीदने और दिमागी कौशल हो वह अखबार का संचालन खून पसीने की कमाई के लिए कर सकता था लेकिन वर्तमान हालात में प्रिंटिंग उद्योग अरबों रुपए का हो गया है बिना एक से पांच अरब रुपए खर्च करें आप किसी प्रदेश का अखबार का संचालन नहीं कर सकते।
स्वरोजगार के कई कोर्स कराए जाते हैं लेकिन किस प्रकार एक समाचार पत्र का मालिक बने
इस बारे में कोई भी संस्था दावे के साथ बच्चों को या विद्यार्थियों को शिक्षित नहीं करती
क्या पत्रकारिता एक सिद्धांतों पर चलने वाला उद्योग नहीं है।
साफ पता पड़ता है 12 से 18 पन्नों का अख़बार बिना किसी विज्ञापन के ना ही कोई अधिकारिक पाठक संख्या के नियमित किस आधार पर छप रहा है...
माना आपके पास एक मिठाई की दुकान है आप 100 किलो लड्डू रोज बनाते हैं
पर 20 किलो भी आपके नहीं बिकते हैं तो 100 किलो लड्डू बनाने के लिए जो कच्चा माल आप लाएंगे वह कितने दिनों तक अपनी जेब से खरीदकर लगा सकते हैं ?
जब जनता मिठाई खरीदने नहीं आएगी उसके बाद भी हलवाई या दुकानदार नियमित रूप से मिठाई बनाता रहे तो
जनता को समझ नहीं आता क्या सारा काला धन अखबार के जरिए सफेद किया जाता है
अपने दूसरे अन्य धंधों के लिए अखबार को तलवार या ढाल की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
तेलंगाना का मुख्यमंत्री देश की जनता को पूरे देश और दुनिया की जनता को क्यों बताना चाहता है कि उसने कोई सिंचाई की योजना लागू करी ?
पूरे देश के अखबारों में पूरे पूरे पन्नों के विज्ञापन दिए जाते हैं इतना पैसा यदि किसानों की समस्याओं को दूर करने में लगाया जाए तो समाधान जल्दी निकलेगा।
- दीपक अटल

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