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28 जुलाई 2020

तहज़ीब ,,क़ौमी एकता ,आज़ादी के नारों की बुलंदी की जुबान ,,उर्दू ,, खुद अपनी तहज़ीब है , इसमें ज़ुल्फ़ों ,कजरारी आँखों , होंठ ,की मंज़रकशी , ग़ज़लों की कहानी है ,तो आज़ादी के इंक़लाब की ,,इतिहास की रवानी है,,

तहज़ीब ,,क़ौमी एकता ,आज़ादी के नारों की बुलंदी की जुबान ,,उर्दू ,, खुद अपनी तहज़ीब है , इसमें ज़ुल्फ़ों ,कजरारी आँखों , होंठ ,की मंज़रकशी , ग़ज़लों की कहानी है ,तो आज़ादी के इंक़लाब की ,,इतिहास की रवानी है,, उर्दू तहज़ीब की इसी सिफत को ज़िंदा रखने की कोशिश में रोज़ एक ग़ज़ल ,,रोज़ बदले हुए हालातों की अक्कासी पर लिखकर बचाने की कोशिशों में जुटे ,,मशहूर शायर शकूर अनवर ,, जी हाँ दोस्तों , कहने को उर्दू के उस्ताद ,, स्कूलों में उर्दू तहज़ीब समझाने पढ़ाने वाले गुरूजी ,दर्जनों , ग़ज़ल संग्रह के लेखक ,प्रकाशक , शकूर अनवर ,,यूँ तो किसी परिचय के मोहताज नहीं है ,,लेकिन जब उनके ग़ज़ल संग्रह के वर्क पलटते है ,,तो इनकी ग़ज़लों में कभी मोहब्बत की रवानी होती ,है तो कभी बेवफाई कहानी रहती है ,तो कभी हाज़िर हालात पर ,,तंज़ के साथ बेबसी , लाचारी की अक्कासी होती है , इन्होने उर्दू की हिंदी से दोस्ती करवा दी है ,शकूर हिंदी को उर्दू के ,साथ ,उर्दू को हिंदी लिपि में ,तो हिंदी को उर्दू अंदाज़ में लिखकर ,जज़्बातों को मुखर करते हुए ,,हिंदी की उर्दू से दोस्ती साबित करने में कामयाब शोधकर्ता रहे है ,, शकूर , यानी शुक्रिया , यह अपनी इस शायरी ,अपने इस हुनर की क़ाबलियत के लिए अल्लाह का शुक्र भी अदा करते है ,, तो यही शकूर अनवार बनकर ,,घटाटोप अँधेरे में इल्म ,अदब ,,तहज़ीब ऐ उर्दू की चकाचोंध फैला देने वाली खूबसरूत रौशनी का जलवा फैला देते है और शुक्र ,, रौशनी के साथ ,इल्म अदब के यह उस्ताद ,,शकूर अनवर के रूप में अपनी राष्ट्रव्यापी पहचान बना लेते है ,,तहज़ीबी मुशायरो , इल्मी नशिस्तों की रूह ऐ रवाँ , समझे जाने वाले भाई शकूर अनवर ,,,पढ़ते ,है पढ़ाते है ,लिखते है , लिखवाते है ,और उर्दू अदब ,उर्दू शायरी के उस्ताद कहलाते है ,,,उर्दू अदब के मास्टर डिग्री ,, यह शकूर , खुदा का शुक्र अदा करते ,है और अपने क़लम के इल्मी अदब की रौशनी के जलवों को चारो तरफ ख़बसूरती से बिखेर कर ,शकूर अनवर के रूप में उर्दू तहज़ीब के गुरु जी बन जाते है ,,अब सेवानिवृत्ति के बाद भी यह गुरु जी ,अदब ,इल्म ,शायरी के इस फन में रोज़ अपनी उस्तादी दिखा रहे है ,,,जी हाँ दोस्तों अब्दुल शकूर अंसारी ,,जो तहज़ीब ऐ उर्दू , इल्म अदब की दुनिया में ,शकूर अनवर है ,8 मार्च 1952 को यह चिराग कोटा में ही रोशन हुआ ,,,उर्दू लेक्चरर की खिदमात के बाद ,अब यह सिर्फ ,सिर्फ तहज़ीब की जुबां ,उर्दू में खुद को शामिल कर ,,उस तहज़ीब के प्रचारक बन गए है , शकूर अनवर ,, का हम समंदर , समंदर गए ,गज़ल संग्रह का प्रकाशन 1996 में उर्दू अदब की दुनिया में ,,सभी की ज़ुबान पर चढ़ गया ,, 2006 में शकूर अनवर ने महवे सफर के नाम से एक लघु पुस्तिका का प्रकाशन किया ,,2011 में माहिया संग्रह ,दरिया ,लहरें और किनारा ,,हर विषय पर अल्फ़ाज़ों की अक्कासी था ,,तहज़ीब की दुनिया से जुड़े ,अदब के प्रशंसकों ,इनकी ग़ज़लों के ख्वाहिश मंद लोगों की डिमांड पर ,, आँधियों से मुक़ाबला ही रहा ,, पथरीली झीलें ,गुमनाम से जज़ीरा ,,,और हमसे क़लम नहीं निकला ,,,यह तेरी गहराई नदी ,,शीशे का मकाँ ठीक नहीं ,,,रौशनी का नया सितारा ,, दे और बादल रथ , शीर्षकों से प्रकाशित ग़ज़लों के कई फोल्डर लोकप्रिय रहे ,, शकूर अनवर ,साहित्यिक संस्था ,विकल्प की काव्य पुस्तकों सहित ,अंसारी वेलफेयर सोसायटी की वार्षिक पत्रिका ,अंसारी दर्पण के सम्पादक भी करते रहे है , जबकि उर्दू , हिंदी की सैकड़ों पत्र , पत्रिकाओं में इनकी ग़ज़लों ,इनकी कविताये ,इनकी रचनाये ,इनके आलेखों का प्रकाशन होता रहा है ,,, रेडियो , दूरदर्शन सहित सैकड़ों अदबी मुशायरों में इनकी गज़ले ,,यादगार रही हैं ,, शकूर अनवर ,इनकी साहित्यिक समझ ,सूझबूझ ,लेखन ,ग़ज़ल की रवानगी के हुनर के चलते ,दर्जनों समाज सेवी संस्थाओं से पुरस्कृत हो चुके है ,, ,साहित्यिक संस्था ,विकल्प ,,अजुमन ऐ शेर ओ अदब , हम सुखंन ,, राजस्थान उर्दू अकादमी साहित्यिक गतिविधियों में सीधी सांझेदारी इनकी अदबी खिदमत की पहचान है ,,यह उर्दू साहित्य एकेडमी के सदस्य भी रहे ,, शकूर अनवर , मंज़िलो का निशान होना था ,एक फोल्डर में ,अपने प्रशंसकों को शायरी की सीख देते हुए लिखते है ,, अल्फ़ाज़ों का तख़्लीक़ी इज़हार , शायरी है ,,इसमें समाज के हालातों की अक्कासी ,होती है ,जो समाज के लिए आयना भी है ,समाज को एक राह दिखाने वाली भी है ,वोह कहते है ,उर्दू ,, हिंदी , हमारी सांझेदारी है ,सांझा विरासत है ,,तहज़ीब की जुबांन भी है ,तो इंक़लाब ,ज़िंदाबाद का जुनुन भी है ,, यह रूप ,रंग ,वफ़ा ,बेवफाई के क़िस्सा भी है ,तो भटके हुए लोगों के लिए एक रहबरी भी है ,,, शकूर अनवर अपने उर्दू अल्फ़ाज़ों की ,उर्दू ग़ज़लों की हिंदी से दोस्ती करवाते है ,,वोह उर्दू ग़ज़ल को हिंदी में भी लिखते है ,,प्रकाशित करवाते है ,, यही उनकी लोकप्रियता ,मक़बूलियत का मंत्र है ,,, वोह लिखते है ,चलो उनकी यादों में कुछ तो हुआ ,,चलो ,अपने शाम ओ सहर कट गए ,,, पेढों की कटाई के खिलाफ शकूर अनवर लिखते है ,, जो सर पे रहे बन के साया फ़िगन ,,, वो आँगन से अनवर शजर कट गए ,,, वोह दुआ करते है ,बना के ताजमहल ,जिनके हाथ कटते हों ,, तू ऐसे हाथों को पहले से बेहुनर कर दे ,, वोह इंक़लाब का नारा देते हुए लिखते है ,,सब्र की तलक़ीन आखिर कब तलक ,,, ज़ुल्म से घमासान होना चाहिए ,,सब तरह के फूल बस खिलते रहे ,, ऐसा हिंदुस्तान होना चाहिए ,, वोह लिखते है ,तुम्हे अपना कहूं तो कैसे अनवर ,,तुम्हारी राज़दारी और कुछ है ,,वोह लिखते है , यह किसी जम्हूरियत , ज़जींदगी में अवाम की हमने ,ऐसी हालत कभी नहीं देखी ,, जिस तरह लोग जी रहे है अभी ,,इसको जम्हूरियत कहें कैसे ,,चुप रहे भी तो अब रहें कैसे ,, इन हालातों को चुनौती पूर्ण शब्दों में , चुनौती देते हुए ,शकूर अनवर लिखते है ,,सूरत ऐ हाल ऐसी पहले भी ,,हमने बदली ,थी ,क्या वोह भूल गए ,, कैसे टूटे थे वोह फिरंगी महल ,कैसे तुर्रे गिरे कुलाहों के , किसी बदली थी ,ये ज़मींदारी ,कैसे तोते उड़े थे शाहों के , अब यह अंदाज़ है सियासत का ,एक चेहरा कई मुखोटों में ,,कोई सुनता नहीं गरीबों की ,वोट बदले हुए यही नोटों में ,, वो भी इक दोर था जो बदला था ,यह भी इक दोर है जो बदलेगा ,, दोस्ती की क़ीमत बयांन करते हुए शकूर अनवर लिखते है ,, दोस्ती हाट में नहीं मिलती ,, इसमें हम देखभाल क्या करते ,,, वोह लिखते है ,,आँधियों से मुक़ाबला ही रहा ,,टूट कर पेड़ से गिरे तो नहीं ,,शकूर अनवर सीख देते हुए लिखते है ,, दोस्ती में जो न बदल पाए ,,दुश्मनी भी न इस क़दर रखिये ,, ,, मोर के पाँव देखिये लेकिन ,,अपनी कमियों पे भी नज़र रखिये , मरतबे का लिहाज़ लाजिम है ,, ताज जैसा है ,वैसा सर रखिये ,, जिसकी दुनिया में आप रहते है ,, अपने दिल में भी उसका घर रखिये ,, किस ने समझा है तेरा गम अनवर , किसके काँधे पे अपना सर रखिये ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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