तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया।
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया ।
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ।
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया।
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया ।
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ।
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया।
इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ।
उस ने जिस को भी जाने का कहा बैठ गया।
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने।
इस पे क्या लड़ना फ़लाँ मेरी जगह बैठ गया।
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं।
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया।
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ।
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया।
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस।
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया।
#तहजीबहाफी
#आवारापंछी
उस ने जिस को भी जाने का कहा बैठ गया।
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने।
इस पे क्या लड़ना फ़लाँ मेरी जगह बैठ गया।
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं।
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया।
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ।
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया।
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस।
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया।
#तहजीबहाफी
#आवारापंछी

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