﴾ 21 ﴿ और कोई चीज़ ऐसी नहीं है, जिसके कोष हमारे पास न हों और हम उसे एक निश्चित मात्रा ही में उतारते हैं।
﴾ 22 ﴿ और हमने जलभरी वायुओं को भेजा, फिर आकाश से जल बरसाया और उसे तुम्हें पिलाया तथा तुम उसके कोषाधिकारी नहीं हो।
﴾ 23 ﴿ तथा हम ही जीवन देते तथा मारते हैं और हम ही सबके उत्तराधिकारी हैं।
﴾ 24 ﴿ तथा तुममें से विगत लोगों को जानते हैं और भविष्य के लोगों को भी जानते हैं।
﴾ 25 ﴿ और वास्तव, में आपका पालनहार ही उन्हें एकत्र करेगा[1], निश्चय वह सब गुण और सब कुछ जानने वाला है।
1. अर्थात प्रलय के दिन ह़िसाब के लिये।
﴾ 26 ﴿ और हमने मनुष्य को सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे बनाया।
﴾ 27 ﴿ और इससे पहले जिन्नों को हमने अग्नि की ज्वाला से पैदा किया।
﴾ 28 ﴿ और (याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहाः मैं एक मनुष्य उत्पन्न करने वाला हूँ, सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे से।
﴾ 29 ﴿ तो जब मैं उसे पूरा बना लूँ और उसमें अपनी आत्मा फूँक दूँ, तो उसके लिए सज्दे में गिर जाना[1]।
1. फ़रिश्तों के लिये आदम का सज्दा अल्लाह के आदेश से उन की परीक्षा के लिये था, किन्तु इस्लाम में मनुष्य के लिये किसी मनुष्य या वस्तु को सज्दा करना शिर्क और अक्षम्य पाप है। (सूरह ह़ा-मीम-सज्दा, आयत संख्याः37)
﴾ 30 ﴿ अतः उनसब फ़रिश्तों ने सज्दा किया।
﴾ 22 ﴿ और हमने जलभरी वायुओं को भेजा, फिर आकाश से जल बरसाया और उसे तुम्हें पिलाया तथा तुम उसके कोषाधिकारी नहीं हो।
﴾ 23 ﴿ तथा हम ही जीवन देते तथा मारते हैं और हम ही सबके उत्तराधिकारी हैं।
﴾ 24 ﴿ तथा तुममें से विगत लोगों को जानते हैं और भविष्य के लोगों को भी जानते हैं।
﴾ 25 ﴿ और वास्तव, में आपका पालनहार ही उन्हें एकत्र करेगा[1], निश्चय वह सब गुण और सब कुछ जानने वाला है।
1. अर्थात प्रलय के दिन ह़िसाब के लिये।
﴾ 26 ﴿ और हमने मनुष्य को सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे बनाया।
﴾ 27 ﴿ और इससे पहले जिन्नों को हमने अग्नि की ज्वाला से पैदा किया।
﴾ 28 ﴿ और (याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहाः मैं एक मनुष्य उत्पन्न करने वाला हूँ, सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे से।
﴾ 29 ﴿ तो जब मैं उसे पूरा बना लूँ और उसमें अपनी आत्मा फूँक दूँ, तो उसके लिए सज्दे में गिर जाना[1]।
1. फ़रिश्तों के लिये आदम का सज्दा अल्लाह के आदेश से उन की परीक्षा के लिये था, किन्तु इस्लाम में मनुष्य के लिये किसी मनुष्य या वस्तु को सज्दा करना शिर्क और अक्षम्य पाप है। (सूरह ह़ा-मीम-सज्दा, आयत संख्याः37)
﴾ 30 ﴿ अतः उनसब फ़रिश्तों ने सज्दा किया।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)