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13 अप्रैल 2020

सहमी सहमी है सडक पर जिंदगी

सहमी सहमी है सडक पर जिंदगी
हादसों ने की है दूभर जिंदगी .., विख्यात शायर चाँद शेरी की ग़ज़ल के कुछ अंश ,,आज प्रासंगिक है ,,उनके बारे में क्या लिखूं हैरान हूं में ,,,कहने को कुछ अशआर है यह ,,,बस तेरी खूबसूरती के ज़िक्र ने इसे ग़ज़ल बना दिया ,,,,,,एक ग़ज़ल जिसमे ज़ुल्फो ,,कजरारी आँखों का हवाला भी होता है तो एक ग़ज़ल जिसमे राष्ट्रभक्ति की हुंकार भी होती है तो ,, कोमी एकता का पैगाम भी होता है ,,,हमारा एक चाँद जिसकी बुलन्द आवाज़ में राष्ट्रीय एकता की एक रौशनी है ,,जिसके अशआरों में खुलूस है ,,मोहब्बत है राष्ट्रभक्ति है ,,,बस इसीलिए यह चाँद सूरज से भी टकराता है ,,,न गुरुब होता है ,,न छुपता है ,बस अपनी चांदनी की साहित्यिक रौशनी से मुल्क के अदब ,,अख़लाक़ को रोशन किये हुए है ,,,,दोस्तों एक चांद वोह है ,जो आसमान में इतराता है ,,जिसे देखकर ,,लोग ईद मनाते है ,,जिसे देखकर महिलाएं,, करवाचौथ का व्रत खोलती है ,,लेकिन एक चांद ,,,हमारा है ,,जो ज़मीन पर है ,,पुरख़ुलूस ,,अदब का खिदमतगार ,,अल्फाज़ो का जादूगर ,है ,,जिसके अल्फ़ाज़ों में क़ौमी एकता की रवानी है ,,तो राष्ट्रीयता की ज़िंदगानी है ,,जिसके बगैर हर मुशायरे ,,हर अदबी मजलिस की रौनक अधूरी है ,,,जी हाँ दोस्तों ,,,में बात कर रहा हूं ,,,,कोटा की गुदड़ी में छुपे लाल ,,विख्यात शायर,,, भाई चांद शेरी की ,,,जिनके अशआरों ने ,,,लोगो के दिलो को,,, छूकर ,,क़ौमी एकता के,,, तराने बनाए है ,,तो राष्ट्रीय एकता के अटूट संबंधों का,,,, फार्मूला इनके अल्फाज़ो में छुपा है ,,,,यह चांद,,, जब शेर कहता है ,,,तो सच,,, इनके अशआर,,, इनकी रोबीली आवाज़ में,,,लोगो को मुक़र्रर ,,मुक़र्रर ,,,वन्स मोर ,,,कहने पर मजबूर कर देते है ,,,,,चांद शेरी का अदब ,,साहित्य से रोज़गार का संबंध नहीं है ,,यह तो सिर्फ देश के लिए लिखते है ,,देश के हालात ,,,सुधारने के लिए लिखते है ,,खुद का स्टील फर्नीचर का ,,माशा अल्लाह बेहतरीन कारोबार है ,,और अपने कारोबार के वक़्त में से ,,चांद शेरी ,,अदबी महफ़िलो के लिए खूबसूरत अशआर ,,गज़ले ,,,गीत ,,नज़्मे लिखते भी है और पुरकशिश ,,पुरख़ुलूस आवाज़ में ,,,लोगो को सुनाकर ,,देश और क़ौमी एकता के बारे में उन्हें सोचने पर मजबूर भी करते है ,,,,चांद शेरी का पैगाम है ,,,दिलो में नफरत की सियासत को मिटाना है ,,,अमन-शांति भाईचारे का गीत गाना है ,,,जश्न ऐ आज़ादी हो या के हो गणतंत्र दिवस ,,,हमे तो घर घर में अब तिरंगा लहराना है ,,,,,एक आम हिन्दुस्तानी की दास्तां बयान करते हुए ,,चांद शेरी कहते है ,,,में गीता ,बाइबिल ,क़ुरआन रखता हूं ,,सभी धर्मो का में सम्मान रखता हूं ,,,यह मेरे पुरखो की जागीर है लोगो ,,,में अपने दिल में हिन्दुस्तान रखता हूं ,,,,,,,हिन्दुस्तान की संस्कृति के बारे में बयान करते हुए ,,चांद शेरी कहते है ,,,,में ही गंगा ,,में ही जमना ,,में ही चंबल का पानी हूं ,,,में ही दुर्गा ,,में ही रज़िया ,,में ही झांसी की रानी हूं ,,मेरे सीने में रहती है ,,नमाज़े और पूजा भी ,,,मेरी भाषा तो हिंद है ,, में तो हिन्दुस्तानी हूं ,,,,,देश की पवित्र मिट्टी का बखान करते हुए ,,चांद शेरी कहते है ,,,ये तुलसी ,,ये मीरा ,ये रसखान की मिट्टी है ,,ये गांधी ,ये बिस्मिल के बलिदान की मिट्टी है ,,यहीं गूंजती है , सदाए अमन चेन की ,,यही तो मेरे प्यारे हिन्दुस्तान की मिट्टी है ,,,,क़ौमी एकता संगम पर ,,चांद शेरी कहते है ,,वाहे गुरु ,,ओम अल्लाहु बोलते है ,,,वतन की मिट्टी को ,खुशबू बोलते है ,,हो भाषाये हमारी ,या मज़हब अलग ,,हम दिल से तो हिन्दी उर्दू बोलते है ,,,,,उनकी खुदा से इल्तिजा वह इस तरह पेश करते है ,,मन की सुंदरता ,,का जेवर दे मुझे ,,बस यही अनमोल गोहर दे मुझे ,,,ईद दिवाली मनाए मिल के सब ,,देखने को ऐसा मंज़र दे मुझे ,,,,,माहौल में नफरत फैलाने वालो का उन्हें मुंह तोड़ जवाब इस तरह से है ,,हम कभी मिट्टी से बगावत नहीं करते ,,,हम कभी लाशो की तिजारत नहीं करते ,,,हम वतन के खातिर बहा देते है अपना खून ,,,रहबरों जैसी हम सियासत नहीं करते ,,,,चांद शेरी दिल से चाहते है ,,,,कोई महफ़िल ऐसी भी सजाई जाए ,,,जिसमे प्यार की खुशबू फैलाई जाए ,,,मंदिर के कलश ,,मस्जिद की मीनारे बोली ,,अब तो मादर ऐ वतन की धुन सुनाई जाए ,,,8 जुलाई 1966 को कोटा में ही जन्मे ,,पले बढ़े ,,चांद शेरी को छात्र जीवन से ही शायरी का शोक रहा है ,,चांद शेरी लिखने वाले ,,छपने वाले ,,आकाशवाणी ,,टी वी पर प्रसारित होने वाले ,,और मुशायरो में लोगो की रूहे रवां बनकर ,,मुशायरा लूटने वाले दिलचस्प शायर है ,,,,अदब की महफ़िल सजाने वाले चांद शेरी ज़ाहिर है अदब के दायरे में है ,,यह सबसे मुस्कुरा कर मिलते है ,,विनम्रता इनकी दौलत है ,,इनकी ज़ुबान की चाशनी गेरो को भी अपना बनाने की कशिश रखती है ,,,चांद शेरी का प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह ,,ज़र्दे पत्ते हरे हो गए ,,,इतना मक़बूल हुआ के उसका दूसरा संस्करण भी निकलवाना पढ़ा ,,,चांद शेरी के बगैर हिन्दुस्तान का हर मुशायरा अधूरा है तो दूरदर्शन ,,आकाशवाणी पर इनके कार्यक्रम लगातार प्रसारित होते है ,,दर्जनों उर्दू अदब से जुड़ी किताबो का सम्पादन भाई चांद शेरी ने किया है ,,,हिन्दुस्तान की कोई ऐसी मैगज़ीन ,,कोई ऐसा अखबार ,,कोई ऐसा चैनल नहीं जहां इनकी ग़ज़लों का प्रकाशन ,, प्रसारण न हुआ हो ,,इनकी ग़ज़लों और साहित्य के प्रति समर्पण को देखते हुए ,,चांद शेरी को राजस्थान साहित्य द्वारा सुमनेश जोशी पुरस्कार से सम्मानित किया ,,जबकि डॉकटर भीम राव अम्बेडकर का फेलोशिप सम्मान ,,,जेमिनी एकेडमी हरियाणा का ग़ज़ल सम्मान ,,,नगरनिगम कोटा का क़ौमी एकता सम्मान ,,ह्यूमन रिलीफ सोसाइटी का मानवाधिकार लेखन सम्मान सहित कई दर्जन सम्मानों से इन्हे सम्मानित किया गया है ,चाँद शेरी का जन्म : 8 जुलाई 1966 को ज़िला झालावाड़ राजस्थान में,,,देश के जाने माने ग़ज़लकार,,,,,इनका कार्यक्षेत्र-,,देश की लगभग सभी पत्र–पत्रिकाओं में ग़ज़लें प्रकाशित,,,, आकाशवाणी जयपुर से ग़ज़लों का प्रसारण,, अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों तथा मुशायरों में सक्रिय भागीदारी,,,, राजस्थान की साहित्यिक संस्थाओं जैसे विकल्प‚ काव्य मधुवन‚ सारंग साहित्य समिति‚ हमसुखन‚ बज़्मे अदब‚ बज़्मे सुखन‚ ज्ञान भारती आदि के सदस्य,,,सम्मान व पुरस्कार-,,राजस्थान साहित्य अकादमी का वर्ष 2002 -2003 का 'सुमनेश जोशी' पुरस्कार, है आज के माहौल में यूँ तो उनकी ग़ज़ल प्रासंगिक है , लेकिन एक ग़ज़ल पेश है ,सहमी सहमी है सडक पर जिंदगी
हादसों ने की है दूभर जिंदगी ...
यूँ घिरी है दायरे में वक्त के
केद लगती है केलेंडर जिंदगी
रिस रहा है आदमी नासूर सा
सढ़ रही है कोड़ बन कर जिंदगी
हर तरफ गहरी नशीली साजिशें
बन गयी हर शाम तस्कर जिंदगी
झोंपड़ी में सांस लेना भी कठिन
और महलों में मुअत्तर जिंदगी
रह के उसने कातिल के शहर में
की बसर कलंदर जिंदगी ।
हों दिलों से दूर शेरी नफरतें
वरना होगी बद से बदतर जिंदगी ..,,एक चांद जो बेजान है उसे देख कर तो रोज़ हम मुस्कुरा देते है ,,लेकिन आज एक ऐसा चांद जो शेर भी लिखता है और शेर की तरह से दहाड़ता भी है ,,ऐसे शायर भाई चाँद शेरी को सलाम सेल्यूट ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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