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13 मार्च 2020

अल्लाह ने ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों को ऐसे स्वर्गों का वचन दिया है

71 ﴿ तथा ईमान वाले पुरुष और स्त्रियाँ एक-दूसरे के सहायक हैं। वे भलाई का आदेश देते तथा बुराई से रोकते हैं, नामज़ की स्थापना करते तथा ज़कात देते हैं और अल्लाह तथा उसके रसूल की आज्ञा का पालन करते हैं। इन्हीं पर अल्लाह दया करेगा, वास्तव में, अल्लाह प्रभुत्वशाली, त्तवज्ञ है।
72 ﴿ अल्लाह ने ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों को ऐसे स्वर्गों का वचन दिया है, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी, वे उनमें सदावासी होंगे और स्थायी स्वर्गों में, पवित्र आवासों का। और अल्लाह की प्रसन्नता इनसबसे बड़ा प्रदान होगी, यही बहुत बड़ी सफलता है।
73 ﴿ हे नबी! काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उनपर सख़्ती करो, उनका आवास नरक है और वह बहुत बुरा स्थान है।
74 ﴿ वे अल्लाह की शपथ लेते हैं कि उन्होंने ये[1] बात नहीं कही। जबकि वास्तव में, उन्होंने कुफ़्र की बात कही[2] है और इस्लाम ले आने के पश्चात् काफ़िर हो गये हैं और उन्होंने ऐसी बात का निश्चय किया था, जो वे कर नहीं सके और उन्हें यही बात बुरी लगी कि अल्लाह और उसके रसूल ने उन्हें अपने अनुग्रह से धनी[3] कर दिया। अब यदि वे क्षमा याचना कर लें, तो उनके लिए उत्तम है और यदि विमुःख हों, तो अल्लाह उन्हें दुःखदायी यातना लोक तथा प्रलोक में देगा और उनका धरती में कोई संरक्षक और सहायक न होगा।
1. अर्थात ऐसी बात जो रसूल और मुसलमानों को बुरी लगे। 2. यह उन बातों की ओर संकेत हैं जो द्विधावादियों ने तबूक की मुहिम के समय की थीं। (उन की ऐसी बातों के विवरण के लिये देखियेः सूरह मुनाफ़िक़ून, आयतः 7-8) 3. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मदीना आने से पहले मदीने का कोई महत्व न था। आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं थी। जो कुछ था यहूदियों के अधिकार में था। वह ब्याज भक्षी थे, शराब का व्यापार करते थे, और अस्त्र-शस्त्र बनाते थे। आप के आगमन के पश्चात आर्थिक दशा सुधर गई, और व्यवसायिक उन्नति हुई।
75 ﴿ उनमें से कुछ ने अल्लाह को वचन दिया था कि यदि वे अपनी दया से हमें (धन-धान्य) प्रदान करेगा, तो हम अवश्य दान करेंगे और सुकर्मियों में हो जायेंगे।
76 ﴿ फिर जब अल्लाह ने अपनी दया से उन्हें प्रदान कर दिया, तो उससे कंजूसी कर गये और वचन से विमुख होकर फिर गये।
77 ﴿ तो इसका परिणाम ये हुआ कि उनके दिलों में द्विधा का रोग, उस दिन तक के लिए हो गया, जब ये अल्लाह से मिलेंगे। क्योंकि उन्होंने उस वचन को भंग कर दिया, जो अल्लाह से किया था और इसलिए कि वे झूठ बोलते रहे।
78 ﴿ क्या उन्हें इसका ज्ञान नहीं हुआ कि अल्लाह उनके भेद की बातें तथा सुनगुन को भी जानता है और वह सभी भेदों का अति ज्ञानी है?
79 ﴿ जिनकी दशा ये है कि वे ईमान वालों में से स्वेच्छा दान करने वालों पर, दानों के विषय में आक्षेप करते हैं तथा उन्हें जो अपने परिश्रम ही से कुछ पाते (और दान करते हैं), ये (मुनाफ़िक़) उनसे उपहास करते हैं, अल्लाह उनसे उपहास करता[1] है और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
1. अर्थात उन के उपहास का कुफल दे रहा है। अबू मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि जब हमें दान देने का आदेश दिया गया तो हम कमाने के लिये बोझ लादने लगे, ताकि हम दान कर सकें। और अबू अक़ील (रज़ियल्लाहु अन्हु) आधा साअ (सवा किलो) लाये। और एक व्यक्ति उन से अधिक ले कर आया। तो मुनाफ़िक़ों ने कहाः अल्लाह को उस के थोड़े से दान की ज़रूरत नहीं। और यह दिखाने के लिये (अधिक) लाया है। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारीः4668)
80 ﴿ (हे नबी!) आप उनके लिए क्षमा याचना करें अथवा न करें, यदि आप उनके लिए सत्तर बार भी क्षमा याचना करें, तो भी अल्लाह उन्हें क्षमा नहीं करेगा, इस कारण कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और अल्लाह अवज्ञाकीरियों को मार्गदर्शन नहीं देता।

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