एक क़ाबिल शख्सियत ने मुझ मुर्ख को आज यूँ ,,समझाया ,, एक किसी भी सूबे के
खुसूसी हाकिम , हनुमान जी की तरह होते है ,,अपने लोगों की मदद ,कल्याण के
लिए ,,सूबे के हाकिम क्या क्या कर सकते है ,यह उन्हें याद दिलाना पढता है ,
वर्ना हाकिम को ,,हनुमान जी की तरह उनकी ताक़त की याद न दिलाओ ,तो यक़ीनन
उनका कोई क़ुसूर नहीं ,,उनके यह कहते ही ,मेने हमारे नो रत्नों का एक
पत्र मात्र तीन बिंदुओं वाला उनके हस्ताक्षर युक्त बताया ,, तो वोह फिर
हँसे ,फिर मुस्कुराये ,बोले ,इन्होने विधानसभा में तो कोई आवाज़ नहीं उठाई ,
कोई बात नहीं इनकी आवाज़ बैठी हुई होगी ,लेकिन क़लम में भी स्याही खत्म थी
,तभी तो 2013 में जी रहे है ,और माँगना भी इन्हे हक़ से ,,नहीं आया
,,मुनज़्ज़म तरीके से मांगने की लियाक़त हम में ही न हो तो देने वाले का क्या
क़ुसूर है ,,खेर बरी करने की उनकी यह अदा मुझे पसंद आ गयी ,,,और बस ,,,
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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