आपका-अख्तर खान

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05 फ़रवरी 2020

मेरे जुमलों से कोई बचा ही नहीँ

तुम अगर वोट देने का वादा करो
मैं यूं ही मस्त जुमले सुनाता रहूं ।
तुम मुझे देखकर सिर हिलाते रहो
मैं तुम्हें देखकर बड़बड़ाता रहूं ।
मैंने हाँकी हैं गप्पे हजारों मगर
इक शिकन तेरे माथे पे आई नहीँ
बेच डाला है मैंने सुनहरा वतन
एक उंगली भी तुमने उठाई नहीँ
तुम अगर अपनी गर्दन झुकाए रहो
मैं छुरी पीठ पीछे चलाता रहूं ॥
कोई हिन्दू मुसलमां या सिख जैन हो
मेरे जुमलों से कोई बचा ही नहीँ
भूलकर घर गृहस्थी की सब उलझनें
उनको मेरे सिवा कुछ जंचा ही नहीँ
तुम गधे की तरह बोझ ढोते रहो
मैं पिछल्ले पे चाबुक चलाता रहूं
मैंने वादे किए सैकड़ों रात दिन
पूरा करने की जहमत उठाई नहीँ
तुममें कितना गधापन है खुद देख लो
लुट गए अक्ल धेले की आई नहीँ
तुम परेशां रहो बिलबिलाते रहो
मैं जले पे नमक भुरभुराता रहूं ॥
मैं भला हूँ बुरा हूँ या चालाक हूँ
तुम हमेशा से बछिया के ताऊ रहे
रात दिन हल चलाकर न ग़ैरत जगी
चन्द पैसों में हरदम बिकाऊ रहे ।
तुम सदा अपनी ग़ैरत रहो बेचते
मैं यूं ही सबको उल्लू बनाता रहूं

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