दिल पर बोझ रखकर लिखना पढ़ रहा है ,,कोटा की खबर देने वाले कई पत्रकारों के
दिलों को धक्के लग रहे है ,पत्रकारिता की तरफ से उनकी अंतर्रात्मा उन्हें
कचोट रही है ,,पत्रकारिता के विज़न ,पत्रकारिता के मिशन को लेकर उनके खुद के
दिलों में प्रश्न चिन्ह है ,कोटा सहित पुरे देश में एक तो रोज़ी रोटी चलाने
वाले पत्रकार ,एक एन्जॉय करने वाले पत्रकार ,एक मानसिक और आत्मिक रूप से
पत्रकार सहित कई श्रेणियों में बनते पत्रकार है ,,बाक़ी पत्रकार तो ऐडजस्ट
कर लेते है ,, लेकिन कोटा सहित कई पत्रकार ऐसे है जिनके
पास सिर्फ विकल्प नहीं है , इसलिए वोह छटपटाते हुए इस क्षेत्र या फिर
संबंधित समाचार पत्र ,चैनल में पत्रकार ,स्टिंगर वगेरा वगेरा का काम कर
रहे है ,लकिन उनकी अंतर्रात्मा वर्तमान पत्रकारिता में उनकी खोजपूर्ण खबर
के रिजेक्शन को लेकर उनकी अंतर्रात्मा को रोज़ कचोटती है ,पत्रकार सैकड़ों
रूपये का पट्रोल जलाकर ,दो बीस लोगों से जानकारी प्राप्त कर ,घंटों की
महनत के बाद जब रचनात्मक ,या फिर कोई महत्वपूर्ण खबर बनाता है ,उसे लिखता
है ,आंकड़े जुटाता है ,फोटो जुटाता है ,,और यह खबर लिखकर अपने एडिटर को
प्रकाशित करने के लिए देता है ,सुबह वोह जब अखबार देखता है ,या खबर
प्रकाशन ,,प्रसारण के समय अपना चैनल देखता है तो मेहनत ,,ईमानदारी
,पत्रकारिता के मूल्यों पर आधारित तैयार की गयी उसकी खोजपूर्ण सटीक खबर
गायब मिलती ,है ,, कई बार अगर होती है तो ,उस खबर के साथ इतनी तोड़फोड़
,कांटछांट ,बलात्कार होता है की खबर का सेन्स ही न्यूसेंस में बदल जाता है
,, यह सही है के अख़बार मालिकों और चैनल हेड्स को इस तरह की जानकारियां नहीं
है , लेकिन इन खबरों में लोकल सम्पादन शैली ,लोकल निजी प्यार ,मोहब्बत ,
झुकाव ,गुस्सा ,,नाराज़गी का प्रभाव भी सम्पादित चयन में रहता है ,,अखबार
मालिकों ,चैनल हेड्स को ,खोजपूर्ण मेहनत कश ,, ईमानदार ,निष्पक्ष
पत्रकारिता को पुनर्जीवित करने के लिए ज़रूरी हो गया है ,की किस रिपोर्टर
ने कितनी खबर बनाकर सम्पादक को दी , मेहनत से तैयार की गयी उन खबरों में
से कितनी खबरे प्रकाशन करने से रोकी गयी ,इसके पीछे संपादन टीम की क्या
बहानेबाज़ी रही ,,काट छांट ,नामों की कांट छांट ,,एक व्यक्ति ,एक संस्थान
जैसे शब्द जोड़ने के पीछे क्या मंतव्य रहा ,इसकी पाक्षिक रिकॉर्ड के आधार
पर समीक्षा ज़रूरी है , वरना ओरिजनल पत्रकारिता की बगावत वर्तमान हालातों
में पत्रकारिता के भविष्य के लिए ,, लोकतंत्र के लिए ,,गरीबों के इन्साफ
की खबरों के लिए ,ठीक साबित नहीं होगी ,अख़बार मालिक ,वरिष्ठ पत्रकार
,वरिष्ठ ईमनादार सम्पादक इस मामले में विचार करे ,,और तनाव में रह रहे
लगातार रिजेक्शन की जाने वाली खबरों के खबरनवीसों के दिल की आवाज़ सुने
,उनकी मेहनत को ,उनकी खोजपूर्ण खबरों को प्रकाशन में स्थान देकर शाबाशी दे
,यारी ,दोस्ती ,तो अलग बात है , निभाते रहे ,,मालिक मना कर तो बात अलग
लेकिन खुद मालिक बनकर बेचारे खोजपूर्ण पत्रकारों की खबरों के पर कतरना
दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा ,,यह बगावत कभी अगर सोशल मीडिया की आवाज़ बनी
,ऐसे पत्रकारों ने अगर बाहर आकर ,अपनी आत्मकथाएं ,उनके साथ व्यवहार की
गाथाये लिखी ,तो हमाम में सफेद कॉलर वाले सम्पादक ,पत्रकारों की समाज में
दुर्गित के सिवा कुछ नहीं होगी ,और फिर पत्रकारिता का और नुकसान होगा ,,,
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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