कहते है ,किचन क्वीन ,किचन क्वीन होती है ,, पहले भी किचन क्वीन की
बीमारी का वक़्त था ,लकिन तब हम गुवाड़ी यानी पुराने मोहल्ले में रहते थे
,बाई भी घर जैसी थीं ,रिश्तेदार तो नहीं थे ,लेकिन प्यार था ,मोहब्बत थी
,,पता ही नहीं चला वक़्त निकल गया ,अब फिर एक माह के लिए बीवी की आँख के
ऑपरेशन के बाद सब्र शुक्र का आलम था ,लेकिन फ़र्क़ इतना था ,के इस बार
मोहल्ले में नहीं ,कॉलोनी में आकर रहने लगे थे ,जहां सब कुछ रिश्ते नाते
,बदले बदले से रहते है ,,,सच है ,लेकिन कड़वा है ,,मेस के खाने की सच्चाई
,अपने पराये का सुख दुःख ,रस्म ,रिवाज समझने का बहतरीन अनुभव अल्लाह ने इस
मौके पर दिया है ,, अल्लाह का शुक्र है , के पुरे एक महीने बाद ,,फिर से
घर का खाना ,,,खाने की ख़ुशी मिली है ,,शरीक ऐ हयात की आँख का ऑपरेशन था
,,सभी जानते है ,शरीक ऐ हयात वहमीली है ,सो ,वहमीले बाबा ने एक महीने तक
,,किचन में जाने की हड़ताल कर दी ,,क्या करते ,मजबूरी थी ,विकल्प टिफिन
व्यवस्था का लिया ,निकटम लोगों की मेस से टिफिन मंगाए ,फिर टेस्ट मन पसंद
नहीं था ,सो सोचा और अधिक नज़दीकी टिफिन व्यवस्थापक से टिफिन मंगवाया जाये
,लेकिन जैसे के तैसे रहे ,,, रोज़ अल्लाह का शुक्र करते ,सब्र शुक्र कर पेट
भरते ,,इस बीच एक नज़दीकी दोस्त ने ,खुद के हाथ से खाना बनाकर खिलाने का
लालच दिया ,लेकिन दावत देकर वोह ,उस दावत को अभी तक भूले हुए है ,निकटतम
,नज़दीकी रिश्तेदार भी है , एक रिश्तेदार को तो ,घर जैसा खाना बनाने के लिए
रो मेटेरियल लाकर बनाकर देने के लिए कहा ,,लकिन वोह भी बत्तीबाज़ साबित हुए
,,रोज़ मर्रा सब्र शुक्र कर पेट भरने से , खफा होकर रिश्तेदारों के ग्रुप
में ,दर्द बयांन किया ,खुदा का शुक्र है ,एक कसं मामी ने ,,घर पर रोज़ आकर
खाने की दावत देने की रस्म अदायगी की ,फिर दूसरी कंस मामी से ,सब्ज़ी बनाकर
देने की चुटकी लेने हुए कहा ,साथ में गारंटी भी दी ,के आप ज़रूर भूल जाओगे
और बहाने बाज़ी करोगे ,खेर वही हुआ जो कहा था वोह भूल गए ,उन्हें भी आज तक
याद नहीं आया है ,लेकिन अल्लाह का शुक्र है ,किचन क्वीन ,शरीक ऐ हयात फिर
से ,किचन मैदान में है ,,उनके हाथ की सब्ज़ी ,खाना एक महीने के बाद फिर से
मुंह लगा है ,,कुछ पेट भी भरा ,दिल भी भरा ,अल्लाह का शुक्र भी अदा हुआ
,,एक महीने का वनवास खत्म हुआ ,लेकिन अल्लाह से दुआ है के दुश्मन को भी ऐसी
मजबूरी न दे जो किसी को ,टिफिन मेस का बिना पसदं ,बिना विकल्प का खाना एक
यांत्रिक मशीन की तरह से खाने की सज़ा भुगतना पढ़े ,,में इस मजबूरी में एक
कड़वा सच नज़दीक से जान पाया के दूर दराज़ से आने वाले बच्चे ,जो डॉक्टर
,इंजीनियर बनने का सपना लेकर कोटा आते है ,,वोह घर से दूर कैसे इस मेस के
खाने से तृप्त होते होंगे ,,,खेर वक़्त निकल ,गया ,सब्र और शुक्र के साथ
,सभी तरह के व्यंजन का अनुभव मिला ,,यह सच भी जाना के किचन क्वीन ,क्यों
किचन क्वीन कहलाती है ,,उनके हाथों में ऐसा कोनसा टेस्ट होता है ,जिसे खाकर
,मन तृप्त हो जाता है ,,भूख खत्म हो जाती है ,और दिल दिमाग बेहतर रहता है
,,अल्लाह ने किचन क्वीन के एक माह का वनवास तो दिया ,लेकिन बहुत कुछ सबक़
सिखाया है ,खासकर मेरे सभी अपनों का भी शुक्रिया जो इस घड़ी में उन्होंने
मुझे इन सच्चे मगर कड़वे अनुभवों का लाभ लेने से वंचित नहीं होने दिया
,,अल्लाह फिर कभी ऐसे दिन न दुखाये ,एक बार फिर अल्लाह का शुक्र ,के अल्लाह
ने वोह एक माह का वनवास ,,खत्म कर ,दिया ,अल्लाह से दुआ के फिर यह दिन
अल्लाह न लाये किचन क्वीन तंरुस्त रहे ,,उनके हाथ का बना खाना ही ,,लज़्ज़त
देता रहे , क्योंकि एक माह में टिफिन सेंटर के खाने के सब्र शुक्र के बाद
,किचन क्वींन के हाथों के बने खाने की खुशी ,मेने मेरी प्यारी प्यारी सदफ
बिटिया के चेहरे पर देखी है ,मेरी अम्मीजान के चेहरे पर जो रोज़ टिफिन के
खाने का सब्र शुक्र था ,वोह बहु के हाथ के खाने के बाद फिर से एक नई चमक
,नई ताज़गी नज़र आयी है ,अल्लाह सभी पर रहम करे ,और दूर दराज़ से आया हुए
बच्चों ,बच्चियों को टिफिन मेस का सब्र शुक्र वाला खाना नहीं ,बेहतर से
बेहतर लज़ीज़ खाना मिले ऐसी मेरी दिली दुआ है ,अल्लाह क़ुबूल करे ,,, आमीन
,सुम्मा आमीन ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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