वोह भी क्या ,मेला , क्या दशहरा था ,जब वायली मेडम कोटा उमेद क्लब , के
बाहर स्थित खेल जो आज अवैध रूप से कमाई का ज़रिया बना हुआ है ,उस मैदान में
मेला लगा करता था ,फिर कोटा मेला दशहरा मैदान में ,हाथी से रावण के पुतले
धाराशाही हुआ करते थे ,फिर मेला बदला ,दशहरा बदला ,, कागज़ ,लकड़ी कमान का
रावण ,उसके रिश्तेदारों के पुतले बनाकर ,मंत्रियों ,नेताओं के ज़रिये उनका
दहन किया जाने लगा ,,हर बार रावण के पुतले बनाने ,,मेले की दुकाने
आवंटन ,ज़मीन आवंटन सहित कई मामलों में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे
,लेकिन वोह भी क्या दिन थे जब हम और हमारे दोस्त मेले में शैतानियां करते
थे ,कभी गुब्बारों के बीच हेयरबैंड रबड़ में आलपिन घुसाकर चलाते थे
,गुब्बारे फुट जाते थे कभी मूंगफली वाले से मज़ाक़ करते थे , कभी गजक तुलवाकर
रूपये देते वक़्त ,, गजक वाले को ,, हम तो फिर भी फायदे में है , जुमला
कहकर कन्फ्यूज़ किया करते थे ,,खूबसूरत प्रदर्शनियां ,बेहतरीन रंगारंग
कार्यक्रम ,बेहतरीन मुशायरा ,,कवि सम्मेलन ,हुआ करते थे ,, लेकिन आज दशहरा
क़ैदख़ाने में है ,,दशहरा के बाद का मेला फीका फीका सा है ,अव्यवस्था
,,भ्रष्टाचार की शिकायतों से आहत है ,,भाई भतीजावाद है ,, सर्कस सहित कई
रंगरग लुभावने कार्यक्रम गायब है ,प्रदर्शनियां मात्र दिखावा बन कर रह गयी
है ,चाट पकोड़ों के बाज़ार में काले कीड़ें ,महंगे सामान ,, अव्यवस्था और
मिलावट सहित बासी खान पान की शिकायतें है ,लोकल दुकाने है ,रंगारग
कार्यक्रम के नाम पर विशेषताएं गायब है ,, पशु मेला , किसान मेला रस्म बन
गया है ,,सभी तरफ से खुला खुला ,खूबसूरत सा मेला आज एक खुली जेल बन गया है
,सिर्फ चार दरवाज़े ,,दीवारों में क़ैद मेला दशहरा ,, एक जेल में होने वाले
किसी समारोह से अलग नहीं है ,,कवि हो ,शायर हो ,फिल्म स्टार नाइट हो
,राजस्थानी कवि सम्मेलन हो ,सभी कार्यक्रम तो ,मेल मिलाप ,सिफारिशों के
भेंट चढ़ गए है ,अतिरिक्त मनोरजन के नाम पर कुछ भी तो नहीं है ,अतिथियों के
सत्कार के तरीके बदल गए है ,,, बस एक ही रट ,, कोटा मेले दशहरे को
राष्ट्रिय मेले दशहरे का दर्जा ,दिलवाये कैसे दिलवाये ,मेला सिमट गया
,चारदीवारी में कार्यक्रम भेंट चढगये रिश्तेदारी में ,, मेहमानों को
इज़्ज़त देने ,कार्य्रकमों में निमंत्रण के तरीके खत्म ,बस अपने आप दुकान
वाले आ जाए ,खोमचे वाले आ जाए ,छुटपुट लोकल दुकानदार इधर उधर दुकाने लेकर
दूसरों को किराए पर देकर ,दुकाने चलाये ,जनता खुदबखुद भेड़ चाल की तरह आये
,,जनप्रतिनिधियों के साथ मेले दशहरे को आकर्षक बनाने का कोई विचार विमर्श
नहीं ,,सिर्फ जेबी जनप्रतिनिधि ,,बैठक की रस्म अदायगी से मेले दशहरे के
हालात आज बिगड़े भी ,सिमटे भी है ,,, खेर अब एक तरफ स्वायत शासन मंत्री
कोटा के ही नहीं हाड़ोती के ही नहीं ,राजस्थान के लोह पुरुष विकास पुरुष
शान्ति धारीवाल है ,तो दूसरी तरफ कोटा के लाडले कहे जाने वाले ,सांसद ओम
कृष्ण बिरला हिंदुस्तान की प्रमुख हस्तियों में ,, लोकसभा अध्यक्ष है ,,भाई
डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल इन हालातों को कोटा के लिए शुभ मानते हुए
,मांग भी रखते है के , कोटा मेला दशहरा राष्ट्रीय स्तर का घोषित अभी नहीं
तो फिर कभी नहीं ,,, परम्पराये छोड़िये ,,मेहमानों ,राजा ,, महाराजाओं से
ज़्यादा ,आम पब्लिक को मेहमान समझिये ,उन्हें इज़्ज़त दीजिये ,,कोटा मेले
दशहरे में डिस्काउंट योजनाए लाइए ,, बाज़ार बेहतरीन बनाइये ,कार्यक्रम ,,
मनोरंजन ,फ़िल्मी नाइट ,,कवि सम्मेलन , मुशायरों में बंदिशें हटाइये सच
बोलने ,सच सुनाने की इजाज़त दीजिये ,यह क्या बात हुई के राहत इन्दोरी अगर
कोई देश का कड़वे हालातों का सच अपने शेर में बयान करते है तो उन्हें कोटा
के मेले दशहरे से पाबंध कर दिया जाता है ,यह कोटा के चंद लोगों की वाक्
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोटने वाली सोच है ,और जो लोग नफरत भड़काते
है उन्हें सर पर बिठाया जाता है , क्योंकि वोह इस सोच के साथ है ,खेर जो
भी हो ,लेकिन अब न वोह मेला है ,न वोह दशहरा है बस एक नाम है ,एक रस्म है
,ऐसे में इन दिनों जब खुदा ने कोटा को लोकसभा अध्यक्ष और स्वायत्तशासन
मंत्री के रूप में विकास पुरुष का तोहफा दिया है ,,तब भी अगर हम इस मेले
को राष्ट्रिय स्तर का मेला घोषित नहीं करवा पाए ,, मेले को आकर्षक ,मनोरंजक
,,किफायती ,डिस्काउंट ,टैक्सफ्री जैसे बाज़ार का रूप नहीं दे पाए तो फिर यह
कोटा ,इस कोटा का इतिहास यहाँ के ज़िम्मेदारों कभी माफ़ नहीं कर सकेगा ,,,
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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