एक मामू , इस्हाक़ मामू ,, नेकी कर दरिया में डाल ,, कहावत को चरितार्थ
करने वाले ,अकेले मामू ,, जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ ,कोटा के
प्रसिद्ध व्यवसायी ,समाजसेवक , भाई अल्हाज इस्हाक़ मंसूरी की ,जिन्हे लोग
सेवाकार्यों और मोहब्बत का पैगाम देने वाला मददगार मानकर प्यार से मामू
कहकर भी बुलाते है ,जो आज जगत मामू बन गए है ,, इस्हाक़ भाई मंसूरी कहने को
तो व्यवसायी है ,लेकिन अपनी मसरूफियात में से थोड़ा वक़्त रोज़ , रोज़
,समाजसेवा के लिए भी निकालते है ,,इस्हाक़ मंसूरी रोज़ किसी न
किसी की ,मदद तो करते है ,लेकिन उनकी मदद का तरीक़ा ,इस्लामिक सलीक़े वाला
है , उनकी मदद के बारे में इस हाथ से मदद करने पर ,दूसरे हाथ को भी पता
नहीं चलता ,,यही बस उनकी खूबी ,,है , इसीलिए शायद अल्लाह की उन पर
नवाज़िश है , इस्हाक़ भाई मंसूरी ने अपने मंसूरी समाज को एक जुट कर ,
दहेज़ प्रथा को खत्म कर , कम खर्चे में शादी करने के लिए सामूहिक विवाह
सम्मेलन का संदेश दिया ,शुरू में उन्हें दिक़्क़ते आयी , लेकिन अब हर साल
इस्हाक़ भाई मंसूरी की अध्यक्षता में सैकड़ों जोड़ो का , निकाह क़ुबूल है ,,
की खुशियों के संदेश के साथ निकाह करवाने का सवाब इस्हाक़ मंसूरी और
उनकी टीम को जाता है ,, इस्हाक़ मंसूरी रामगंजमंडी क्षेत्र में ,कोटा और
आसपास के क्षेत्र में गुप्त तरीके से पढ़ने , लिखने वाले बच्चे ,,बच्चियों
की स्कूल फीस ,यूनिफॉर्म ,किताब कॉपियों की मदद भी करते रहे है , ,वोह
कई ज़रूरतमंदों की समाज की तरफ से और खुद की तरफ से मदद कर उनकी दिक़्क़तें
दूर करने की कोशिशों को कामयाब करते है ,, इस्हाक़ भाई मंसूरी ,करते तो
सभी की मदद है , लेकिन इसक ढिंढोरा भी नहीं पीटते है ,, उनके स्वभाव
में सूफियाना अंदाज़ भी ,है ,, वोह हर साल अपनी तरफ से कुछ ऐसे ज़िम्मेदार
लोग जो उमराह , हज पर जाना चाहते है , लेकिन आर्थिक मजबूरी की वजह से वोह
नहीं जा पाते है ,ऐसे लोगों को ,भाई इस्हाक़ मंसूरी हर साल हज ,, उमराह
पर भेज रहे है ,,,, मृदुल स्वभावी ,, मिलनसार ,,दूसरों की मदद का जज़्बा
रखें वाले इस्हाक़ मंसूरी अपने समाज के विकास और कुरीतियों के लिए तो
संघर्ष कर रही रहे है ,साथ ही ,क़ौमी एकता के पैगाम के साथ ,,दूसरे धर्म
से जुड़े लोगों में भी इनकी समाजसेवा में निष्पक्ष भाव की पहचान है ,,
सियासत में मज़बूत स्थिति होने पर भी ,भाई इस्हाक़ मामू ,सियासत से कोसों
दूर है ,, वोह सियासत में सक्रिय हिस्सेदारी तो नहीं बताते , लेकिन समाज
के किसी भी धर्म मज़हब के ज़रूरतमंद को जब वोह परेशांन देखते है तो खुद ब
खुद ऐसे ज़रूरत मंद के वोह तात्कालिक मददगार बन जाते है ,, लगातार
समाजसेवा से जुड़े रहने ,अपने समाज के अध्यक्ष पद पर रहकर हर साल सामूहिक
विवाह सम्मेलन की सफलताओं के बावजूद भी ,, कोई भी शख्स उनकी बेदाग छवि पर
ऊँगली नहीं उठा सका है ,, क्योंकि अधिकतम खर्च उनकी अपने जेब से होता है
,और जो आमद ,खर्च का हिसाब रजिस्टर है वोह सार्वजनिक रूप से समिति से जुड़े
लोगों के लिए हमेशा खुला रहता है ,, अपने कार्यक्रमों से मोहब्बत ,क़ौमी
एकता का पैगाम देने वाले भाई इस्हाक़ मंसूरी ,की मोहब्बत , ख़ल्क़ ऐ खिदमत
की यही अदा है ,के हर शख्स उन पर फ़िदा है ,, अल्लाह उनके इस सेवाभाव में
दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी दे ,और उनकी हर तरह की दीन ,, दुनिया
,शोहरत की दौलत में तरक़्क़ी करता रहे , इन्ही दुआओं के साथ मामू इस्हाक़
भाई मंसूरी को सलाम , सेल्यूट ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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