भाई हम जुम्मन मियां ,और हमारा समाज भी अजीब है ,,मेहनत करते है ,नारे
लगाते है ,,जीत के लिए ज़िंदगी रिश्तों को दांव पर लगाते है ,,जश्न मनाते है
,पागलों से भी ज़्यादा वफादारी निभाते है ,फिर जब हुकूमत में हमारे अपने
मौजूद होते है ,तो हुकूमत में शामिल लोगों के आगे,, हाथ पर हाथ , बाँध कर
खड़े हो जाते है ,कभी उनकी एक नज़र भर देख लेने को भी तरसते है ,कभी उनकी
नज़र के साथ ,मुस्कुराहट को तरसते है ,अगर ऐसा हो जाए,, तो खुद को सबसे
ज़्यादा क़िस्मत वाला समझकर, इतराने ,, लगते ,है अजीब हैं ना,,, सभी जुम्मन
मिया ,,हम अपना ज़मीर गिरवी रख देते है ,रोज़ ज़मीर को मरता हुआ देखते है
,,लेकिन उफ्फ नहीं करते ,अपने खुद के काम ,अपने परिवार और समाज के काम
बताने की हिम्मत तो हम में ,,है ही नहीं ,मस्जिद बनते हुए रुक गयी ,हमारी
हिम्मत नहीं, के मस्जिद मरम्मत की क़ानूनी सभी फोर्मलिटी होने के बाद भी,,
हमारी हिम्मत नहीं के अपने बंधे हुए हाथ ,गुलामी की मुद्रा ,क्या हुक्म है
मेरे आक़ा से हटाकर,, ज़रा मस्जिद की मरम्मत काम शुरू करवाने के लिए, सिफारिश
करवा दे ,,खेर कोई बात नहीं ,में एक किताब आयना लिख रहा हूँ ,उसमे तो
किरदार होंगे ,नाम होंगे ,खुलासा होगा ,लेकिन अभी सिर्फ,, वक्रोक्ति में
जुम्मन मिया और हमारे जुम्मन समाज के कुछ अनुभव,, ताज़ा अनुभव आप तक पहुंचा
रहा ,हूँ हो सकता है ,,आपके हौसले बढे ,हो सकता है ,ज़मीर जाग जाए ,हो सकता
है ,क्या हुक्म है मेरे आक़ा की जगह ,ज़िद से हक़ से हम अपने काम बताने लग जाए
,,हो सकता है ,हम हमारे अपने नेतृत्व से आँखों में आँखे डालकर ,हाथ पकड़ कर
अपना ,अपने भाई ,का अपने दोस्त ,कार्यकर्ता ,,समाज के किसी ,,साथी का काम
करवाने की हिम्मत जुटा ले ,हो सकता है इस वक्रोक्ति को लिखने वाले की
अंगुलियां काटने का कुछ लोग फरमान जारी करवा दे ,लेकिन कट जाने दो उँगलियाँ
,कहलाने दो बगावत ,,सच बोलना अगर बगावत है,, तो बगावत ही सही ,भाई एक
जुम्मन मिया की सुनिए ,,बारां के विधायक ,,बारां के मंत्री के नज़दीक है
,बहुत नज़दीक है ,उनके लिये जान छिड़कते है ,बस एक पत्र लिखवाना था ,बढे जोश
से दो जुम्मन मिया ने ज़िम्मेदारी ली, एक से एक जुम्मन मियां हाथ पकड़ कर
लिखवाएंगे ,दूसरे मंत्री सहित,, दो से दूसरे जुम्मन मिया लिखवाएंगे ,कहा
गया और प्रचार भी यही है ,,हमारा कहा नहीं टलता ,,हमने उनके लिए ज़मीन
आसमान एक किया ,है ,खेर एक बार पत्र की ड्राफ्टिंग गुमा दी ,फिर दूसरी बार
,तीसरी बार ,,चौथी बार ,पांचवीं ,,छटी बार ड्राफ्टिंग गायब,, एक महीना ,दो
महीना तीन महीना ,बात पांच महीने तक आ पहुंची ,लेकिन इन जनाब जुम्मन
भाईजानों की हिम्मत ही नहीं हुई के टेस्ट करते ,,,के जिनके लिए इन लोगों ने
दिन रात पसीना बहाया है ,जिनके आगे यह हाथ बांधे खड़े रहते है ,इनका अपना
किरदार है ,समाज में प्रभाव है ,इनके अपने समाज के यह प्रमुख पंच है ,फिर
समाज के वोट ,,इनके कहने से मिलते है ,फिर भी इन जुम्मन भाईजानों की पत्र
लिखने की,, कहने की हिम्मत अभी तक नहीं हो ,पायी ,खेर एक जुम्मन भाई का
ज़मीर जागा है ,ईद पर मिठास की जगह,,धोखा मिला फोन करना ,मिलना तो दूर ,फोन
तक नहीं उठाये गए दूसरी तरफ,, इन जुम्मन भाइजान को हर साल की तरह,, मुखालिफ
भाईजान ने याद दिलाया ,,हम ही आते है ,,आपके पास ईद मिलने आपके अपने
,,जिनके लिए पसीना बहाते हो ,देखो वोह तो आप से अलग थलग गायब है,, आपकी
खुशियों से दूर है ,,,, बात यही नहीं ,रुकी जुम्मन मिया से मुखालिफ पार्टी
के नेता ने,,, ईद मिलकर ज़बरदस्ती सिवय्यां खायीं और सामने ही,, उनके फोन
से जिनके लिए जुम्मन भाईजान ने कई झगड़े मोल लिए ,कई कामकाज छोड़कर अपना
पसीना बहाया ,उन दोनों भाईजानों ने ,,बार बार फोन करने पर इनका फोन तक
नहीं उठाया ,,बेचारे जुम्मन मियाँ ने इज़्ज़त बचाई ,अभी व्यस्त होंगे ,दुबारा
फोन कर लेंगे ,लेकिन जब रात गुज़रने पर भी फोन पलट कर ईद की मिठास की
मुबारकबाद का भी नहीं आया,,तो जुम्मन मिया सच में उदास हो गए ,ऐसे में अब
वोह ,जो पत्र लिखवाकर देने वाले थे ,,वोह तो गया पानी में ,,,एक जुम्मन
मिया उठते ही दस बजे है ,अब उनसे भी चार माह गुज़रने के बाद कोई उम्मीद हो
ही नहीं सकती ,,,,खेर अपने शहर की बात करूँ ,यहाँ के जुम्मन मिया अजीब है
,काम बताओ आप जाओ ,आप बात करो ,,खुद की हिम्मत नहीं ,,फिर कैसे जुम्मन
मियाँ है ,,भाई आप ,,,,,,,वफादारी ,गुलामी में हमे फ़र्क़ तो समझना ही होगा
,हम जैसे पागल जुम्मन मिया वफादारी में नंबर वन है ,बस वैसे जुम्मन मिया
नहीं हाथ बंधते नहीं अदब से अभिवादन के जुड़ते है ,,इसलिए खटकते है ,,एक
जुम्मन मिया ,,उनके साथ घूम फिरे रहे एक कार्यकर्ता से पत्र लिखवाने की
ज़िम्मेदारी ले चुके थे ,ओहदेदार है ,,वोह सामान्य कार्यकर्ता अब असामान्य
होकर विधायक जी बन गए ,लेकिन शायद हिम्म्मत नहीं हुई ,इसलिए उन तक पत्र का
मसवदा ही नहीं पहुंचा तो लिखा कैसे जाता ,,,,एक जुम्मन मिया जो राजस्थान
घूम घूम कर वफादारी से जुम्मन मियाओं की पार्टी की जीत के लिए सिरमौर बनकर
वफ़ादारी से पसीना बहाते रहे ,उन्होंने पहले तो कहा पत्र लिखवा लिया गया ,है
फिर कहा साथ चलना होगा ,,पांच माह गुज़र गए ,हम वही जुम्मन मियां के जुम्मन
मिया रहे ,,कुछ नहीं हुआ ,,एक जुम्मन मिया ,फिर दूसरे जुम्मन मियां जो
,,इनके अपने हाल ही में सिरमौर बने भाईसाहबों से नज़रें मिलाकर कोई काम नहीं
करवा सकते,, तो फिर जुम्मन मिया बताइये ,,हमारे जुम्मन मिया रहने से फायदा
किया ,,कुछ जुम्मन मिया जयपुर ,वगेरा के है जो अपनी कोशिशों जुटे है
,लेकिन क़सम से इन जुम्मन भाइयों की सोच हमारे अपने इदारों के बाहर नहीं
निकली है ,बस क़ब्रिस्तान की हिफाज़त मांग रहे है ,कुछ हमारे अपने इदारों तक
ही सीमित है ,,खेर जुम्मन मिया का अपना समाज ,है कोई बागी जुम्मन मिया है
,कोई क्या हुक्म है मेरे आक़ा की बंदिशों में बंधा जुम्मन मिया है कोई
वफादार जुम्मन मिया तो है ,लेकिन अपने समाज की उन्हें फ़िक्र है इसलिए वोह
लिखते रहते है ,बोलते रहते है ,हाथ नमस्ते के लिए बांधते है ,गुलामी के लिए
नहीं,,, यह अपनी हिस्सेदारी चाहते है ,भीख नहीं,,,, ऐसे लोग ,ऐसे जुम्मन
मिया तो गेट आऊट होना ही चाहिए ,एक जुम्मन मिया तो अपनी मादरी ज़ुबान के
फरोग के नाम पर ,,,बहादुरी दिखाते हुए,, छह महीने पहले लिखा ज्ञापन ही
बिना सोचे समझे दे आये ,,तहरीर ,तारीख तक नहीं बदली ,,,जयपुर के कुछ जुम्मन
मिया का तो क्या कहना ,,हदें ही पार कर दीं ,बस घूमते है ,देखते है ,नेता
की झलक पाकर खुश होकर घर आ जाते है ,कोई पत्र नहीं ,कोई काम नहीं बस यूँ
ही ,ऐसे ही एक जुम्मन भाईजान ओर है ,दिल्ली वाले जुम्मन मियाओं की
दास्तान तो आप लोगों से छुपी नहीं है ,क्या कुछ चल रहा है ,जुम्मन मिया के
समाज की खैरख्वाही के लिए कभी कोई आवाज़ उठाई हो ,ज़िम्मेदारी दिखाई हो ,अगर
आपको याद हो तो बताइये ज़रुर ,,हाल ही में रमज़ान के महीने में पुलिस की
पिटाई से एक जुम्मन मिया रमज़ान की गर्दन की हड्डी टूटने चोटें आने से
अस्पताल में ज़ेर ऐ इलाज कस्टोडियल डेथ हो गयी ,हमारी राजस्थान की सबसे बढ़ी
पंचायत में हमारे अपने सात प्लस एक कुल आठ जुम्मन मिया है ,,दो हमारे अपने
जुम्मन मियाओं से मेने और मुझ जैसे कुछ जुम्मन मियाओं ने इल्तिजा की ,,एक
जो अलग दूसरे सीगे से इत्तेफ़ाक़ से जीत कर आये है उन जुम्मन मिया ने पहले
तो खुद फोन करके पहल की जानकारी चाही ,,मृतक रमज़ान के परिजनों को इन्साफ
दिलाने का वायदा किया ,लेकिन यह जुम्मन मिया राजस्थान की पंचायत शुरू होने
में तीन दिन बाक़ी है और गायब है ,,आधा अधूरा ,क़ब्रिस्तानों के रख रखाव का
प्रबंधन वहां अल्पमत के जुम्मन मिया जो खेल खेल रहे है ,ऑडियो , वीडियो में
उनकी वाह वाही के बाद भी वोह सभी जुम्मन मियाओं को लाइन लगाकर ज़ोर करा रहे
है जुम्मन भाइयों की पढ़ाई लिखाई के इदारे के सख्त क़ानून बन रहे है ,उसमे
अनावश्यक इंटरफियर दूसरे लोगों का रखा जाएगा ,,जुम्मन मिया की मादरी जुबांन
का अपना विभाग अपना निदेशालय के बारे में किसी जुम्मन मियां ने याद तो
दिलाया ही नहीं ,आँखों में आँखे डाल ,कर इस हक़ की लड़ाई को आगे भी नहीं
बढ़ाया ,,,,खेर ,,,पता नहीं इस लेख को लिखने वाले की उँगलियाँ काटीं जाएंगी
,या फिर इस लिखने वाले जुम्मन मिया के सभी जुम्मन भाई दुश्मन हो जाएंगे ,या
फिर जुम्मन भाई गले लग कर अपने मजबूरी बताएँगे ,या फिर एक होकर ,वफादारी
के सुबूत के साथ ,,अपने ,अपने भाइयों ,जुम्मन समाज के लिए ,उनके विकास के
लिए,, उनके भाइयों के लिए हाथ पकड कर काम करवाने की हिम्मत लाएंगे
,,वफादारी हमारे खून में है , सब्र हमे सिखाया है ,लेकिन इतना भी नहीं,,,
के दो दशक की वफ़ादारी रोने लगे ,,इतना भी नहीं,, के बंधे हुए हाथ खुले ही
नहीं ,इतना भी नहीं,, के वफादारी ,वफादारी से बढ़कर जी हुज़ूरी कही जाने लगे
,इसलिए प्लीज़ अन्यथा न लें,, सभी जुम्मन भाई एक बार अपने दिल पर हाथ रख कर
ज़रूर सॉचें ,वफादारी हमारे खून में ,है ,हम जुम्मन मिया जान की बाज़ी लगाकर
वफादारी निभाते है ,लेकिन आखिर कब तक ,किन क़ुर्बानियों के साथ ,क्या हमे
अपने रुके हुए काम नहीं करवाना ,क्या हमे हमारे मज़हबी स्थलों के रुके
हुए मरम्मत काम नहीं करवाना ,अपने वफादार साथियों को एडजस्ट नहीं करवाना
,, क्या हमे हमारी मादरी जुबांन के फरोग के लिए हक़ संघर्ष नहीं करना ,,,एक
बार बस एक बार अपने धड़कते दिल से पूंछना ज़रूर और प्लीज़ बताना ज़रूर ,,,,हम
कोन से किस केटेगरी के जुम्मन मिया है ,,तोड़ दो रस्सियां गुलामी की
,वफादारी की सीढ़ी पर खड़े तो रहो ,लेकिन अपने हक़ ,,अपने हुक़ूक़ अपने
स्वाभिमान के साथ ,,अपने भाइयों के इन्साफ के संघर्ष के साथ ,,, अख्तर खान
अकेला कोटा राजस्थान
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