यह इत्तिफ़ाक़ नहीं ,अल्लाह का पैगाम है ,जिस के हुकम में बन्दों को पेड़ों को
,पर्यावरण को बचाने की हिदायत दी गयी है ,,जिसके नबी सअव प्रोफेट मोहम्मद
साहब के ज़रिये भी पेड़ों को बचाने का पैगाम आगे बढ़ाया है ,आज उसी की ईबादत
के बाद इनाम के नतीजे में मिली ईद के दिन ही विश्वपर्यावरण दिवस मनाया जा
रहा है ,,,दोस्तों पेड़ है तो हम है ,,दुनिया है ,ज़िंदगी है ,और पेड़ ,मिटटी
का संरक्षण बनकर ही पर्यावरण बनता है ,जिसमे ,जल ,,वायु का प्रदूषण भी
शामिल है ,विश्व तो इस मामले में चिंतित है ,,भारत भी कागज़ों में चिंतित
है ,कागज़ों में जल प्रदूषण नियंत्रण क़ानून ,,वन अधिनियम ,,वायु प्रदूषण
नियंत्रण अधिनियम ,सहित सैकड़ों क़ानून बने है ,जिसमे उलंग्घन करने पर सजा का
प्रावधान है ,लेकिन यह क़ानून कागज़ में है ,विश्व में पेड़ बचाने ,पर्यावरण
बचाने को लेकर सबसे ज़्यादा ढकोसला भारत में होता है ,यही सरकारी बजट का
सर्वाधिक खर्च इस नाम पर होता है ,हज़ारों हज़ार समाजसेवी संस्थाए ,इस नाम पर
आर्थिक सहायता प्राप्त कर मज़े कर रही है जिनका हिसाब भी पत्रकारों के पास
नहीं ही ,,हालात यह है के करोड़ों करोड़ नहीं ,अरबों ,खरबों रूपये सरकारी बजट
के खर्च होने के बाद भी नतीजे के नाम पर सिफर क्यों रहा ,इस सवाल को दबाने
के लिए कुछ संस्थाए ,कुछ पत्रकार ,इसकी ज़िम्मेदारी आम नागरिक पर डालना
चाहती है और ऐसे ज़ाहिर करती है जैसे भारत में पर्यावरण का दुश्मन आम आदमी
है और सरकार तो बहुत ज़िम्मेदार है ,तो जनाब देख लीजिये ,सुन लीजिये ,किसी
पर्यावरण विद को क्या कभी आपने नदियों में नाले गिरने ,गंगा प्रदूषित होने
,चंबल प्रदूषित होने ,, थर्मल के कोयले की चूरी ,,थर्मल का डिस्चार्ज गंदा
पानी ,गंदा तेल ,,चंबल में क्यों जा रहा है ,,थर्मल की लाखों पेड़ लगाने की
ज़िम्मेदारी क़ायम है या नहीं ,चंबल फ़र्टिलाइज़र खाद कारखाने गढ़ेपान की वजह
से सोरसन में गोडावण सेंचुरी खत्म हुई ,रुग्गी नाले ,काली सिंध में गंदगी
है ,,डी सी एम से तालाबो के गंदे हालात है पेड़ खत्म हो रहे है ,,फारेस्ट की
लापरवाही से हरे पेड़ कट रहे है ,सार्वजनिक निर्माण विभाग ,नगर निगम ,तहसील
,नगरविकास न्यास ,सड़को पर डामरीकरण के नाम पर किनारे लगे पेड़ों को डामर से
फंसा कर उनकी ऑक्सीजन खत्म कर उनकी उम्र कम कर रहे है ,,भूजल पक्की सड़कों
,सीमेंट की सड़कों के होने ,नालों के अव्यस्थित होने से ज़मीन में नहीं जाकर
सीधे नदी में जाकर समुन्द्र में जा रहा है और इस नाम पर देश में वन विभाग
पर अरबों रूपये ,हरे पेड़ लगाने ,हरे पेड़ बचाने के नाम पर अरबों रुपए ,,बजरी
नहीं ,निकलेगी ,खान से पत्थर नहीं निकलेगा ,,वन अभ्यारण्य सुरक्षित रहेगा
,,पेड़ नहीं काटे जाएंगे ,,जैसे मामलों में सरकार ,,केंद्र सरकार ,निकाय
,पंचायतें अरबों अरब रूपये खर्च के नाम पर खा जाती है ज़रा एक श्वेत पत्र
तो जारी कर बताइये ,राष्ट्रिय राजमार्ग के बीच में जो फुलवारी होती है उसका
रुपया भी आप लोगों से आम आदमी से लिया जाता है फिर भ्रष्टाचार के नाम पर
ठेके लेकर उसे बर्बाद किया जाता ,,है ,पेड़ों की हिफाज़त करने वाला विभाग
पेड़ों की हिफाज़त क्यों नहीं करता ,,एक तरफ अख़बार में किसी उद्योग का फूल
पेज का विज्ञापन होता है , और दूसरी तरफ फैक्ट्री , उद्योगों द्वारा कितने
पेड़ गंदी हवा से खत्म कर दिए उसका कच्चा चिट्ठा छुपा होता है ,,,,,पेड़ लगाओ
,पेड़ बचाओ ,,लेकिन उद्योगों के प्रदूषण की सारी ज़िम्मेदारी वाहनों के सर
थोपी जाती है ,,,,थर्मल के धुएं ,कोयले की चूरी को देख लो ,,इतिहास में
लिखा है ,लोकसभा में थर्मल के पर्यावरण के सवाल उठाये ,दूसरे कुछ दिनों बाद
थर्मल में हज़ारों पेड़ लगाने का ठेका मिल गया ,,चंबल फर्टिलाइज़र के खिलाफ
आवाज़ उठाई ,ठेके नौकरियां मिल गयी ,,लेकिन पेड़ खत्म ,पानी गंदा ,मिटटी खराब
,,सोरसन गोडावण अभ्यारण्य खत्म ,,चमल घड़ियाल में मगरमच्छ सफ़ेद हो जाते है
,सभी जानते है ,,किसी ने कोई आवाज़ नहीं उठाई ,भरस्टाचार के जांच की मांग
नहीं की ,, सी ऐ डी में सीड़ा प्रोजेक्ट सफेदा के अरबों रूपये के घोटाले ,भू
आवंटन मामले ,गार्डन बेचने ,काटने ,कृषि अनुसंधान केंद्रों के पेड़ों की
कटाई , फसलों की झड़ाई , सभी जानते है देखते है , थर्मल में राख उठवाना है
नेताओं उनके चमचों की गाड़ियां लगी है ,एक गाड़ी के पांच हज़ार मिल रहे है
,,कोटा हो ,झालावाड़ हो ,,छबड़ा हो सभी जगह पर्यावरण के नाम पर ऐश ही ऐश है
, क़लम चलती नहीं ,ज़िम्मेदारी आम नागरिक की बता दी जाती है सरकार हमारे
टेक्स से वसूले अरबों अरब रूपये इस नाम पर खर्च बताकर ऐश करती है
,ठेकदारों के मज़े करवाती है ,कुछ समाजसेवक इस मामले में शौकिया आवाज़ ज़रूर
उठाते है ,लेकिन सिर्फ खुद को बचाकर भरस्टाचार के खिलाफ एक शब्द भी बोले
बगैर ,हाँ कोटा के एक पत्रकार धीरेन्द्र राहुल ,,ब्रजेश विजयवर्गीय ,,रजत
खन्ना ,पुरुषोत्तम पंचोली ने इस मामले में निष्पक्षता से मुहीम चलाई ,,फिर
इस मुहीम को डॉक्टर सुधीर गुप्ता आगे बढ़ा रहे है ,भरतसिंह ने काम किया
,,लेकिन मंत्री बनने के बाद मर्यादाओं में खो गए ,समाजसेवी स्वर्गीय
डॉक्टर लक्ष्मीकान्त दाधीच ने इस मामले में ज़रूर ईमानदारी से जागृति
कार्यक्रम चलाया ,,कई पेड़ लगाए ,कई पेड़ बचाये ,खुद एक मज़हबी ऐतेबार से
जागरूकता पैदा कर हुज़ूर सअव के नाम से पार्क बनाया जिसमे क़ुरान और हदीस
में जिन पेड़ों का ज़िक्र है वोह सब लगाने की कोशिश की ,,हिन्दू भाइयों में
वानप्रस्थाश्रम का अर्थ सामान्य रूप से जो भी हो ,,लेकिन इस आयु के लोग तो
जंगल की सेवा में नहीं है ,शहर में ही सियासी दांव पेंच में जुड़े है
,,वरना शायद इस उम्र में जंगल की सेवा कर पर्यावरण सुरक्षा की तरफ काम
करने से ही होगा ,,आप जानते है ,स्वर्ग ,,,यानी जन्नत का वातावरण जो लिखा
गया है ,,हरे पेड़ ,,ताज़ी हवा ,हरियाली ,पानी ,जीव , जंतु ,स्वच्छ हवा ,यही
सब जन्नत का सुकून है ,,कश्मीर का प्रदूषण रहित वातावरण ,वृक्षों की हवा
देखकर ही ,,शहनशाह ने इसे जन्नत के मुक़ाबिल बताया था ,दूसरी तरफ दोज़क यानी
नर्क जहाँ आग की भट्टियां ,गर्म टेम्प्रेचर ,से आदमी को झुलसाने की बात
कहकर डराया गया ,है ,तो दोस्तों जन्नत भी यही है अगर पर्यावरण ईमानदारी से
सुरक्षित है हम सरकार का गिरेहबान पकड़ कर पूंछे यह फैक्ट्रियां क्यों ज़हर
उगल रही है ,पानी में क्यों गंदगी है ,पेड़ बचाने ,,पेड़ लगाने ,जंगल बचाने
के नाम पर अरबो अरब रूपये कहाँ जाते है ,हम पूछे चंबल शुद्धिकरण के ,गंगा
शुद्धिकरण के खरबों रूपये कहाँ है ,क्यों घड़ियाल सफ़ेद हो रहे है ,क्यों
पेड़ खत्म हो रहे है ,क्यों शहरी क्षेत्रों में पेड़ काटे जा रहे है उनका रख
रखाव ठीक नहीं है पेड़ों को चारोतरफ से डामर सीमेंट से दबाकर क्यों उनकी आयु
खत्म कर दी गयी है ,,क्यों ग्राउंड वाटर के लिए डामर की ,सीमेंट की सड़कों
के बीच में बारिश का पानी ज़मीन के अंदर जज़्ब करने की वैज्ञानिक विधि नहीं
है ,क्यों हाइवे पर टोल वसूल कर भी पेड़ो के लिए क्यों ईमानदारी से खर्च
किया जा रहा है ,,,खुद भी खुद से पूंछे ,खुद भी ऐसे भरस्टाचार को उजागर
करने की ज़िम्मेदारी निभाए ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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