आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

19 मार्च 2019

होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह

यह कविता सूफी संत बुल्लेशाह की है जो हमारी गंगा जमनी तहजीब की नायाब मिसाल है:-
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह
नाम नबी की रतन चढी, बूँद पडी इल्लल्लाह
रंग-रंगीली उही खिलावे, जो सखी होवे फ़ना-फी-अल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह

अलस्तु बिरब्बिकुम पीतम बोले, सभ सखियाँ ने घूंघट खोले
क़ालू बला ही यूँ कर बोले, ला-इलाहा-इल्लल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह
नह्नो-अकरब की बंसी बजायी, मन अरफ़ा नफ्सहू की कूक सुनायी
फसुम-वजहिल्लाह की धूम मचाई, विच दरबार रसूल-अल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह
हाथ जोड़ कर पाऊँ पडूँगी आजिज़ होंकर बिनी करुँगी
झगडा कर भर झोली लूंगी, नूर मोहम्मद सल्लल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह
फ़ज अज्कुरनी होरी बताऊँ , वाश्करुली पीया को रिझाऊं
ऐसे पिया के मैं बल जाऊं, कैसा पिया सुब्हान-अल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...