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19 सितंबर 2018

भरतपुर ज़िले के कामां क्षेत्र में न्यायिक अधिकारीयों के साथ मारपीट

आदरणीय विधि विभाग से जुड़े ,पीड़ित ,शोषित लोगो को तत्काल न्याय दिलाने के लिए नियुक्त आदरणीय भाइयों ,,भरतपुर ज़िले के कामां क्षेत्र में न्यायिक अधिकारीयों के साथ मारपीट ,,अभद्रता ,फिर पुलिस अधिकारी की उपेक्षित कार्यवाही ,शर्मनाक और अफसोसनाक घटना है ,खेर पुलिस एक्शन में आयी ,अधिकारी एक्शन में आये ,अख़बारों में खबर ,छपी ,कार्यवाही शुरू हो ,गयी और थाना जुरहरा के सुखवीर सिंह को पुलिस अधीक्षक ने फिलहाल लाइन हाज़िर कर दिया ,अपराधियों का क्या होगा ,,,किन धाराओं में कार्यवाही होगी ,यह भी तय होना है ,लेकिन मेरी एक इल्तिजा ,एक सवाल ,,देश के सभी वकीलों ,न्यायिक अधिकारीयों ,सिस्टम में बैठे वरिष्ठ अधिकारीयों ,सुप्रीमकोर्ट के न्यायविदों से भी है ,,एक बेरियर ,,एक रोक ,,किसी फरियादी द्वारा शिकायत दर्ज कराने पर क्यों लगाई जाती है ,,,एक फरियादी अपनी शिकायत लेकर थाने पहुंचे ,,ललिता कुमारी में दिए गए उच्च न्यायलय के निर्देश के बाद भी कोई एफ आई आर दर्ज नहीं होती ,फिर अगर वोह पुलिस अधीक्षक के पास जाए तो कार्यवाही नहीं ,अगर वोह अदालत जाए तो पहले सो फोरम्लीटीज़ ,,थानाधिकारी के पास गए क्या ,फिर एस पी के पास गए क्या ,,ऐसा सब कर भी लिया तो बस वकील परिवाद पेश करे तो पुलिस अधिकारी अगर दोषी हो तो 197 सी आर पी सी की स्वीकृति नहीं है ,सरकार की स्वीकृति चाहिए ,परिवाद थाने जांच के लिए नहीं भेजेंगे ,अदालत में ही बयांन होंगे ,,पहले परिवादी को परीक्षित कराओ ,फिर गवाहान को लगातार बुलाओ ,नहीं तो जो परिवाद थाने 156 (3 ) सी आर पी सी में नहीं भेजा गया फिर उसी परिवाद को थाने में 202 सी आर पी सी के तहत जांच के लिए भेजा जाएगा ,अरे जनाब मुक़दमा दर्ज ,होगा ,नतीजा जो भी होगा सामने आएगा ,,लेकिन क्या गरिजियन होने के बाद ,परिवादी को ऐसा भटकाना चाहिए ,पुलिस अधिकारी या सरकारी अधिकारी या फिर अपराधी को ऐसे खुले में घूमने की इजाज़त मिलना चाहिए ,,अंग्रेज़ों ने जो सी आर पी सी बनाई ,उसमे कभी परिवादी को इंसाफ देने से नहीं ,रोका ,संविधान ने परिवादी को अधिकार दिए ,क़ानून बना ,अधिकारी ने शिकायत दर्ज नहीं की तो सिर्फ 166 आई पी सी विधि की अवज्ञा का तुच्छ ,अपराध ,वोह भी दर्ज होना मुश्किल ,,फिर नए नए व्याख्यात्मक आदेश ,,अधिसंस्थ न्यायालयों के लिए मुक़दमा दर्ज करने के पहले बेरियर बन गए ,,क्या ऐसा पुलिस अधिकारी जिसने ,न्यायिक अधिकारीयों के साथ अभद्रता होते ,देखी कोई एक्शन नहीं लिया ,विधि की अवज्ञा का अपराधी नहीं ,उसके खिलाफ फौजदारी मुक़दमा दर्ज नहीं होना चाहिए ,,,आखिर एक चोर ,बेईमान पुलिस अधिकारी या कोई भी अधिकारी हो उसे उसके कार्य संचालन में भ्रष्ट आचरण के बाद भी मुक़दमा नहीं चलाने जैसा प्रोटेक्शन क्यों ,,अदालत कोई ही यह देखने का हक़ क्यों नहीं ,सरकार की मंज़ूरी की मजबूरी क्यों ,फिर सरकार अपने गुलाम ,इशारों पर अपराध करने वाले ,सरकार को दो नंबर की कमाई देने वाले ऐसे अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ स्वीकृति क्यों देगी ,,समय कोई कोई पाबंदी नहीं ,स्वीकृति नहीं दी तो ज़िम्मेदार अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही का कोई क़ानून नहीं ,कोई ज़िम्मेदारी तय नहीं ,तो जनाब हज़ारो हज़ार परिवादियों की पीड़ा सोचना ज़रूर ,जो परिवादी पीटते भी है ,ज़ुल्म का शिकार भी होते है ,आधे से ज़्यादा तो ,शिकायत करने की हिम्मत ही नहीं करते ,जो हिम्मत करते है ,उनका अब न्याय क्षेत्र में क्या हश्र होने लगा है ,उन्हें प्रताड़ित करने वालों को अव्यवहारिक कवच पहनाकर किस तरह से सुरक्षित किया गया है देश जानता है ,,आज इंटरनेट का युग है ,,एक परिवादी थानाधिकारी को इ मेल करे ,व्हाट्स एप्प करे तो संज्ञेय अपराध होने पर मुक़दमा दर्ज होना चाहिए ,,नहीं तो ऐसे टालमटोल अधिकारी को नौकरी पर रहने का अधिकार नहीं ,शिकायत झूंठी निकले तो क़ानून में 182 आई पी सी सहित दूसरे अपराधों में ऐसे शख्स को सजा देने का प्रावधान है न ,लेकिन क़ानून तोड़ने वाला कोई भी हो ,आम आदमी ,राजा ,फ़क़ीर ,पुलिस अधिकारी सभी के खिलाफ त्वरित कार्यवाही होना चाहिए ,ज़रा कल्पना कीजिये जो घटना ,कामा, भरतपुर में आदरणीय अधिकारीयों के साथ गुज़री है ,उनकी अदालत में ही अगर ऐसी घटना का पीड़ित ,एक परिवाद लेकर पहुंचता तो उसे किस किस तरह की ,परेशानियों ,पूंछतांछ से गुज़रना पढ़ता ,फिर अगर थानाधिकारी द्वारा विधि की अवज्ञा का प्रश्न भी आ जाता तो क्या नतीजा निकलता ,इस पर विचार कर हमे सभी को ,जो क़ानून के मुहाफ़िज़ है ,,खुद को बदलना होगा ,अपने अंतर्मन से सवालात करना होंगे ,,करेंगे न हम ऐसा ,इन्साफ देने के तरीके में जो बाधाएं सो कोल्ड तरीके से बना दी गयी है ,उन्हें रोकेंगे न हम सभी नीचे से ऊपर तक के कढ़ी से कढ़ी जुड़े लोग ,,देखते है इस घटना का सबक़ एक ब्रेक के बाद ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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