अल्लाह का शुक्र ,खुदा की राह में ,अमन ,सुकून ,,इंसाफ ,,निहत्थों की
हिफाज़त,,अल्लाह के बताये हुए रास्ते इंसाफ की अलम्बरदारी की राह में चल
रही हुकूमत ,हुकूमत के इंसाफ़ाना क़ानून की हिफाज़त के लिए अपना सब कुछ
क़ुर्बान कर ,,इन्साफ की हिफाज़त के जज़्बे का त्यौहार ,,ईदुल अज़हा ,,की वाजिब
शुक्राना नमाज़ अदा हुई ,, मसलकों के विवादों के बाद भी पुरे मुल्क में
आखिर एक ही दिन बकराईद की नमाज़ हुई ,,दोस्तों मुल्क में पहली बार चाँद की
दस तारीख को होने वाली इस ईद पर तमाशा बना ,,आलिमों ,क़ाज़ियों ,,मुफ्तियों
,,उनके चमचो में सबसे पहले ईद का चाँद देखने ,,नहीं देखने की घोषणा के
चक्कर में यह तमाशा बन गया ,लेकिन देश के आलिमों को एक सबक़ मिला है ,,अब कम
से कम भविष्य में वोह देश के मुसलमानों को यूँ तमाशा न बनाये ,शुक्र है
खुदा का ,शुक्र है सरकार का जो आलिमों की घोषणा के हिसाब से छुट्टियों का
कैलेंडर आगे पीछे करते रहे ,,लेकिन आलिमों को आत्मचिंतन की ज़रूरत है ,चाँद
की शहादत पहले दिन नहीं तो दूसरे दिन ,दूसरे दिन नहीं तो तीसरे दिन ,फिर
चाँद देखकर ही अंदाज़ा लग जाता है यह पहली तारीख का चाँद है ,दूसरी तारीख का
चाँद है ,,क़ुर्बानी की इस ईद की घोषणा होना चाहिए ,,मीठी ईद के चाँद की
घोषणा पर ,,कुछ कोस दूरी पर चाँद देखने पर ही ईद मनाने की घोषणा की शहादत
पर अड़कर कई बार अलग अलग मीठी ईद मनवाने वाले लोगो को भी सोचना होगा ,या तो
वोह लोग इस फार्मूले को गलत समझे ,या फिर वोह लोग इस क़ुर्बानी की ईद पर
कुछ किलोमीटर चाँद देखने की शहादत की पाबंदी को बरक़रार नहीं रख सके ,खेर
मसले ,मसाइल है ,बात आलिमों की है ,लेकिन इस बार तो बस ,,अललाह का अज़ाब रहा
,,बार बार क़ुरबानी की ईद की घोषणा ,फिर तारीख बदलने की घोषणा ,छुट्टी की
अधिसूचनाएं ,फिर संशोधित छुट्टी की संशोधित अधिसूचनाएं ,तमाशा बन कर रह गए
,,तुम्हारे मसलक अलग हो ,तुम्हारे फ़िरक़े अलग हो कोई बात नहीं लेकिन
इस्लामिक इत्तेहाद पर हम तुम एक है बस समझ लेना ,मेरा गुरुर था ,,मेरे आलिम
पर ,मेरे एक मौलाना का गुरुर था ,,उनके कोसों दूर रहकर इदारा चलाने वाले
आलिम पर ,लेकिन इस बार ,,जितनी भी मेरी इस्लामिक जानकारी है ,उस हिसाब से
,मेरे आलिम की हक़ परस्ती को लेकर जो मेरा गुरुर था वोह टूट गया ,बिखर गया
,,मेरे दोस्तों जिन मौलानाओं का गुरुर वोह दूरदराज़ के आलिम हुआ करते थे
,उनका गुरुर भी टूट गया ,खेर ,क़ुरबानी की ईद विवादों के बाद पुरे देश में
एक दिन हुई ,लेकिन एक फलसफा ,एक सीख ,,एक हिदायत यह क़ुरबानी की ईद की घोषणा
के तोर तरीके छोड़ गयी ,क्यों नहीं देश भर के आलिम एक जुट होकर ,एक राय
होकर एक दूसरे से ऐसे मौक़ों पर टेलीफोनिक बात कर ,भरोसे के साथ फैसले ले
,जो न देश को परेशांन करे ,न मुसलमानो में असमंजस का माहौल बनाये ,न आलिमों
के मुखालिफ माहौल बना पाए ,बस एक साथ एक अल्लाह एक ईद ,चाँद सूरज को लेकर
अल्लाह ने खुद दिन रात अलग अलग मुल्कों में अलग अलग बनाये है ,,वहां तो
जब चाँद दूसरे दिन ही दिखेगा तो बात दूसरी है ,लेकिन जहाँ वक़्त एक ,जहाँ
चाँद एक वहां मुसलमानो को इस बेबसी इस बेकसी ,, इस आलिमों की गुटबाज़ी से
,,ईद की घोषणा में जल्दबाज़ी के हुक्मनामे से ,अल्लाह हमे नुजात दिलाये ,और
मुजद्दिद ही सही ,,अल्लाह ने क़ुरान के हुक्मनामे के तहत हमे जो नयी तकनीक
दी है ,मोबाइल ,,इंटरनेट ,,जैसी सुविधाएं दी है ,,सूचनाओं का आदान प्रदान
का सलीक़ा दिया है ,ऐसे में क़ुरआन के हुक्मनामे ,हदीसों के हुक्मनानो के तहत
हम ,,क्या बदलाव ला सकते है इसपर हमे सोचना होगा ,,हमे फ़िरक़े बाज़ी ,छोटा
बढ़ा ,छोड़कर जिलेवार हर आलिम को सूचीबद्ध कर एक राष्ट्रिय स्तर पर इन मामलों
में फिरको की जंग भुलाकर मुदललिल तरीके से एक कॉमन प्रोग्राम बनाना होगा
,,हमे साक्षर होना होगा ,,अल्लाह हमे नेक हिदायत दे आमीन ,,इसी के साथ
क़ुरबानी के जज़्बे से जुड़ा यह त्यौहार ,,सभी को मुबारक हो ,,,,अख्तर खान
अकेला कोटा राजस्थान
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