खून
का न धर्म होता है ,,न मज़हब ,खून अमीर का हो या फिर ,गरीब का ,,,शरीफ का
हो या फिर बदमाश का सिर्फ और सिर्फ इसका रंग लाल होता है ,,खून का ग्रुप
अलग ज़रूर होता है लेकिन यह, लाल सिर्फ लाल ही होता है ,,एक यमराज के
शिकंजे में फंसे तड़पते मरीज़ को अगर यह खून ,रक्तदान के रूप में मिल जाए तो
यही दान में मिला खून उसे ज़िंदगी दे देता है ,,दोस्तों यही ज़िंदगी कोटा के
पत्रकार सुबोध जैन ने एक आइकॉन रक्तदाता बनकर
,, मोत से जूझ रहे कई मरीज़ों को दी है ,सुबोध जैन जब अबोध थे ,,तभी से
लोगो के संकट में,, संकट मोचक बनकर ,,उनकी मदद करना उनका स्वभाव था ,घर
वालों ने उनका नाम सुबोध रखा ,और यह तरुणाई से ही ,रक्तदान ,महादान,का नारा
बुलंद करने निकल पढ़े ,,कोटा में जब रक्तदान के नाम से लोग खौफ खाते थे ,जब
रक्त को देखकर लोग चकरा जाते थे ,तब डॉक्टर वेद प्रकाश गुप्ता ,,दूसरे
साथियो की प्रेरणा से ,,सुबोध जैन ने रक्तदान का संकल्प लिया ,,सुबोध जैन
का रक्त ग्रुप ऐ नेगेटिव होने से इस रक्त की आवश्यकता पढ़ने पर इसकी
उपलब्धता दुर्लभ होती है ,,आज से पैतीस साल पहले जब ब्लड बैंक खाली रहते थे
,डोनर्स की सूचि नहीं होती थी तब ऐसे लोग ज़रूरतमंदो को भगवान लगते थे ,,
मोबाईल फोन नहीं ,,लैंडलाइन भी सभी लोगो के पास नहीं ,,तब सुबोध जैन ने
पत्रकारिता के जोहर के साथ लोगो की ज़िंदगी बचाने का हुनर दिखाया है ,सुबोध
जैन जो पेशे से पत्रकार है कॉमर्स में ग्रेजुएशन के बाद ,,बी जे एम सी ,फिर
पी जी डी डिप्लोमा इन जर्नलिज़्म में करने के बाद पहले जननायक समाचार पत्र
में प्रशिक्षु रहे ,फिर दैनिक नवज्योति के पत्रकार बने ,,सुबोध जैन ने
,दैनिक नवज्योति में कई निर्भीक ,तथ्यात्मक रिपोर्टिंग कर ,,नवज्योति का
दूसरे अखबारों से अलग साबित कर दिखाया ,,सुबोध जैन ,रिपोर्टिंग ,एडिटिंग
,साज सज्जा में माहिर हुए और पत्रकारिता के हरफन मोला होकर ,,सेवानिवृत्त
हुए ,, सुबोध जैन छात्र जीवन में होंकी के राष्ट्रिय स्तर के खिलाड़ी रहे
है ,,सेवानिवृत होने के बाद सुबोध जैन ,,दो वर्ष तक इल्केट्रॉनिक मीडिया एच
बी सी के रिपोर्टर रहे ,फिर पंजाब केसरी में कोटा एडिशन प्रभारी रहे
,वर्तमान में सुबोध जैन फ्रीलांस जर्नलिस्ट ,सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त
एक्रिडेटेड जर्नलिस्ट है ,,सुबोध जैन रक्तदान को महादान बनाने के अभियान
को वर्तमान हालातों में कामयाब होता देख कहते है ,,आज रक्तदाताओं की वजह से
सड़कों ज़रूरत मंद लोगो की जान बचती है इसकी उन्हें ख़ुशी है ,,सुबोध जैन हर
तीन माह में स्वेच्छिक रक्तदाता रहे है ,पुराने हालातों में कई बार मेला
दशहरा कार्य्रकमों के चलते इनके ब्लड ग्रुप ऐ नेगेटिव की ज़रूरत पढ़ने पर
कार्यक्रम रुकवाकर माइक पर ऐलान कर इनसे गुज़ारिश की गयी और इन्होने तीन माह
के पूर्व भी ज़रुरत मंद मरीज़ों को खून देकर उनकी ज़िंदगी बचाई है ,सुबोध जैन
अब तक 118 बार रक्त दे चुके है ,रक्तदान ,महादान के अभियान को कामयाब करने
के जूनून में उनकी जो कोशिशे रही उन्हें देखकर विभिन्न संस्थाओं ने सुबोध
जैन को कई बार सम्मानित भी किया ,खुद राजस्थान सरकार ने तात्कालिक कलेक्टर
तन्मय कुमार के कार्यकाल में इनके इस रक्तदान समर्पण को देखते हुए
राज्यसरकार की तरफ से ,केबिनेट मंत्री के ज़रिये इन्हे सम्मानित करवाकर इनकी
हौसला अफ़ज़ाई की ,,सुबोध जैन अभी भी समाजसेवा कार्यो से जुड़े है ,सक्रिय
पत्रकार है ,रोज मर्रा स्वतंत्र लेखनी के ज़रिये कई महत्वपूर्ण मुद्दे
उठाकर यह लोगों को चौंकाते रहे है ,,सुबोध जैन ,,पत्रकारिता को धर्म समझते
है वोह कहते है ,पत्रकार होना सामान्य बात हो सकती है ,,लेकिन विकट
परिस्थितियों में भी पत्रकारिता का कर्तव्य निभाना बहुत मुश्किल काम है और
उन्होंने निर्विवाद तरीके से इस धर्म को निभाने की कोशिश की है ,न काहू से
दोस्ती ,न काहू से बेर ,की तर्ज़ पर निष्पक्ष रिपोर्टिंग की वजह उन्हें कई
बार आम जनता ,,,समाजसेवी संगठनों द्वारा सम्मानित भी किया गया है
,,,,,,,,,,सुबोध जैन की क़लम की स्याही अभी सुखी नहीं है ,उनके हौसले अभी
भी ज़िंदा है ,,उनके तेवर तीखे है ,,और वोह पत्रकारिता के धर्म का निष्पक्ष
निर्वहन आज भी स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कर रहे है ,,उन्हें बधाई ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)