आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

18 जून 2018

में फिसलता रहा

लम्हा लम्हा ,,
टूटकर
बिखरता रहा
में फिसलता रहा
तुम्हारी मिट्ठी से
सुखी रेत की तरह
ऐ मोहब्बत
तू ही बता
मेरा क़ुसूर क्या रहा ,,अख्तर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...