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23 फ़रवरी 2018

क़ुरान का संदेशः

और जब उनसे कहा जाता है कि ख़ुदा ने जो किताब नाजि़ल की है उसकी तरफ़ और रसूल की तरफ़ रूजू करो तो तुम मुनाफि़क़ीन को देखते हो कि तुमसे किस तरह मुँह फेर लेते हैं (61) कि जब उनपर उनके करतूत की वजह से कोई मुसीबत पड़ती है तो क्योंकि तुम्हारे पास ख़ुदा की क़समें खाते हैं कि हमारा मतलब नेकी और मेल मिलाप के सिवा कुछ न था ये वह लोग हैं कि कुछ ख़ुदा ही उनके दिल की हालत ख़ूब जानता है (62)
बस तुम उनसे दरगुज़र करो और उनको नसीहत करो और उनसे उनके दिल में असर करने वाली बात कहो और हमने कोई रसूल नहीं भेजा मगर इस वास्ते कि ख़ुदा के हुक्म से लोग उसकी इताअत करें (63)
और (रसूल) जब उन लोगों ने (नाफ़रमानी करके) अपनी जानों पर जु़ल्म किया था अगर तुम्हारे पास चले आते और ख़ुदा से माफ़ी माँगते और रसूल (तुम) भी उनकी मग़फि़रत चाहते तो बेशक वह लोग ख़ुदा को बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पाते (64)
बस (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार की क़सम ये लोग सच्चे मोमिन न होंगे तावक़्ते (जब तक) कि अपने बाहमी झगड़ों में तुमको अपना हाकिम (न) बनाएं फिर (यही नहीं बल्कि) जो कुछ तुम फै़सला करो उससे किसी तरह दिलतंग भी न हों बल्कि ख़ुशी ख़ुशी उसको मान लें (65)
(इस्लामी शरीयत में तो उनका ये हाल है) और अगर हम बनी इसराइल की तरह उनपर ये हुक्म जारी कर देते कि तुम अपने आपको क़त्ल कर डालो या शहर बदर हो जाओ तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा ये लोग तो उसको न करते और अगर ये लोग इस बात पर अमल करते जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है तो उनके हक़ में बहुत बेहतर होता (66)
और (दीन में भी) बहुत साबित क़दमी से जमे रहते और इस सूरत में हम भी अपनी तरफ़ से ज़रूर बड़ा अच्छा बदला देते (67)
और उनको राहे रास्त की भी ज़रूर हिदायत करते (68)
और जिस शख़्स ने ख़ुदा और रसूल की इताअत की तो ऐसे लोग उन (मक़बूल) बन्दों के साथ होंगे जिन्हें ख़ुदा ने अपनी नेअमतें दी हैं यानि अम्बिया और सिद्दीक़ीन और शोहदा और सालेहीन और ये लोग क्या ही अच्छे रफ़ीक़ हैं (69)
ये ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) है और ख़ुदा तो वाकि़फ़कारी में बस है (70)

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