ज़करिया ने अर्ज़ की परवरदिगार मेरे इत्मेनान के लिए कोई निशानी मुक़र्रर
फ़रमा इरशाद हुआ तुम्हारी निशानी ये है तुम तीन दिन तक लोगों से बात न कर
सकोगे मगर इशारे से और (उसके शुक्रिये में) अपने परवरदिगार की अकसर याद करो
और रात को और सुबह तड़के (हमारी) तसबीह किया करो (41)
और वह वाकि़या भी याद करो जब फ़रिश्तों ने मरियम से कहा, ऐ मरियम तुमको
ख़ुदा ने बरगुज़ीदा किया और (तमाम) गुनाहों और बुराइयों से पाक साफ़ रखा
और सारे दुनिया जहान की औरतों में से तुमको मुन्तखि़ब किया है (42)
(तो) ऐ मरियम इसके शुक्र से मैं अपने परवरदिगार की फ़रमाबदारी करूं सजदा और रूकूउ करने वालों के साथ रूकूउ करती रहो(43)
(ऐ रसूल) ये ख़बर गै़ब की ख़बरों में से है जो हम तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए से भेजते हैं (ऐ रसूल) तुम तो उन सरपरस्ताने मरियम के पास मौजूद न थे जब वह लोग अपना अपना क़लम दरिया में बतौर क़ु़रआ के डाल रहे थे (देखें) कौन मरियम का कफ़ील बनता है और न तुम उस वक़्त उनके पास मौजूद थे जब वह लोग आपस में झगड़ रहे थे (44)
(वह वाकि़या भी याद करो) जब फ़रिश्तों ने (मरियम) से कहा ऐ मरियम ख़ुदा तुमको सिर्फ़ अपने हुक्म से एक लड़के के पैदा होने की खुशख़बरी देता है जिसका नाम ईसा मसीह इब्ने मरियम होगा (और) दुनिया और आखे़रत (दोनों) में बाइज़्ज़त (आबरू) और ख़ुदा के मुक़र्रब बन्दों में होगा (45)
और (बचपन में) जब झूले में पड़ा होगा और बड़ी उम्र का होकर (दोनों हालतों में यकसा) लोगों से बाते करेगा और नेको कारों में से होगा (46)
(ये सुनकर मरियम ताज्जुब से) कहने लगी परवरदिगार मुझे लड़का क्योंकर होगा हालांकि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं इरशाद हुआ इसी तरह ख़ुदा जो चाहता है करता है जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस कह देता है ‘हो जा’ तो वह हो जाता है (47)
और (ऐ मरयिम) ख़ुदा इसको (तमाम) किताबे आसमानी और अक़्ल की बातें और (ख़ासकर) तौरेत व इन्जील सिखा देगा (48)
और बनी इसराइल का रसूल (क़रार देगा और वह उनसे यू कहेगा कि) मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) यह निशानी लेकर आया हॅू कि मैं गुंधी हुई मिट्टी से एक परिन्दे की सूरत बनाऊॅगा फि़र उस पर (कुछ) दम करूंगा तो वो ख़ुदा के हुक्म से उड़ने लगेगा और मैं ख़ुदा ही के हुक्म से मादरज़ाद {पैदायशी} अॅधे और कोढ़ी को अच्छा करूंगा और मुर्दो को जि़न्दा करूंगा और जो कुछ तुम खाते हो और अपने घरों में जमा करते हो मैं (सब) तुमको बता दूगा अगर तुम ईमानदार हो तो बेशक तुम्हारे लिये इन बातों में (मेरी नबूवत की) बड़ी निशानी है (49)
और तौरेत जो मेरे सामने मौजूद है मैं उसकी तसदीक़ करता हॅू और (मेरे आने की) एक ग़रज़ यह (भी) है कि जो चीजे़ तुम पर हराम है उनमें से बाज़ को (हुक्मे ख़ुदा से) हलाल कर दू और मैं तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) निशानी लेकर तुम्हारे पास आया हॅू (50)
(तो) ऐ मरियम इसके शुक्र से मैं अपने परवरदिगार की फ़रमाबदारी करूं सजदा और रूकूउ करने वालों के साथ रूकूउ करती रहो(43)
(ऐ रसूल) ये ख़बर गै़ब की ख़बरों में से है जो हम तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए से भेजते हैं (ऐ रसूल) तुम तो उन सरपरस्ताने मरियम के पास मौजूद न थे जब वह लोग अपना अपना क़लम दरिया में बतौर क़ु़रआ के डाल रहे थे (देखें) कौन मरियम का कफ़ील बनता है और न तुम उस वक़्त उनके पास मौजूद थे जब वह लोग आपस में झगड़ रहे थे (44)
(वह वाकि़या भी याद करो) जब फ़रिश्तों ने (मरियम) से कहा ऐ मरियम ख़ुदा तुमको सिर्फ़ अपने हुक्म से एक लड़के के पैदा होने की खुशख़बरी देता है जिसका नाम ईसा मसीह इब्ने मरियम होगा (और) दुनिया और आखे़रत (दोनों) में बाइज़्ज़त (आबरू) और ख़ुदा के मुक़र्रब बन्दों में होगा (45)
और (बचपन में) जब झूले में पड़ा होगा और बड़ी उम्र का होकर (दोनों हालतों में यकसा) लोगों से बाते करेगा और नेको कारों में से होगा (46)
(ये सुनकर मरियम ताज्जुब से) कहने लगी परवरदिगार मुझे लड़का क्योंकर होगा हालांकि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं इरशाद हुआ इसी तरह ख़ुदा जो चाहता है करता है जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस कह देता है ‘हो जा’ तो वह हो जाता है (47)
और (ऐ मरयिम) ख़ुदा इसको (तमाम) किताबे आसमानी और अक़्ल की बातें और (ख़ासकर) तौरेत व इन्जील सिखा देगा (48)
और बनी इसराइल का रसूल (क़रार देगा और वह उनसे यू कहेगा कि) मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) यह निशानी लेकर आया हॅू कि मैं गुंधी हुई मिट्टी से एक परिन्दे की सूरत बनाऊॅगा फि़र उस पर (कुछ) दम करूंगा तो वो ख़ुदा के हुक्म से उड़ने लगेगा और मैं ख़ुदा ही के हुक्म से मादरज़ाद {पैदायशी} अॅधे और कोढ़ी को अच्छा करूंगा और मुर्दो को जि़न्दा करूंगा और जो कुछ तुम खाते हो और अपने घरों में जमा करते हो मैं (सब) तुमको बता दूगा अगर तुम ईमानदार हो तो बेशक तुम्हारे लिये इन बातों में (मेरी नबूवत की) बड़ी निशानी है (49)
और तौरेत जो मेरे सामने मौजूद है मैं उसकी तसदीक़ करता हॅू और (मेरे आने की) एक ग़रज़ यह (भी) है कि जो चीजे़ तुम पर हराम है उनमें से बाज़ को (हुक्मे ख़ुदा से) हलाल कर दू और मैं तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) निशानी लेकर तुम्हारे पास आया हॅू (50)

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