साल आते है ,साल जाते है ,,आना जाना ,दुनिया का दस्तूर है ,,नए पर खुशिया
,,पुराने की उपेक्षा ,,आदत सी हो गयी है ,,खुद सोचो ,एक नए साल की आमद पर
नहीं चाहते हुए भी ,,ज़हन में खुशियों का इज़हार होता है ,,एक नई तमन्ना ,,एक
नई उमंग होती है ,बस पुराने को हम भूल जाते है ,, पुराना भी कभी नया था
,,इस पुराने का हमने नए के वक़्त ऐसा ही स्वागत किया था ,,,बात समझने और
समझाने की ,,है जो आता है वोह जाता है ,,जो बीतता है वोह कल और जो रहता है
वोह आज ,जो आएगा वोह आनेवाला कल होता है ,,लेकिन चले जाने
वाले को कोई याद नहीं करता ,,साल भी कैलेंडर होते है ,,,लोग भी पोस्टर में
,,रह जाते है ,इतिहास बन जाते है ,आज अकबर जिसके मारे देशः कांपता था
,,उसका नाम ओ निशान नहीं ,है बहादुर शाह ज़फ़र जिसने आज़ादी की पहली जंग में
अपना राजपाठ न्योछावर कर अंग्रेज़ो के हाथो तकलीफे उठायी उसे भुला दिया गया
है ,,,पुराने कई आये ,,कई चले गए ,,,खुद हमारे पूर्वजो के हमे पुरे नाम याद
नहीं होते ,,कोई बढ़ी शख्सियत हमारे पूर्वज रहे हो तो हम गर्व से उनका नाम
लेते है पीडियो तक हमारी पीडियां उसे भुला नहीं पाती है ,,तो जनाब आना
,,जाना ,,नया ,,पुराना छोडो ,करनी ऐसी कर चलो ,के जग सारा याद रखे ,,गाँधी
को मार दिया ,,,देशद्रोहियो ने गांधी को बुरा भला कर ,गांधी को मारने वाले
को भगवान बना दिया ,,आज गुंडे बदमाशों को लोग याद कर रहे है ,,,लेकिन एक
पीढ़ी के बाद उन्हें भुला दिया जाता है ,,याद नहीं रखा जाता ,,झूंठ और अफवाह
की हद यह है के नया साल मत मनाओ आज के दिन भगत सिंह को फांसी हुई थी
,,,अफवाहे फैलाते ,,है ,,,एक प्रधानमंत्री पूर्व प्रधानमंत्री ,,पूर्व
उपराष्ट्रपति को सार्वजनिक रूप से पाकिस्तानी राजनयिक के साथ खाने के नाम
पर ,गद्दार ठहराने का ऐलान करते है ,,वोट लेते ,है ,,मस्त रहते है ,,लेकिन
सच याद रहता है ,झूंठ लोग भूल जाते है इसलिए झूंठ को याद रखना पढ़ता है
,,शर्मसार झूंठ पकड़े जाने पर शर्मिंदा होते है ,,,झूंठ के बेशर्म आदतन
अपराधी झूंठ पकड़े जाने पर ,,धन बल ,,भुज बल ,,के आधार पर झूंठ को सच साबित
करना चाहते है ,,इतिहास बदलना चाहते है ,भवन ,,मोहल्लो ,,शहरो के नाम
गुलामी का प्रतीक बताकर बदलते है जबकि अँगरेज़ ,,,पर्सियन पूरी सभ्यता का
नाम परिवर्तित कर ,,हमे ,,हमारी संस्कृति को जो नाम दे गए है उसे हम बदलने
की नहीं सोचते ,उसे तो हम गर्व से कहते है ,,हमारी सोच ,,हमारी समझ ,,देश
के लोगो को ,,रोज़ी रोटी ,उपलब्ध करना ,,सुकून उपलब्ध कराना नहीं ,,लोकतंत्र
को भीड़तंत्र में बदलना ,,जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत चरितार्थ करना
,,सिर्फ कुर्सी ,,सिर्फ कुर्सी हथियाना ,,संसद सहित सभी जगह पर मिला जुला
खेल खेलना ,,यही सब आज देश में है ,,लेकिन हमे बदलना होगा ,,हमे नया होना
होगा ,हमे कुछ सीखना होगा ,,हमे देश ,,देश के क़ानून ,,देश के लोगो के साथ
प्यार करना होगा ,,,,हमे सुकून के लिए दुसरो को सुकून देना होगा ,,बस ऐसा
हुआ तो स्वागत है ,यादगार ,है ,,,,वरना ,,सिकंदर बनकर कई आये ,कई चले गए
,,उन्हें याद रखने वाला भी कोई नहीं है ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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