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12 जनवरी 2018

कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल उठाए

आजाद भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने शुक्रवार को मीडिया के सामने आकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल उठाए। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद चारों जजों ने एक चिट्ठी जारी की, जिसमें गंभीर आरोप लगाए गए हैं। जजों के मुताबिक यह चिट्ठी उन्होंने चीफ जस्टिस को लिखी थी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित 7 पन्नों के पत्र में जजों ने कुछ मामलों के असाइनमेंट को लेकर नाराजगी जताई है। बता दें कि जजों का आरोप है कि चीफ जस्टिस की ओर से कुछ मामलों को चुनिंदा बेंचों और जजों को ही दिया जा रहा है,,,,,, घोर दुख और चिंता है इसलिए लेटर लिखा है। यह सही होगा कि आपको लेटर के जरिये मामले को बताया जाय। हाल में जो आदेश पारित किये उससे न्याय प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ा है साथ ही सीजेआई के ऑफिस और हाई कोर्ट के प्रशासन पर सवाल उठा है।
- यह जरूरी है कि उक्त सिद्धान्त का पालन हो और सीजेआई पर भी वह लागू है। सीजेआई खुद ही उन मामलों में अथॉरिटी के तौर पर आदेश नहीं दे सकते, जिन्हें किसी और उपयुक्त बेंच ने सुना हो चाहे जजों की गिनती के हिसाब से ही क्यों न हो। उक्त सिद्धान्त की अवहेलना अनुचित, अवांछित और अशोभनीय है। इससे कोर्ट की गरिमा पर संदेह उत्पन्न होता है।चीफ जस्टिस बनाम 4 जज: सामने आई जजों की चिट्ठी, लगाए गंभीर आरोप
- घोर दुख और चिंता है इसलिए लेटर लिखा है। यह सही होगा कि आपको लेटर के जरिये मामले को बताया जाय। हाल में जो आदेश पारित किये उससे न्याय प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ा है साथ ही सीजेआई के ऑफिस और हाई कोर्ट के प्रशासन पर सवाल उठा है।
- यह जरूरी है कि उक्त सिद्धान्त का पालन हो और सीजेआई पर भी वह लागू है। सीजेआई खुद ही उन मामलों में अथॉरिटी के तौर पर आदेश नहीं दे सकते, जिन्हें किसी और उपयुक्त बेंच ने सुना हो चाहे जजों की गिनती के हिसाब से ही क्यों न हो। उक्त सिद्धान्त की अवहेलना अनुचित, अवांछित और अशोभनीय है। इससे कोर्ट की गरिमा पर संदेह उत्पन्न होता है।
- 27 अक्टूबर, 2017 को आर.पी. लूथरा बनाम केंद्र को आपने सुना था। पर एमओपी मामले में सरकार को पहले ही कहा जा चुका है कि वह इसे फाइनल करे। ऐसे मामलों को संवैधानिक बेंच को ही सुनना चाहिए कोई और बेंच नहीं सुन सकता।
- एमओपी के लिए निर्देश के बाद भी सरकार चुप है ऐसे में ये माना जाय कि सरकार उसे मान चुकी है। कोई और बेंच उस पर टिप्पणी न करे। जस्टिस कर्णन केस का भी जिक्र किया गया और कहा कि जजों की नियक्ति को लेकर सवाल उठे थे और उसे दोबारा देखने को कहा था साथ ही महाभियोग का विकल्प भी तलाशने को कहा था पर फिर भी एमओपी की चर्चा नहीं हुई थी।
- एमओपी गंभीर मामला है अगर मामला सुना भी जाये तो संवैधानिक बेंच ही सुने। ये तमाम बातें गंभीर हैं और चीफ ड्यूटी बाउंड है और सही रास्ता निकलते हुए ठीक करें।

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