आपका-अख्तर खान

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10 अक्तूबर 2017

औरतें जागती है तो

ये ओस हैं इन्हें धूप की नज़र मत लगाओ...
औरतें जागती है तो
जागती है तकिये की नीचे रखी चूड़ी
शीशे पर चिपकी बिंदी
गैस की आग
बन्द डिब्बों के मुँह खुलते है
खिड़की पर सवेरा जागता है

औरतें जागती हैं तो
नल का पानी
बाबा की आवाज
बच्चे की दबी किताब
रेडियो पर भजन और गीत जागता है
ये जागती हैं तो
सड़कों की चहक पहल जागती है
तुलसी की पत्ते जागते हैं
मोगरों की खुशबु जागती है
दरवाजों पर पड़े ताले खुलते हैं
चौखटों की सांस जागती है
ये जागती है तो रात पढ़े उपन्यास का अकेला पात्र इनके कन्धे पर रो गया होता है
एक अनाथ बच्चा चिपका होता है इनकी छाती से
बेघर हुई औरत इनके घरों के कोने में दुबकी दिखती है
ये औरतें सबके लिए जागती है
उन अनाम अनजान पात्रो के लिए भी
इन्हें जागने दो
ये हमारे घर में तैनात अप्सराये हैं
ये बेजान में जान डालती है
ये आग उसर बंजर का खेल जानती है
ये धागों से पतंग बुनती हैं
ये जागती हैं तो कितनी बूढी आवाजें जागती है
भूख जागती है
प्यास जागती है
अपने कन्धों पर सुकून की रात दो इन्हें
ये जागेंगी तो मीलों फैला उदास मैदान हरा हो जायेगा
जब ये
इया को घुमाने
बाबा को धूप में बैठाने
मुन्ना को चलना सिखाने
इस मैदान में आएँगी ...
#Shailja_Pathak

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