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11 अगस्त 2017

दरगाह शाह आलम ,,ागुजरत राज्य के अहमदाबाद ,में ,एक मोजज़ा ,,एक ,बहतरीन मुदर्रिस ,,एक चमत्कारिक मुदर्रिस का मज़ार

दरगाह शाह आलम ,,ागुजरत राज्य के अहमदाबाद ,में ,एक मोजज़ा ,,एक ,बहतरीन मुदर्रिस ,,एक चमत्कारिक मुदर्रिस का मज़ार है ,इस ऐतिहासिक मदरसे में ,,,शाह आलम और उनके पड़पोते सय्यद जलालुद्दीन हुसैनी बुखारी ,,,,का मज़ार ,,जहाँ हर रोज़ ,,इबादतगारो ,,ज़रूरतमंदो ,खुदा की बारगाह में सर झुकाने वालो का मेला लगता है ,इस आलिशान एतिहासिक ईमारत में ,,बढ़ी मस्ज्दि ,, मदरसा ,,वुज़ू के दो होज़ ,,दो दरगाह और कई मज़ारात सहित कुछ इमारते बनी है जो सच अपने आप में एक मिसाल है ,,,,,हज़रत सय्यद बुरहानुद्दीन क़ुतुब ऐ आलम सय्यद सिराजुद्दीन मोहम्मद के बेटे ,,,शाह ऐ आलम ,,यानि पूरी दुनिया के बादशाह हैं ,,उनके कई मोजज़े ,,आज भी लोगो के लिए नज़ीर बने है ,,,उनके पड़पोते सय्यद जलालुद्दीन हुसैनी बुखारी ,,जिन्हे मखदूम जैहानियाँ जेहान गश्त के नाम से भी जाना जाता है ,,सभी जानते है के शाह ऐ आलम की शक्ल हूबहू हुज़ूर स अ व की तरह मिलती थी ,,अहमदाबाद में वोह मदरसे में बच्चो को पढ़ाते थे ,अचानक वोह बीमार हो गए ,,कई दिनों तक बच्चो को मदरसे में जाकर पढ़ा नहीं सके ,,लेकिन जब वोह ठीक हुए और मदरसे में बच्चो को पढ़ाने के लिए गए ,,जिस खाट पर वोह बैठकर बच्चो को पढ़ाते थे ,,उस पर बैठकर जैसे ही बच्चो को पुराना सबक़ दिया ,,तो बच्चो ने उन्हें आगे का सबक़ बताया ,,उन्हें ताज्जुब हुआ ,,बच्चो को इतने दिनों के आगे का सबक़ कैसे याद हुआ ,,बच्चो ने कहा ,,आप रोज़ हमे पढ़ाने आते हो ,,आप ही ने सबक़ पढ़ाया है फिर क्यों सबक़ पढ़ाने से इंकार करते ,,हो ,,बच्चो ने खाट की तरफ इशारा करके जब कहा के इसी खाट पर बैठ कर आपने हमे सबक़ याद कराया है ,,,यह सुनते ही ,,शाह ऐ आलम ,को सारी बात समझ में आ गयी ,,वोह खाट पर से उठे ,,और उसी दिन से उन्होंने उस खाट को इज़्ज़त से अलग रखकर उसे चूमना शुरू कर दिया ,,वोह समझ गए थे ,,के बच्चो की पढ़ाई गाफिल न हो ,इसलिए उनकी बीमारी के वक़्त ,,हुज़ूर स अ व बच्चो को पढ़ाने के लिए खुद आये ,,शक्ल ,शुबात एक सी होने से बच्चे समझ न पाए ,,वोह खाट आज भी मुक़ददस पाक होकर इस मस्जिद में ज़ियारत के लिए रखी है ,,वोह बात लग है उसका वुजूद ,,मखमल के कपड़े से ढक दिया गया है ,,वहां दो खाटे एक वोह खाट जिसपर बैठ कर हुज़ूर स अ व पढ़ाया था ,दूसरी वोह खाट जिसपर बैठ कर वोह बच्चो को फिर नई खाट लेकर पढ़ाने लगे थे ,,इसी तरह से उनके पढ़पोते सय्यद जलालुद्दीन हुसैनी बुखारी बेहद जलाली थे ,,उनकी शहादत ऐ विसाल के बाद भी उनकी गर्मी उनका गुस्सा ऐसा था ,के उन्हें क़ब्र में रखते और वोह क़ब्र फाड़ कर बाहर आ जाते ,,उनके जलाल को ठंडा करने के लिए ,,हुज़ूर स अ व के नाल ऐ मुबारक ,,क़दम चिन्ह लाये गए उनके सीने पर ,इन क़दमों के चिन्ह ,,नाल ऐ मुबारक को रखा गया ,,तब कहीं उनका जलाल ठंडा हुआ और वोह क़ब्र में आराम फरमा है ,,मुगलकाल की बनी इमारतों में मदरसा ,,मस्जिद ,,सहित एक आलीशान नक़्क़ाशी मीनारों वाली इमारत देखने लायक है,,दादा और उनके पढ़पोते की यह दरगाह जहाँ पुरे विश्व के बादशाह क़ुतुब ,,शाह ऐ आलम ,,और पुरे विश्व के जलालुद्दीन पड़पोते आराम फरमा है ,,इस दरगाह की ज़ियारत सुकून देने वाली है ,,सरकार ने इस इमारत ,,इस दरगाह को ,पुरातत्व महत्व का घोषित तो किया है ,,लेकिन इस इमारत के रखरखाव के लिए कोई उचित व्यवस्था हरगिज़ नहीं की गयी है ,,,,यहां रोज़ मेला लगता है ,ज़ायरीन दूरदराज़ से आकर अपनी दुआएं क़ुबूल करवाने की सिफारिशें करते है ,फातिहा पढते ,है ,,नमाज़ पढ़ते है ,,हर जुमे को इस दरगाह में ईद जैसी भीड़ मौजूद रहती है ,,,,दरगाह के इतिहास को छोटी जानकारी बनाकर ,,उर्दू ,,अंग्रेजी और गुजरती में बोर्ड बनाकर लिखा गया है ,लेकिन उर्दू और अंग्रेजी में विरोधाभास है ,उर्दू के बोर्ड पर हुज़ूर स अ व के मदरसे में आकर पढ़ाने और खाट को इज़्ज़त से रखने की हक़ीक़त तस्दीक़ी बयांन है जो जानकारी अंग्रेजी के बोर्ड में अंकित नहीं है ,,विश्व के बादशाह कहे जाने वाले ,शाह ऐ आलम ,इबादतगार की इस दरगाह की यह ज़ियारत ,,,अख्तर खान अकेला ,,अब्दुल करीम खान पिंकी ,,हाफिज अब्दुल रशीद क़ादरी ,,,तबरेज़ पठान के लिए अहमदाबाद यात्रा और अहमद पटेल के चुनाव में अहमद पटेल की जीत को ऐतिहासिक बना दिया ,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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