दोस्तों
इन दिनों ,,कोटा ,,राजस्थान ,,पुरे हिंदुस्तान में ,,न्यायालय की अवमानना
मामलों को लेकर ,,वकील ,,न्यायाधीशों के सम्बन्धो में ,,दरार बढ़ती जा रही
है ,,राजस्थान तो ,,बार कौंसिल ,,के चुनाव नहीं होने से ,,वकीलों के
प्रतिनिधित्व ,,नेतृत्व मामले में ,,,अनाथ सा हो गया है ,,वकीलों का
,,,राजस्थान स्तर पर,,, कोई धनी धोरी,,, नज़र नहीं आ रहा है ,,शायद
इसीलिए,,, राजस्थान में बार और बेंच के सम्बन्ध ,,सुमधुर ,,गलतफहमी युक्त
बनाने की पहल ,,,शुरू नहीं हो सकी है ,,,कोटा के दो वकील ,,,कल्पित शर्मा
,,भूपेंद्र मित्तल के खिलाफ न्यायलय की अवमानना मामले की,,, तलवार लटका दी
गयी है ,, में धन्यवाद देना चाहूंगा ,,कोटा अभिभाषक परिषद के पूर्व अध्यक्ष
रघु गौतम को जिन्होंने उनके कार्यकाल में ,,तात्कालिक सचिव ,,,के विरुद्ध
अवमानना मामले की कार्यवाही ,,हाईकोर्ट के शीर्ष स्तर पर वार्ता के सुमधुर
सम्बन्धो के साथ ड्राप करवा दी थी ,,कोटा ने तो अब अपने वकील साथियो की
मोत पर ,,सुबह ग्यारह बजे होने वाली शोकसभा ,,का वक़्त भी दबाव में बदलकर
तीन बजे अपराह्नन का कर दिया है ,,,,कार्य स्थगन नगण्य सा हो गया है
,,सिर्फ इसलिए दो क़दम बार आगे बढ़ी है तो क़दम सुमधुर सम्बन्ध के लिए बेंच भी
आगे बढे ,,दोस्तों ,,,एक तरफ छोटे शहरो में ,,विवाद बढ़ते जा रहे है ,,,तो
दूसरी ,तरफ ,न्यायलय की अवमानना मामले में,,पश्चिमी बंगाल के हाईकोर्ट जज
,, जस्टिस करनन ,जो डंके की चोट पर ,, जजों के खिलाफ,,, भ्रष्टाचार मामलों
की ,,,जांच की मांग ,,,उठा रहे है ,,, उनके और सुप्रीम कोर्ट के ,,,जजों
के बीच उपजे विवाद ने ,,न्यायालय में ,,,भ्र्ष्टाचार के आरोपो की जाँच,,,
करवाने की मांग पर ,,,,,कामकाज की गयी टिपण्णी को लेकर ,,ऐसे आरोपों की
जांच करवाये बगेर,, क्या ,न्यायलय की अवमानना ,,,मामला बनता है ,,इस पर
,,,एक बहस छिड़ गयी है ,,न्यायालय की अवमानना का क़ानून ,,,न्यायलय की गरिमा
को,,,सुरक्षित रखने ,,बेवजह न्यायलय की,, मर्यादाओं को भंग करने वाले
,,,लोगो को दण्डित करने के लिए,, बनाया गया है ,,फिर वोह चाहे ,,वकील हो ,,
पक्षकार हो तृतीय पक्षकार हो,, या फिर खुद न्यायालय में बैठकर,,, कामकाज
निपटाने वाले स्टाफ के सदस्य या ,,न्यायिक अधिकारी हो ,, उन पर यह लागु
होता है ,,बहुत मुश्किल काम है,, ऐसे मामलों का निर्धारण करना , राजस्थान
सहित पुरे देश में भ्रष्टाचार के आरोप में कई जज नोकरी से निकाले गए है
,,कई जजों को जबरी सेवानिव्रत्ति दी गयी है ,,बात साफ़ है कहीं न कहीं गड़बड़
तो है ,,,राजस्थान में तो जज स्तर की भर्तियों में भारी घोटाला ,,फिर
वकीलों के दबाव में भर्ती रदद् कर ,दुबारा से करना एक उदाहरण है ,आम तोर पर
शिकायतकर्ता ,,वकील ,,जज ,,स्टाफ होते है ,ऐसे में जज ,,खुद गवाह ,,वकील
खुद गवाह ,,स्टाफ अधीनस्थ ,,पक्षकार प्रभावित ,,फैसला कैसे हो ,इसे रोकने
के लिए ,,निष्पक्ष जांच के लिए ,,सभी अदालतों में कामकाज की समीक्षा ,,वकील
,,जज ,,स्टाफ ,,पक्षकार की गतिविधियों की पारदर्शिता व्यवहार आंकलन के लिए
सी सी टी वी केमेरे लगाना ज़रूरी हो गया है ,,हम दो वर्षो से इस मामले में
,,देश की सभी अदालतों ,,हाईकोर्ट ,ट्रिब्यूनल ,,सुप्रीमकोर्ट में सी सी टी
वी कैमरे लगाने की मांग कर रहे है ,,एक तरफ देश में जजों की नियुक्ति
,,उनके आचरण को सन्तुलित करने के लिए ,,न्यायिक आयोग की मांग बढ़ रही है
,,दूसरी तरफ इस तरह की घटनाओ ने कामकाज को प्रभावित किया है ,,ज़रा सोचे
,,देश में किसी भी पद के लिह चयन के लिए ,,प्रतियोगी परीक्षा
,,साक्षात्कार से गुज़रना ज़रूरी है ,,लेकिन हाईकोर्ट जज बनाते वक़्त ,,कोई
प्रतियोगी परीक्षा नहीं ,,की साक्षात्कार नहीं ,,सिर्फ पिक एंड चूज़ का
फार्मूला ,,मर्यादित तो नहीं ,,निष्पक्ष तो कहा नहीं जा सकता ,ऐसे में अगर
,,हाईकोर्ट जज की नियुक्ति के लिए ,,आवेदन मांग कर ,,प्रतियोगी परीक्षा
करवाकर ,,गुणवत्ता के , आधार पर चयन हो ,,,तो ,,शायद ,,,न्यायिक व्यवस्था
में और निखार आये ,, ,जज मामले में भी ,,ऐसे ही ,,प्रतियोगी परीक्षा के
बाद,,, चयन को आधार बनाया गया है ,,खेर यह सँवैधानिक व्यवस्था है ,,लेकिन
वर्तमान हालातों में छूट पुट ,,वकील और जजों के बीच के मामलों में
,,न्यायलय की अवमानना मामले,,, बनाये जाने लगे ,,तो विवाद और बढ़ेंगे ,,ऐसे
मामलों में ,,प्रसंज्ञान या नोटिस देने के ,पहले ,समझाइश का दौर ज़रूरी
होना ,चाहिए ,,वकील और जज के विवादों ,,में,, न्यायालय की अवमानना मामले
में,, एक विस्तृत गाइड लाइन तैयार होना चाहिए ,,वकील हो ,,पक्षकार हो
,,न्यायिक अधिकारी हो ,,न्यायलय की मर्यादाओ का सम्मान ,,,सभी की
ज़िम्मेदारी ,है ,वर्तमान हालातो में,,, कोटा की एक अदालत में जिरह के दौरान
सवाल पूंछने पर ,,न्यायलय की अवमानना का मामला ,,एक पदाधिकरी द्वारा
,,,जज से व्यवहार परिवर्तन का सुझाव देने पर ,,अवमानना का मामला ,सामान्य
सी बात है ,,अगर न्यायलय ,,,नोटिस जारी करने के पूर्व ,,बहुपक्षी समझौते के
साथ ,,,आचरण सुधारने की चेतावनी देते हुए ,,ऐसे मामलों का निस्तारण ,करे
,जज वकीलों के व्यवहार में परिवर्तन करे,, तो सभी व्यवस्थाएं सुदृढ़ हो
सकती है ,,ऐसे मामलों में शिकायतों की पूर्व जांच और सुनवाई के लिए एक
प्राधिकरण या समिति का गठन होना चाहिए जिसमे जज ,,वकीलों के प्रतिनिधियों
को सदस्य बनाना चाहिए ,,राजस्थान तो वेसे वकीलों के संगठन मामले में
अलोकतांत्रिक व्यवस्था के दौर से गुज़र रहा है ,यहां बार कौंसिल के चुनाव
नहीं हुए है ,,बार कौंसिल का चुनाव जो लड़कर निर्वाचित हो ,,उसके लिए
पाबन्दी होना चाहिए के वोह आगामी पांच वर्षो तक ,,कार्यकाल समाप्ति के बाद
भी ,,हाईकोर्ट जज या किसी दूसरे पद पर नियुक्त नहीं होगा सम्बन्धित
घोषणापत्र देगा ,,,तब कहीं बार और बेंच के बीच बहतर सम्बन्धो की स्थापना की
शुरुआत हो सकेगी ,,क्योंकि बार कौंसिल में निर्वाचित होने के बाद कुछ लोग
,,बेंच से नज़दीकी बढ़ाकर खुदका नाम हाईकोर्ट जज के पैनल में भिजवाने के
आरोपो से भी घिरे ,है ऐसे में वकीलों का निष्पक्ष नेतृत्व सम्भव बनाने के
लिए ,,बार कौंसिल चुनाव में निर्वाचित लोगो के लिए ,, आचरण नियम बनाना
ज़रूरी ,,है ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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