काश कोटा अदालत परिसर से पांच सो मीटर की दूरी पर स्थित ,,अस्पताल से
एम्बुलेंस 108 तुरन्त अदालत परिसर पहुंच जाती ,,काश अदालत परिसर ,,या
कलेक्ट्रेट में फर्स्ट ऐड की व्यवस्था रहती तो शायद एक व्यापारी प्रोपर्टी
डीलर कोटा दादाबाड़ी निवासी डी एल वर्मा की जान बच जाती ,,लेकिन ऐसा हो
नहीं सका और घर से हंसता खेलता ,,स्वस्थ व्यक्ति तारीख पेशी पर आया और फोन
पर बात करते करते ही अचेत होकर मिनटो चल बसा ,,वैसे तो गीता का ज्ञान
,,म्रत्यु शाश्वत है ,,कुल्लू नअफ़्सूं ज़ायक़ातुल मोत ,,हर इंसान को मोत
का मज़ा चखना है ,,,लेकिन सावधानियां हो तो कई अकाल म्रत्यु रोकी जा सकती
है ,,अदालत परिसर में दो माह पूर्व एक तारीख़ पेशी पर आये एक युवक की अचानक
करंट लगने से मोत हुई ,,आज अदालत परिसर में हष्ट पृष्ठ व्यक्ति तारीख पेशी
पर आया ,,तारीख पेशी की उपस्थिति के बाद वोह किसी से फोन पर बात कर रहे थे
,,बस अचानक उन्हें साइलेंट अटेक आया ,,वोह गिरे ,,आसपास के लोग उन्हें
सम्भालने दौड़े ,,वकीलों ने एम्बुलेंस 108 को तत्काल फोन किया ,,एम्बुलेंस
तो नहीं आई ,,अदालत चौकी की पुलिस के जवानों ने इस शख्स को उठाने की कोशिश
की लेकिन इनके प्राण पखेरू उड़ चुके थे ,,कोटा अदालत परिसर और कलेट्रेट
परिसर के पांच सो मीटर दूरी पर ही अस्पताल स्थित है ,,लेकिन इस क्षेत्र में
आये क़रीब दस हज़ार लोगो की आवाजाही के बाद तत्काल स्वास्थ्य खराब या
दुर्घटना होने के बाद यहां कोई तत्काल फर्स्ट ऐड व्यवस्था नहीं है ,,जबकि
कलेक्ट्रेट में आपदराहत दल ,,सिविल डिफेन्स से जुड़े लोग मौजूद रहते है
,,ह्यूमन रिलीफ सोसाइटी की एक याचिका पर राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग के
समक्ष मुख्य सचिव अदालत परिसर बेरक के पास ही एक डॉक्टर अस्थाई रूप से
फर्स्ट ऐड व्यवस्था के लिए बिठाने की लिखित अंडरटेकिंग दी थी ,,,लेकिन
पन्द्रह साल से भी अधिक वक़्त गुज़रजाने के बाद भी आज तक यहां अस्थाई
डिस्पेंसरी की व्यवस्था नहीं की गयी है ,,,कोटा अदालत और कलेट्रेट में रोज़
हज़ारो हज़ार लोगो ,,अधिकारियो ,,न्यायिक अधिकारियो ,,केदियो सहित
पुलिसकर्मियों वकीलों की तात्कालिक चिकित्सा फर्स्ट ऐड व्यवस्था के लिए इस
क्षेत्र में एक अस्थाई डिस्पेंसरी की व्यवस्था होना ज़रूरी हो गया है ,,वरना
दो महीने पहले कोटा न्यायालय परिसर में एक युवक की करंट लगने से मोत की
बारी थी ,,आज प्रोपर्टी डीलर पूर्व चाय व्यवसायी डी एल वर्मा की बारी आयी
है ,,कोन जाने आगे कोटा न्यायालय में मेरी या किसी और की बारी आ जाए
,,लेकिन अगर यहां तात्कालिक चिकित्सा व्यवस्था और तत्काल अस्पताल ले जाने
की व्यवस्था हुई तो शायद कुछ लोग बेमौत मरने से बच जाए ,,कोटा अदालत परिसर
में ,,कई साल पहले एडवोकेट जगदीश नारायण माथुर की आकस्मिक म्रत्यु हुई
,,इसके पूर्व एक मजिस्ट्रेट की अदालत परिसर में अचानक अस्पताल में तबियत
खराब हुई ,,उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाने से उनका इलाज सम्भव हो सका
,,एडवोकेट बहादुर सिंह जैन को बीमार हो जाने पर बढ़ी मुश्किलो से अस्पताल ले
जाया गया ,,पिछले दिनों अजय नन्दवाना एडवोकेट की तबियत खराब हुई ,,एडवोकेट
सोहन सिंह की तबियत खराब होने पर भी वोह बिना चिकित्सा परामर्श के घर गए
,,जहां घर की दहलीज़ पर ही उनके प्राण पखेरू हुए ,,,,न्यायालय प्रशासन ,,
अभिभाषक परिषद ,,कलक्ट्रेट परिसर में एक तात्कालिक उपचार व्यवस्था के लिए
नियमित चिकित्सक ,,कम्पाउंडर की व्यवस्था आवश्यक दवाइयों के साथ रहना चाहिए
,,इसके लिए पहल ,,इसके लिए ईमानदारी से प्रयास होना चाहिए ,,,,अख्तर खान
अकेला कोटा राजस्थान
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