कोटा में आज़ादी की लड़ाई के बहादुर सिपाही ,, लाला जय दयाल ,,महराब खान
,,,जिन्होंने कोटा की जनता पर गुलाम बनाकर ज़ुल्म करने वाले अंग्रेज़ो के
पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन और उनके दो पुत्रो को उन्ही के घर में घुस कर
मार दिया था ,,और कोटा को अंग्रेज़ो की गुलामी से आज़ाद कर एक बहादुरी का
इतिहास बनाया था ,,जिन्हें कुछ गद्दारो के मुखबीरी के बाद अंग्रेज़ो और उनके
समर्थको ने गागरोन और गुड़गांव से पकड़वाकर उन्हें यहां रेसीडेंसी हाउस में
फांसी पर लटकवा दिया था ,,,ऐसे बहादुरों को राष्ट्रभक्ति के
लिए फांसी देने की तारीख 17 सितम्बर 1860 होने से अगले महीने सितम्बर की
17 तारीख को क्या उनकी बहादुरी को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि नहीं देना
चाहिए ,, आज़ादी की लड़ाई में हिंदुस्तान में कोटा के इन शहीद लड़ाकों ने
इतिहास रचा है ,, आज़ादी की दीवानगी के लिए यह ,,लाल जय दयाल ,,महराब खान और
इन दोनों का पूरा परिवार क़ुर्बान हो गया ,,जिनके इतिहास को गुमनामी के
अँधेरे में न जाने क्यों ,,किसलिए रखा गया है ,,क्या उन्हें इस दिन 17
सितम्बर को राजकीय समारोह में श्रद्धांजलि देकर नमन नहीं करना चाहिए ,,क्या
ऊनकी याद में कोटा में कोई स्मारक नहीं होना चाहिए ,,क्या उनकी बहादुरी के
किस्से राजस्थान की आज़ादी की शौर्यगाथा के साथ स्कूल के बच्चो को नहीं
पढाई जाना चाहिए ,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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