राजस्थान की महिला मुख्यमंत्री वसुंधरा सिंधिया के गृह जिले के संभाग
मुख्यालय कोटा जिले में ,,पीड़ित महिलाओ को ,,त्वरित इन्साफ दिलाने का
संघर्ष ,,,,राज्य के अल्पमत महिला आयोग ,,और वसुंधरा के कोटा में बैठे
पुरुष अधिकारियो को रास नहीं आया ,,उन्होंने कोटा के महिलाओ को त्वरित
इन्साफ के इस संघर्ष को ,,कोटा जिला समिति के सदस्यो की कार्यवाहियों पर
क़ानूनी सवाल उठाकर कोटा की महिलाओ को न्याय नहीं मिले इसलिए ,,कार्यकर्तओ
की कारगुजारियो पर बेड़ियां डालने की कोशिश की है ,,अफ़सोस तो इस बात का है
के कोटा में अपने भाषणों में जिला समितियों को अधिकार देने की बात कहकर
जाने वाली आयोग की अध्यक्ष श्रीमती सुमन शर्मा ने ,,,अपना पल्ला झाड़ लिया
है ,,इसके पहले भी सुमन शर्मा की एक सदस्य डॉक्टर सौम्या गुर्जर सेल्फी
विवाद के बाद शहीद हो चुकी है ,,मिडिया को प्रदेश की महिलाओ के संरक्षण की
फ़िक्र होना चाहिए ,,,आज प्रदेश में महिलाओ के प्रति अत्याचार बढे है
,,निरन्तर बढ़ रहे है ,,राज्य महिला आयोग का अभी गठन भी नहीं हो पाया है
,,क़ानून की बात अगर हम करे तो अभी तो आयोग को कोई कार्यवाही करने का अधिकार
ही नहीं है ,,आयोग विधि नियम के तहत ,,राज्य महिला आयोग में सुमन शर्मा
चेयरमैन के अलावा ,,तीन महिला सदस्यो की नियुक्ति होना ज़रूरी है ,,,पहले
आदेश में सरकार ने केवल सुमन चेयरमैन नियुक्त किया ,,फिर एक सदस्य का पद
रिक्त रखते हुए ,,डॉक्टर रीता भार्गव ,,डॉक्टर सौम्या गुर्जर को सदस्य
बनाया गया ,,फिर सेल्फी विवाद के बाद डॉक्टर सौम्या गुर्जर के इस्तीफे के
बाद आज महिला आयोग अपँग एक महिला सदस्य और चेयरमेन वाला है ,,,दो सदस्यो के
पद रिक्त चल रहे है ,,ऐसे में विधि अनुसार महिला आयोग को वर्तमान हालातो
में बहुत कुछ कर पाने का हक़ भी नहीं बचा है ,,खेर यह सरकार का आन्तरिक
मामला है ,,लेकिन पिछले दिनों चेयरमैन सुमन शर्मा ने जिला समितियों का गठन
कर महिलाओ को जिलास्तर पर एक मंच दिया था ,,,राज्य में कोटा की श्रीमती
संगीता माहेश्वरी और सदस्यो की सक्रियता और निरन्तर पीड़ित महिलाओ के साथ
उनका दुःख दर्द सुनने के बाद कोटा के पुरुष अधिकारी घबरा गए थे ,,जिला
समिति जो महिला आयोग की एक कड़ी ,,एक सुचना दाता भी मान ली जाए तो भी अगर
कोटा जिला समिति की अध्यक्ष श्रीमती संगीता माहेश्वरी ने अगर जिला मंच के
माध्यम से ,,अस्पताल में करंट आने से महिलाओ और नर्सों की असुरक्षा के
मामले में ,,अस्पताल अधीक्षक को पत्र लिखकर ,,,,इस मामले में रिपोर्ट राज्य
महिला आयोग तक पहुंचाने की सुचना दे भी दी तो कोनसी मुसीबत आ गयी ,,क्या
यह सब राज्य महिला आयोग का दायित्व नहीं है ,,संगीता माहेश्वरी ने खुद तो
अपने लिए रिपोर्ट नहीं मांगी थी ,,अधिकार के खिलाफ खुद को रिपोर्ट पेश करने
के लिए नहीं कहा था ,,,एक मिनट के लिए अगर संगीता माहेश्वरी अगर अगर जिला
मंच की अध्यक्ष भी नहीं होती और वोह महिला उत्पीड़न की साक्ष्यो के साथ
,,महिला आयोग को शिकायत करती तो क्या उस पर कार्यवाही नहीं होती ,,,, सच तो
यह है के संगीता माहेश्वरी की सक्रियता और महिला उत्पीड़न की शिकायतों को
उठाने के उनके तोर तरीक़ो से कोटा के कुछ ब्यूरोक्रेट्स डर गए ,,और महिलाओं
को इन्साफ दिलाने की जगह ,,महिलाओ को इंसाफ दिलाने की कोशिशों में जुटी
,,महिला प्रतिनिधियों को हतोत्साहित कर दिया ,,आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा
को बैकफुट पर आने की जगह ,,जिला समिति द्वारा उठाये गये मुद्दों की मौके पर
पहुंच कर ऑन द स्पॉट जांच करना चाहिए ,,अगर शिकायते झूंठी हो तो ,,महिला
ज़िला समितियों को तुरन्त हटा दे ,,नहीं तो दोषी अधिकारियो के खिलाफ
कार्यवाही कर ,,जिला समिति की पीठ थप थपाये ,,चेयरमैन के बैकफुट पर आने से
काम नहीं चलेगा ,,,वरना आज जिला समितियों की अधिकारिता पर पुरुष वर्ग ने
सवाल उठाये है ,,कल आयोग के कोरम और सदस्यो की नियुक्ति नहीं होने पर उनके
कामकाज ,,उनकी यात्राओं ,,खर्चो पर सवाल उठाकर उन्हें डराने की कोशिश की
जायेगी ,,महिला आयोग को दबंगता से पीड़ित महिलाओ के हक़ में संघर्ष करना
चाहिए और ऐसी समितियां जो उनकी मददगार है ,,उन्हें सरकार से मिलकर अधिकार
दिलवाना चाहिए ,,जबकि आयोग के सदस्यो के रिक्त पढ़े दो पदों पर भी शीघ्र
नियुक्ति करवाना चाहिए ,,,,,सुमन शर्मा अनुभवी है ,,महिलाओ के संरक्षण के
प्रती सजग और सतर्क है उनसे राजस्थान की पीड़ित महिलाओं को बहुत उम्मीदे है
,,वोह कोशिश कर रही है ,,लेकिन उन्हें महिला उत्पीड़न की न्यायिक कार्यवाही
में पुरुषवर्ग द्वारा लगाये जा रहे रोड़ो से सावधान रहना होगा ,,, अख्तर खान
अकेला कोटा राजस्थान
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