आपका-अख्तर खान

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23 जुलाई 2016

इस दोस्त के डी अब्बासी के दिल में आज दुःख मंडरा रहा था

मेरे एक मित्र ,,मित्र क्या अज़ीज़ ,,अज़ीज़ क्या हर दिल अज़ीज़ ,,हर दिल अज़ीज़ क्या ,,एक अच्छे और बहतरीन इंसान ,,जो बिना किसी लालच के लोगो की मदद करने के लिए अपनी पहचान रखते है ,,यारबाजी निभाने की जान रखते है ,,इस दोस्त के डी अब्बासी के दिल में आज दुःख मंडरा रहा था ,,चेहरे पर दोस्तों और दोस्तों द्वारा अपने निकटतम साथियो उनके कार्यक्रमों ,,मोत ,,मय्यत ,,शादी ब्याह ,,बीमारी अजारी के मामले में ,,कमिया तलाश कर मज़ाक़ उड़ाने को लेकर वह चिंतित थे ,,उनका अपना व्यवहारिक ज्ञान था ,,दोस्तों की इंक्वायरी ,,मोत हो गयी तो कितने आदमी थे ,,बहुत कम आदमी थे ,,यह कमी रह गयी ,,वह कमी रह गयी ,,यह आया ,,वह नहीं आया ,,,शादी है तो बाराती इतने कम क्यों थे ,,खाना सही नहीं बना था ,,,लोगों का इन्तिज़ाम सही नहीं था ,,पानी पिलाने वाला कोई नहीं था ,रिश्तेदार नाराज़ थे ,,दहेज़ कम दिया ,,दिखावा ज़्यादा था ,,दुल्हन का मेकअप बहुत था ,,बैठने का इंतिज़ाम सही नहीं था ,,बीमारी हो तो अस्पताल में बेटी नहीं ,,बहु नहीं आई ,,रिश्तेदार नहीं आये ,,वगेरा वगेरा ,,ऐसी कमिया जो दुश्मनो को निकालना चाहिए वोह कमिया दोस्त निकालकर दिल दुखाते है ,,,बात सही है ,,एक कहावत अगर ऐसे दोस्त हो तो फिर दुश्मनो की ज़रूरत कहा है ,,,दूसरी कहावत ,,दोस्त से तो अच्छे दुश्मन होते है ,,जो कमसे कम दुश्मन होकर भी आस्तीन के सांपो की तरह दिल नहीं दुखाते ,,न जाने कितनी कहावते है जो के डी अब्बासी भाई के इस कचोटने वाले दर्द को समझाने के लिए काफी नहीं है ,,,लेकिन उनके इस दर्द को सुनकर मेरे अपने साथियो के अनुभव के साथ साथ कई साथियो के अनुभवों से मेरा मन भी दुखी हो गया ,,फिर दिल को समझाया ,,कुछ लोग ऐसे है तो कुछ लोग ऐसे भी तो है जो मोत मय्यत में बिना किसी मतलब के एक दूसरे को सुचना देते है ,,,जो कुछ कमिया होती है ,,जो कुछ ज़रूरते होती है उसे पूरी करते है ,,अपनी जेब से अपना वक़्त लगाकर बिना कहे ,,कमिया तलाशने की जगह उन कमियों को दूर करते है ,,कुछ लोग होते है जो शादी ब्याह में ,,पानी नहीं है तो पानी लाते है ,, खाना कम पढ़ गया तो चुपचाप उसका इन्तिज़ाम करते है ज़रा भी कुप्रबंध हो तो उसे सुधारते है ,,,अस्पताल में बीमार की तबियत पूंछने गए तो दवाएं लांना है ,,जांचे करवाना है ,,अटेंडेंट ने खाना खाया या नहीं ,,अस्पताल में रुकने की ज़रूरत तो नहीं पूछते भी और ज़रूरत आने पर करते भी है ,,तसल्ली भी हुई ,,के डी अब्बासी भी समझे के दोस्तों में भी पांचो उँगलियाँ बराबर की नहीं होती ,,,,दोस्तों इस पोस्ट की ज़रूरत तो नहीं थी लेकिन व्यवहार की दुनिया में इस मीन मेख निकालने वाले इस दोस्तों की दुनिया में एक दोस्त के ज़मीर को भी अगर झकझोरा जा सका तो सच में अपने आप को धन्य समझूँगा और के डी अब्बासी जैसे सच्चे ,अच्छे लोग फिर दिल से दुखी नज़र नहीं आएंगे ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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