आपका-अख्तर खान

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18 अप्रैल 2016

अजीब हो तुम

अजीब हो तुम
ख्वाब हो तुम
मिलते हो
दिखते हो
वायदे करते हो
भूल जाते हो ,,,
हक़ देते हो
फिर छीन लेते हो
अजीब हो तुम
कभी रुलाते हो
कभी हंसाते हो
कभी प्यास बुझाते हो
कभी तड़पाते हो
कभी तरसाते हो
अजीब हो तुम
फिर भी जैसे भी हो
मेरा नसीब हो तुम
मेरे हो
मेरी ख्वाहिश हो
मेरी चाहत हो तुम ,,अख्तर

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