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18 अप्रैल 2016

मेरे राष्ट्र के स्वाभिमानियों ,,,मेरी भारत माँ की वंदना और जय जयकार करने वाले बहादुरो ,

मेरे राष्ट्र के स्वाभिमानियों ,,,मेरी भारत माँ की वंदना और जय जयकार करने वाले बहादुरो ,,,आप सभी को पता है ,,हमारे देश की आन ,,बान ,,शान ,,और भारतीयता का स्वाभिमान ,,कोहिनूर हीरा ,,भारत की सम्पत्ति होने के बाद भी हम ब्रिटिश की क्विींन एलिज़ाबेथ से हांसिल नहीं कर पा रहे है ,,यह कोहीनूर हीरा जो पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह ने भारत के मयूर आसन से निकालने के बाद छीन कर उड़ीसा के पूरी मंदिर में लगाने की इच्छा जताई थी ,,,उसी हीरे को एक नाबालिग पुत्र के ज़रिये क्वीन एलिज़ाबेथ ,,जिसे माँ कहकर ,,गीत कुछ लोग गाते थे ,,जिसका वंदन कुछ चमचे किया करते थे उन्हें दिलवा दिया गया ,,एक नसीमुद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट में इस कोहीनूर को लाने के बारे में दरख्वास्त लगाई ,,मेरे भारत माँ के जंगजू सिपाहियों ,,भारत माँ की वंदना करने वालों ,,मेरे भारत माँ की जय जय कर करने वालों ,,यह हीरा हमारे देश की इज़्ज़त ,,,अस्मत है ,,यह हीरा हमे हमेशा ब्रिटिश सरकार की गुलामी की याद दिलाने वाला है ,,यह कोहीनूर हीरा ,,हमारे कुछ भारतियों की पोल खोलने वाला है जिसमे कुछ भारतियों ने जो ब्रिटिश सरकार के तनखयये लाठ साहब नोकर थे और फिर क्वीन एलिज़ाबेथ को पहले महारानी ,,फिर माँ कहलवाकर जय जयकार भी करवाई ,,उनकी वंदना भी करवाई ,,ऐसे भारतियों ने इस हीरे को दबाव में हमारी इज़्ज़त को एक आत ताई शासक के सर का ताज बना दिया ,,कोई बात नहीं ,,लेकिन अभी जब पुरे देश में भारत माँ की जय जयकार है ,,राष्ट्रभक्तो की राष्ट्रद्रोहियों को ललकार है ,,,छप्पन इंच सीने की सरकार है तब ,,हमारे इस देश की सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस हीरे को लाने से इनकार करने वाला जवाब देकर पुरे भक्तो ,,पुरे राष्ट्रभक्तो ,,पुरे भारत माँ की जय जयकार करने वालों के जज़्बे को चकनाचूर कर देती है ,,में पूंछता हूँ ,,हमारे देश की आन बान शान ,,,,आज़ादी की ओरिजनल जगमगाहट वाली यह खूबसूरती ,,आज़ादी का यह प्रतीक ,,जिसे आज भी क्वीन एलिज़ाबेथ अपने ताज में सजाकर भारत का मुंह चिढ़ा रही है ,,इसे फिर से भारत लाने के लिए क्या भक्तो ,,क्या भारत माँ के सपूतो ,,क्या राष्ट्रभक्तो ,,,क्या ओरिजनल ,,क्या सो कोल्ड राष्ट्रभक्तो का खून नहीं खोलता ,,,,,,,
कोहिनूर (फ़ारसी: कूह-ए-नूर) एक १०५ कैरेट (२१.६ ग्राम) का हीरा है जो किसी समय विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा रह चुका है। कहा जाता है कि यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। 'कोहिनूर' का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत। यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया, जब ब्रिटिश प्रधान मंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को १८७७ में भारत की सम्राज्ञी घोषित किया।
अन्य कई प्रसिद्ध जवाहरातों की भांति ही, कोहिनूर की भी अपनी कथाएं रही हैं। इससे जुड़ी मान्यता के अनुसार, यह पुरुष स्वामियों का दुर्भाग्य व मृत्यु का कारण बना, व स्त्री स्वामिनियों के लिये सौभाग्य लेकर आया। अन्य मान्यता के अनुसार, कोहिनूर का स्वामी संसार पर राज्य करने वाला बना।
रंजीत सिंह, ने स्वयं को पंजाब का महाराजा घोषित किया था। १८३९ में, अपनी मृत्यु शय्या पर उसने अपनी वसीयत में, कोहिनूर को पुरी, उड़ीसा प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ, मंदिर को दान देने को लिखा था। किन्तु उसके अंतिम शब्दों के बारे में विवाद उठा और अन्ततः वह पूरे ना हो सके। २९ मार्च,१८४९ को लाहौर के किले पर ब्रिटिश ध्वज फहराया। इस तरह पंजाब, ब्रिटिश भारत का भाग घोषित हुआ। लाहौर संधि का एक महत्वपूर्ण अंग निम्न अनुसार था: "कोह-इ-नूर नामक रत्न, जो शाह-शूजा-उल-मुल्क से महाराजा रण्जीत सिंह द्वारा लिया गया था, लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैण्ड की महारानी को सौंपा जायेगा।"
इस संधि का प्रभारी गवर्नर जनरल थे, लॉर्ड डल्हौज़ी, जिनकी कोहिनूर अर्जन की चाह, इस संधि के मुख्य कारणों में से एक थी। इनके भारत में कार्य, सदा ही विवाद ग्रस्त रहे, व कोहीनूर अर्जन का कृत्य, बहुत से ब्रिटिश टीकाकारों द्वारा, आलोचित किया गया है। हालांकि, कुछ ने यह भी प्रस्ताव दिया, कि हीरे को महारानी को सीधे ही भेंट किया जाना चाहिये था, बजाय छीने जाने के; किन्तु डल्हैज़ी ने इसे युद्ध का मुनाफा समझा, व उसी प्रकार सहेजा।
बाद में, डल्हौज़ी ने, १८५१ में, महाराजा रण्जीत सिंह के उत्तराधिकारी दलीप सिंह द्वारा महारानी विक्टोरिया को भेंट किये जाने के प्रबंध किये। तेरह वर्षीय, दलीप ने इंग्लैंड की यात्रा की, व उन्हें भेंट किया। यह भेंट, किसी रत्न को युद्ध के माल के रूप में स्थानांतरण किये जाने का अंतिम दृष्टांत था,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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