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10 अप्रैल 2016

क्या देशभक्ति नारे के नाम पर नफरत फैलाना राष्ट्रवाद है?

क्या देशभक्ति नारे के नाम पर नफरत फैलाना राष्ट्रवाद है?सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ देश में पहली बार पूर्ण बहुमत से केंद्रीय सत्ता में आई बीजेपी के शासनकाल के शुरुआती दौर में ही कभी घर वापसी, तो कभी लव जेहाद,कभी जो हमसे असहमत उसे पाकिस्तान भेजो तथा गाय और गंगा जैसे तमाम विवादित एवं ज्वलंत विषयों पर देश में गर्मागर्म बहस होती देखी गई। इसी प्रकार सहिष्णुता व असहिष्णुता के विषय पर भी एक लंबी बहस चली। इसी दौरान सरकार योजनाबद्ध तरीके से तेल ,,घी ,,पेट्रोल ,,शक़्कर ,,,स्कूल की फीस ,,अस्प्ताल के खर्च ,,दवा ,, बिजली ,,पानी ,,रेल बस के किराए सहित सभी ज़रूरी चीज़ों के भाव बढ़ाती रही ,, चुनावी वायदे पुरे नहीं हुए ,,काला धन वापस नहीं आया ,,सीमाएं सुरक्षित नहीं ,,कश्मीर में तिरंगा फहराने पर पिटाई होती है ,,रोज़गार नहीं है ,,सिर्फ बातें ही बाते है ,,,लेकिन हम और आप इन चीज़ों का विरोध छोड़कर सिर्फ बेवकूफों की तरह ,,राष्ट्रवाद के नाम पर धोखेबाज़ी कर हमारी ताक़त को बांटने वालो के मददगार बन हमारे साथ किये जा रहे धोखे ,,ठगी को भूल गए है ,,कोई आवाज़ नहीं ,,कोई विरोध नहीं ,,सिर्फ माहौल को विवादस्पद बनाकर महंगाई बढ़वाने के ठेकेदारों के झांसों में हम आ रहे है ,,,इन नारों के नाम पर ,,राष्ट्रवाद के नाम पर झुंड बनाकर माहौल खराब करने वालों की निजी ज़िंदगी में कभी आप लोग झांक कर देखो ,,अगर इनकी दोहरी निजी ज़िंदगी से आपको नफरत न हो जाए तो चौराहे पर मेरा सर क़लम करने की आपको इजाज़त है ,,इनसे देश बचाओ ,,एकजुट ,,एक मत हो जाओ ,,,,हमे रोटी चाहिए ,,कपड़ा चाहिए ,,मकान चाहिए ,,रोज़गार चाहिए ,,सुकून चाहिए ,,सीमाएं सुरक्षित चाहिए ,,,
देश के बहुत से बुद्धिजीवियों,लेखकों,समाजसेवियों तथा अन्य विभिन्न क्षेत्र के लोगों द्वारा कथित रूप से देश में बढ़ रही असहिष्णुता के विरुद्ध अपने-अपने सम्मान एंव पुरस्कार वापस लौटाए गए। और विवादों के इसी वातावरण के बीच अब दिल्ली के केंद्रीय विश्वविद्यालय जेएनयू में कुछ छात्रों द्वारा कथित रूप से देश विरोधी नारे लगाए जाने का मामला एक गर्मागर्म बहस का विषय बन गया है।
बीते दिनों महाराष्ट्र में ‘भारत माता की जय’ न कहने को लेकर एक मुसलिम विधायक को निलंबित कर दिया गया। उस विधायक का कहना है कि ‘भारत माता की जय’ नहीं कहेंगे, बल्कि वे ‘जय हिंद’ कहेंगे।
‘भारत माता की जय’ या ‘जय हिंद’, इन दोनों नारों में अंतर क्या है, मैं सचमुच आश्वस्त नहीं हूं, लेकिन इतना जरूर है कि महाराष्ट्र के उस विधायक के निलंबन पर सवाल उठता है कि क्या किसी के एक नारा न लगाने भर से ही उसे निलंबित किया जा सकता है?
जहां तक ‘भारत माता की जय’ के नारे की उत्पत्ति का प्रश्र है तो वास्तव में इसके उद्घोष की शुरुआत भारतीय स्वाधीनता संग्राम के समय हुई थी। स्वाधीनता के संग्राम में जूझ रहे सेनानियों में जोश व उत्साह के संचार हेतु इस उद्घोष को इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि राष्ट्रपिता के पौत्र का कहना है कि गांधी जी इस नारे के लिए किसीको बाध्य करने के विरोधी थे और जब कोई जोश में किसी को इस नारे के लिए जबरदस्ती करता था तो वह उसे रोकते थे। उनका मानना था कि लोगों को इस प्रकार से एक नारे के लिए बाध्य करने से देश टूटेगा। हमारे संविधान में भी ऐसा नही लिखा गया है केवल यही नारा देशभक्ति की पहचान बन सकता है तो इसपर कट्टरता क्यो दिखाई जा रही है?
हमारे देश में हिंदुत्व राष्ट्रवादी जिस प्रकार के राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, वह एक अलग प्रकार का राष्ट्रवाद है। हिंदुत्व का यह राष्ट्रवाद वह राष्ट्रवाद बिल्कुल नहीं है, जिसे एक देश की दूसरे देश के प्रति भावना के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है।
भारतीय मुसलमानों और दलितों को सताना राष्ट्रवाद है। बड़ी आसानी से हम किसी पर अरोप लगाते हुए राष्ट्र-विरोधी शब्द का इस्तेमाल कर लेते हैं। ऐसे में यह कौन तय करेगा कि सकारात्मक राष्ट्रवाद क्या है? परिस्थिति के मुताबिक फिलहाल तो यह कहा जा सकता है कि आप जब तक जोर लगा कर ‘भारत माता की जय’ बोलते रहेंगे, आप भारत में राष्ट्रवादी बने रहेंगे चाहे अंदर से कुछ भी करते रहें।
पिछले दिनों झारखंड में दो मुसलिम व्यक्तियों को मार कर पेड़ से लटका दिया गया क्योंकि वे भैंसों का व्यापार करते थे, गौहत्या के लिए तो नहीं ले जा रहे थे। क्या यह नफरत नहीं है?
देशों की आपसी नफरत के कारण दो विश्वयुद्ध हुए और इन दो विश्वयुद्धों ने यूरोप की प्रांतीयता समाप्त कर दी। लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और यूरोपीय यूनियन को खड़ा किया ताकि मुक्त बाजार के लिए अपने देशों की सीमाएं एक-दूसरे के लिए खोल सकें।
वहीं मौजूदा भारत में राष्ट्रवाद किसी दूसरे देश के विरुद्ध नहीं है, बल्कि यह देश के भीतर ही है। इसीलिए यह यूरोपीय राष्ट्रवाद से अलग है। हमारे महान राष्ट्रभक्त अपने ही लोगों के विरुद्ध हैं, न कि किसी दूसरे देश के विरुद्ध। हमारे नकली राष्ट्रवादी उनके धर्म या विचारों के कारण अपने ही नागरिकों के पीछे पड़े हुए हैं। राष्ट्रवादियों का उन्माद ही उनका असली दुश्मन है। उनका ऐसा करना देश के लिए प्यार नहीं है। यह सिर्फ नफरत है और इतिहास साक्षी है कि नफरत से कभी किसी का भला नहीं हुआ केवल नुकसान उठाना पड़ा है।
इसलिए देशभक्त कहलाने वाले नेताओ को छोड़ कर जनता को जागृत होना पड़ेगा कि चाहे ‘भारत माता की जय’ कहो या ‘जय हिंद’ या ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाओ हम सभी भारतीय हैं और हमें प्रेम से रहना है नफरत से नही क्योंकि नफरत सीमाएं बनाती है, बंटवारे कराती है, युद्ध की आग भड़का देती है परन्तु प्रेम, भाईचारा इन सभी सीमाओं को खत्म कर देती है। कुछ कट्टरपंथी हिन्दुत्व का झंडा उठा कर देश को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे है क्योंकि देश जनता और भाईचारे से बनता है। तो यदि सच्चे देशभक्त एंव राष्ट्रवादी हो तो नफरत को मिटाओ और प्रेम एंव भाईचारे का बीज बोओ और दिखावे के देशभक्तो को बताओ कि ‘बांटो और शासन करो’ का सिद्धांत पुराना हो गया, अब हमारा नारा ‘प्रेम जताओ देश बचाओ’ है।
जब नफरत में केवल नुकसान ही नुकसान है तो प्रश्न यह है कि विवादित एंव ज्वलंत विषयों को हवा देना क्या राष्ट्रवाद है? क्या अपने विचारों को राष्ट्रवाद का नाम देना जनता को धोखा देना नहीं है?

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