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19 नवंबर 2015

7वां पे कमीशनः 23.5% तक सैलरी और 24% बढ़ सकती है पेंशन

7वां पे कमीशनः 23.5% तक सैलरी और 24% बढ़ सकती है पेंशन
नई दिल्ली. सातवें वेतन आयोग (सेवंथ पे कमीशन) ने गुरुवार शाम वित्तमंत्री अरुण जेटली को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्र सरकार के कर्मचारियों का न्यूनतम मूल वेतन 7 हजार से बढ़कर 18 हजार हो जाएगा। वेतन में सालाना 3% इंक्रीमेंट की भी सिफारिश की गई है। दूसरी ओर, पेंशन में औसतन 24% की वृद्धि का प्रस्ताव दिया है। बताया जा रहा है कि कमीशन केंद्रीय सरकार के एम्पलॉइज की सैलरी 23.5% बढ़ाने की सिफारिश की है। बेसिक पे 16% बढ़ाने की बात भी कही गई है। अगर ये सिफारिश लागू की गई तो किसी भी सरकारी कर्मचारी की कम से कम सैलरी हर महीने 18 हजार रुपए हो जाएगी। पेंशन में 24 पर्सेंट बढ़ोतरी की भी सिफारिश की गई है। इन सिफारिशों का 48 लाख कर्मचारियों और 52 लाख पेंशनरों को फायदा मिलेगा। सरकार पर इस बढ़ोतरी से 1.2 लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बताया- सरकार अब इम्प्लीमेंटेशन पैनल बनाएगी, जो सिफारिशों का विश्लेषण करेगी। संभवत: 1 जनवरी से सातवां वेतन आयोग लागू हो जाएगा। आमतौर पर राज्यों द्वारा भी कुछ संशोधनों के साथ इन्हें अपनाया जाता है। आयोग ने असैन्य कर्मचारियों के लिए भी ‘वन रैंक - वन पेंशन’ की व्यवस्था लागू करने की सिफारिश की है। दूसरी ओर, सीबीआई निदेशक का वेतन मौजूदा 80,000 रुपए से बढ़ाकर से 90,000 रुपए करने की मांग को खारिज कर दिया है। आयोग की सिफारिशें जस की तस लागू करने पर सरकारी खजाने पर 1.02 लाख करोड़ रुपए का सालाना बोझ आएगा, जिसमें 28,450 करोड़ रुपए से अधिक का बोझ रेलवे बजट और बाकी 73,650 करोड़ रुपए आम बजट पर जाएगा। 70 साल में सबसे कम बढ़ोतरी : मूल वेतन में 14.27 % की बढ़ोतरी पिछले 70 साल में सबसे कम है। छठे वेतन आयोग ने 20% की सिफारिश की थी, जिसे सरकार ने 2008 में लागू करते समय दोगुना कर दिया था।
सीधी बात- हम चाहते हैं कर्मचारी भी अच्छी लाइफ जिएं- जस्टिस एके माथुर
सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद आयोग के प्रमुख जस्टिस एके माथुर से संतोष ठाकुर की बातचीत...
न्यूनतम वेतन में इजाफे के पीछे आधार क्या था?
महंगाई के मद्देनजर लाइफ स्टाइल को ध्यान में रखा है। ऐसी सैलरी का प्रस्ताव किया जिससे कर्मचारी ईमानदारी से काम करें। ये भी सिफारिश है कि 20 साल परफाॅर्म नहीं करने वाले का इंक्रीमेंट रोक दें।
20 साल का समय देने के पीछे क्या मकसद?
दो वजहें हैं। पहली- जब भी कोई नौकरी ज्वाइन करता है तो कुछ साल प्रोबेशन पर रहता है। उसीके बाद वास्तविक जिम्मेदारी शुरू होती है। दूसरी- उसे परफॉर्मेंस दिखाने का पर्याप्त समय मिले, ताकि वह कोई बहाने न बना सके।
ग्रेड, पे बैंड खत्म और एचआरए क्यों घटाया?
ताकि एक ही बैंड में रहने वाले लोगों के बीच असमान सैलरी-भत्ते खत्म हों। हाउस रेंट इसलिए घटाया क्योंकि पहले यह 30% था, जो 7 हजार की सैलरी पर काउंट होता था। जब न्यूनतम सैलरी 18000 होगी तो उस लिहाज से हमने इसे 24% करने को कहा है।
सभी को वन रैंक, वन पेंशन का सुझाव क्यों?
जो व्यक्ति आज रिटायर हो रहा है और जो दस साल पहले हुआ हो, उनकी पेंशन समान होनी चाहिए। आखिर दोनों के लिए महंगाई तो एक जैसी ही है ना।
सिफारिशों से जो बोझ बढ़ेगा, उसकी भरपाई कैसे होगी?
हमने केंद्र की बैलेंस शीट को देखते हुए ही सिफारिशें की हैं। नफा-नुकसान का पूरा आकलन किया है। सिफारिशों पर अमल से सरकार पर एक लाख 2 हजार करोड़ रुपए का बोझ आएगा। लेकिन हमने जो विश्लेषण किया है, उसके मुताबिक सरकार के पास कई विकल्प हैं, जिनसे बोझ से बचा जा सकेगा।

आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अफसरों को भी बड़ा फायदा पहुंचाया?
हमारे विश्लेषण के मुताबिक मिडिल लेवल के कर्मचारी को तो निजी कर्मचारी से ज्यादा वेतन-भत्ता मिलता है, पर वरिष्ठ अफसरों की तनख्वाह निजी कर्मचारी से कम ही होती है। ऐसे में सीनियर लेवल के अफसर निजी क्षेत्रों में चले जाते हैं। इसे रोकने के लिए ही सिफारिश की गई है। इसीलिए कैबिनेट सचिव की सैलरी को ढाई लाख रुपए करने का प्रस्ताव दिया है। जहां तक आईपीएस और फॉरेस्ट सर्विस की बात है तो उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दो साल अतिरिक्त इंतजार करना पड़ता था। हमने कहा है कि यह खत्म किया जाए। जिसने भी राज्य में 17 साल की सेवा की है उसे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए उपयुक्त माना जाए। यह उनका अब तक नहीं मिला हक देने जैसा है।
क्या राज्य अपने कर्मचारियों पर ये सिफारिशें लागू करेंगी?
हमने राज्यों के बारे में नहीं सोचा। राज्य इसे मानने या न मानने को स्वतंत्र हैं। 6ठे आयोग की सिफारिशों को भी कई राज्यों ने नहीं माना था।
मेडिकल अलाउंस क्यों हटाया?
हमने सिफारिश की है कि वो मेडिकल अलाउंस से हटे। इसके बजाय सभी कर्मचारियों को हेल्थ इंश्योरेंस लेने को प्रेरित करे। वेतन अच्छा-खासा बढ़ रहा है, तो स्वास्थ्य और भविष्य के लिए उन्हें इतना तो करना चाहिए। सरकार के बजाय इसका भार कर्मचारी खुद उठाएं। जब तक ऐसा नहीं होता है, तब तक सरकार सीजीएचएस सेवा को विस्तार दे।
7th पे कमीशन सिफारिशों की खास बातें
- सभी को एक जैसी पेंशन दिए जाने की सिफारिश की गई है।
- भत्तों में 67 पर्सेंट बढ़ोत्तरी की सिफारिश।
- सैलरी में हर साल 3 पर्सेंट बढ़ोत्तरी की सिफारिश।
- सरकार पर पड़ेगा 1 लाख 2 हजार करोड़ का भार।
- ग्रैच्युटी 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख की जाए।
- GDP का 0.6 पर्सेंट बोझ पड़ेगा।
-पैरामिलिट्री फोर्स के जवान या अफसर की ड्यूटी के दौरान किसी वारदात में मौत होने पर उसे शहीद का दर्जा दिया जाएगा।
-वन रैंक वन पेंशन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू किया जाएगा। इसके दायरे में 10 साल पहले रिटायर हुए कर्मचारी भी आएंगे।
-एक सैलरी, एक पोस्ट का नियम लागू किया जा सकता है।
-ग्रेड पे को खत्म किया जा सकता है।
-सरकारी कर्मचारियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम लागू की जा सकती है।
-सिफारिशों का फायदा, ऑटोनॉमस बॉडीज, यूनिवर्सिटीज और पीएसयू के कर्मचारियों को भी मिलेगा।
-कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद सिफारिशों को लागू करने में लगेंगे चार महीने।
-52 भत्तों को खत्म करने का सुझाव।
-सेंट्रल सर्विसेज में बराबरी की सिफारिश।
-सिफारिशें लागू हुईं तो यूनियन बजट पर 73650 करोड़ और रेल बजट पर 28450 करोड़ का बोझ पड़ेगा।
-आईएएस के बराबर ग्रुप ए के अफसरों को मिलेगी सैलरी।
क्या कहते हैं EXPERTS?
7th पे कमीशन की सिफारिशें लागू होने से आम बजट पर भयानक बोझ पड़ेगा और उससे महंगाई बेतहाशा बढ़ेगी। -संतोष महरोत्रा , पूर्व निदेशक, योजना आयोग
वेतन आयोग की सिफारिशें अर्थव्यवस्था के लिए डिमांड बूस्टर्स का काम करेगी। इससे अर्थव्यवस्था को 1 लाख 51 हजार करोड़ का बूस्टअप मिलने वाला है। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में डिमांड बढ़ेगी। - डीके पंत, अर्थशास्त्री

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