कभी गुनगुनाता था
जिस ग़ज़ल को में
आज मेने उस ग़ज़ल को
किसी के होंठो से सुना है
कभी गुनगुनाता था
जिस ग़ज़ल को में
वोह ग़ज़ल खुद ही
दूसरे के होंठो पर चली गई
बस फख्र है तो इतना
मेरी ग़ज़ल किसी भी होंठ पर हो
दिल में उसे मेरे ही रहना है ,,अख्तर
जिस ग़ज़ल को में
आज मेने उस ग़ज़ल को
किसी के होंठो से सुना है
कभी गुनगुनाता था
जिस ग़ज़ल को में
वोह ग़ज़ल खुद ही
दूसरे के होंठो पर चली गई
बस फख्र है तो इतना
मेरी ग़ज़ल किसी भी होंठ पर हो
दिल में उसे मेरे ही रहना है ,,अख्तर
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