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18 अक्तूबर 2015

कवि ,,साहित्यकार की कोई ज़ात ,,कोई धर्म ,,कोई समाज ,,कोई सियासी पार्टी नहीं होती

कवि ,,साहित्यकार की कोई ज़ात ,,कोई धर्म ,,कोई समाज ,,कोई सियासी पार्टी नहीं होती ,,कवि ,,साहित्यकार की सोच ऊँची उड़ान की होती है ,,निष्पक्ष होती है ,,राष्ट्रभक्ति से ,,राष्ट्र के लोगों की समस्याओ से जुडी होती है ,,कवि साहित्यकारों की सोच में देश और देश की समस्याएं होती है ,,देश का मान ,,सम्मान और देश की समस्याओ का समाधान होता है ,,यह निर्भीक ,,निडर होते है ,,पत्रकार बिकाऊ हो सकते है ,,लेकिन उच्च वर्गीय साहित्यकार ,,कवि बिकाऊ नहीं होते ,,वोह अपने इरादो के प्रति मज़बूत होते है ,,,,,,,इसीलिए अभी वर्तमान में देश में जो कुछ भी चल रहा है ,,देश के जो वर्तमान नफरत फैलाने के हालत है ,,,देश में गरीबी ,,भुखमरी ,,महंगाई के मुद्दो को जिस तरह से नज़र अंदाज़ किया जा रहा है ,,उसका विरोध करने के लिए लिखते लिखते थक जाने के बाद राष्ट्र हित में जब देश के पत्रकारों ,,टी वी रिपोर्टरों ने नहीं सोचा ,,जब देश के प्रधानमंत्री ,,विधायक ,,सांसदों ने नहीं सोचा ,,पार्टियो ने नहीं सोचा तो फिर साहित्य सम्मान लौटाने का फार्मूला ऐसी सरकार ,,ऐसे खामोश विपक्ष ,,,ऐसी नफरत वाली सोच ,,ऐसी अराजक और महंगाई वाली सोच के समर्थको को मुंह पर तमाचा है ,,,,,जवाब में कुछ लोगों का एक दर्द है जिसका में समर्थन करता हूँ ,,,वोह कहते है के कश्मीर से जब पंडितो को खदेड़ा गया ,,उन्हें मारा गया ,,गोधरा जब हुआ तब भी इन साहित्यकारों को ऐसी ही तत्परता दिखाना चाहिए थी वोह बात अलग है कश्मीर में पंडित भाइयो को अल्पसंख्यको का दर्जा है ,,पेंशन है ,,,सुविधाये है फिर अब तो वहां भाजपा समर्थित सरकार है ,,केंद्र में भी हमारी अपनी ज़िम्मेदार सरकार है ऐसे में कश्मीर के पंडितों के पुनर्वास और कल्याण के लिए उनकी सुरक्षा के लिए कश्मीर में वापसी के लिए एक पुख्ता व्यवस्था ,,पुख्ता क़ानून होना चाहिए ,,ज़ुल्म ज़्यादती किसी के भी खिलाफ हो उसे जाति ,,धर्म ,,समाज ,,सियासत के ऐतेबार से नहीं देखना चाहिए ,,,ज़ुल्म सिर्फ ज़ुल्म होता है वोह गोधरा का हो ,,कश्मीर का हो ,,गुजरात का हो ,,दादरी का हो ,,कहीं का भी हो किसी का भी हो इसका खुले मन से विरोध करना चाहिए और वर्तमान साहित्यकारों ,,कवियों ने सरकार को जो जगाने ,,चिंतन करने के लिए व्यवस्था की है ,,सम्मान लौटाकर सरकार को जगाने की कोशिश की है यह बदस्तूर खेल सहित दूसरे सम्मानित लोगों द्वारा भी हर ज़ुल्म के मुद्दे पर किया जाना चाहिए ,,ताकि सरकार को अच्छाई ,,बुराई का अहसास हो सकै ,,वर्तमान हालातो में जब पत्रकार बिकाऊ हो गए है ,,एक तरफा तस्वीर रिश्वत लेकर दिखा रहे है ,,,सत्ता पक्ष के लोग सत्ता बचाने के लिए सत्ता के खिलाफ बोलते नहीं है ,,प्रतिपक्ष का विरोध न्यायसंगत नहीं होता सिर्फ सियासी वोटो की राजनीति का दिखावा मात्र होता है ,,ऐसे में देश ग़र्क़ में जा रहा है अच्छाई ,,बुराई की तमीज़ नहीं बची है ,,सरकारे ,,ज़ुल्म ज़्यादती और इसके समर्थन पर नंगा नाच कर रही है जबकि प्रतिपक्ष ऐसे में सिर्फ अगले पांच साल बाद चुनावी मुद्दे तलाशने की कोशिश में प्रतीपक्ष की सभी मर्यादाये भूल गया है ऐसे में ,,देश के साहित्यकारों और कवियों का पुरस्कार लौटाकर देश की सरकार और जनता ,,प्रतिपक्ष के जन जागरण का जो काम किया जा रहा है ,,बेशर्म बिकाऊ मिडिया को आयना दिखाने का जो काम किया जा रहा है वोह देश के नवनिर्माण और शोषण से मुक्ति की तरफ पहला न्याय संगत क़दम है ,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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