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15 सितंबर 2015

मिलिए जनाब अबुल हसन से, एक ऑटो रिक्शा चलाने वाला जिसका दिल किसी राजा

मिलिए जनाब अबुल हसन से, एक ऑटो रिक्शा चलाने वाला जिसका दिल किसी राजा से भी रईस है. वो ग़रीबों, मरीज़ों, ज़ईफ़ों को अपने ऑटो में मुफ्त में सफर कराते हैं. वो लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार अपने पैसों से करते हैं, वो रोज़ आना 4 ग़रीबों को अपने पैसे से खाना खिलाते हैं और रमज़ान में ये गिनती 20 तक हो जाती है. यही नहीं, हर साल वो 10 ग़रीब बच्चों को उनकी तालीमी फीस के लिए 1000 रुपये देते हैं और साथ हैं इम्तिहान में प्रथम आने वाले 10 ग़रीब बच्चों को प्रतिभा पुरूस्कार भी देते हैं. वो लोगों से कपडे जमा करके ग़रीबो और मिस्कीनों तक पहुंचाते हैं. उनके ऑटो में हमेशा थोड़ा पेट्रोल अलगसे रखा रहता है ताकि रस्ते में किसी का तेल खत्म होने पर उसकी मदद की जा सके और साथ ही गर्मियों में ठन्डे पानी का कैन भी उनके ऑटो में रहता है प्यासों की प्यास बुझाने के लिए. वो सड़क पर मौजूद गढ्ढों को खुद ही भर देते हैं मिटटी से और बेहूदा और गुमरहकन पोस्टर/ होर्डिंग को खुद ही faad देते हैं. अबुल हसन कहते हैं की "मैं मानता हूँ की इंसानो की खिदमत करने के लिए किसी पद की ज़रूरत नहीं है और इसी तरह किसी की मदद करने के लिए अमीर होने की ज़रूरत नहीं बस आपके पास एक दयालु हिर्दय होना चाहिए. अबुल हसन तेलंगाना के रहने वाले हैं और मानव सेवा को सबसे बड़ा काम मानते हैं, उनकी आय ऑटो से और अपने मकान के किराए से होती है पर उनका खर्च दर्जनो के लिए होता है क्योंकि उनका दिल बड़ा है, काश हम सब का दिल भी ऐसा हो जाता तो कोई भूका नहीं सोता... आगे बढ़िए, अच्छा काम करने के लिए अमीर या मशहूर होना ज़रूरी नहीं है. अमीर तो बहुत होंगे पर इनसे अमीर बहुत काम ही

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