आपका-अख्तर खान

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21 सितंबर 2015

वापस मेरे,,,,,,,,,,,,,


ज्यादा की ख्वाहिश नहीं,बस
वापस मेरे अरमान चाहिए साहब
उड़ना चाहा था कभी मैंने भी,बस
मुझे अब वही उड़ान चाहिए साहब
हक़ ही माँगा है मैंने अपना,बस
मुझे मेरी पहचान चाहिए साहब
घुट कर जीना बहुत हो गया,बस
वापस मेरी अब जान चाहिए साहब
सब सहते सहते खो गई जो,बस
वो ही मेरी मुस्कान चाहिए साहब

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