आपका-अख्तर खान

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20 सितंबर 2015

ताल्लुकात में कैसे दरार पड़ती है ,

सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे,
जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे !
कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ,
परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे !
ताल्लुकात में कैसे दरार पड़ती है ,
दिखा दिया किसी कमज़र्फ ने छलक के मुझे !
हमें खुद अपने सितारे तलाशने होंगे ,
ये एक जुगनू ने समझा दिया चमक के मुझे !
बहुत सी नज़रें हमारी तरफ हैं महफ़िल में ,
इशारा कर दिया उसने ज़रा सरक के मुझे !
मैं देर रात गए जब भी घर पहुँचता हूँ ,
वो देखती है बहुत छान के फटक के मुझे !!
(जनाब राहत इन्दौरी)

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