आपका-अख्तर खान

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19 सितंबर 2015

तेरे बगैर

हँस के हर एक गम को मैं सहता रहा तेरे बगैर
रात भर तनहाई में जलता रहा तेरे बगैर

फूल सा बिस्तर मुझे चुभता है काँटों की तरह
चाँदनी से ये बदन जलता रहा तेरे बगैर

मयकदे मे अब नहीं है कैफ व मस्ती व सुरूर
हाथ में सागर लिए फिरता रहा तेरे बगैर

उफ ये नशा-ए-हिज्र ये सरगोशी-ए-बाद-ए-सबा
रातभर मैं करवटे लेता रहा तेरे बगैर

ये मेरी तनहाइयाँ डसती है नागिन की तरह
आरिफ़ ये गम-ए-दिल है सुलगता रहा तेरे बगैर

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