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27 सितंबर 2015

मांसाहार और शाकाहार पर बहस बेवजह छिड़ती है

मांसाहार और शाकाहार पर बहस बेवजह छिड़ती है ,,जीव हत्या जीव हत्या होती है चाहे संजीव वनस्पति की हो चाहे दही में पल रहे हज़ारो कीड़ो को एक साथ खाने की हो ,,कुछ लोग जीव हत्या चाहे वनस्पति के रूप में करते हो चाहे दही के कीड़ो के रूप में उसके भक्षक हो ,,चाहे ज़िंदा लोगों की निर्मम हत्या करते हो ,,फसादात भड़काते हो ,,दुसरो के आहार भोजन पर अनावश्यक उंगलिया उठाते है ,,,उठाना भी चाहिए जब कोई किसी की पवित्र होली ,,पवित्र दिवाली को निशाना बनाएगा तो फिर जवाब तो सुन्ना ही होगा ,,दक्षिणी भारत के मंदिरो में जानवरो की बलि होती है वोह सही हो सकती है ,,भगवान राम हिरन को मारने के लिए निकलते है वोह क्षत्रिय हो सकते है ,,,,लोग देश में भ्रष्टाचार ,,मिलावट ,,,कालाबाज़ारी फैला सकते है ,,देश को ग़र्क़ में ला सकते है दवाओ के नाम पर लूट मच सकती है डेंगू जैसी दूसरी कई महामारियां है जिनपर कोई चिंतन नहीं होता लेकिन शाकाहारी ,,मांसाहारी को महामारी समझकर लम्बी बहस होती है ,,में मांसाहारी भाइयो से अगर अपील करू के केवल एक सप्ताह ,,एक सप्ताह मांस ,मछली ,,अंडे ,,,मुर्गा ,,खाना बंद कर दो ,,यक़ीनन देश में हाहाकार मचेगा ,,देश के करोड़ों लोग बेरोज़गार होंगे ,,दाल सब्ज़ी दो हज़ार रूपये किलों से कम में नहीं बिकेगी और यह जानवर सड़को पर नहीं घरों में भी घुसेंगे सड़को पर आदमी नहीं सिर्फ जानवर ही जानवर होगा ,,स्कूल के बच्चो का निकलना बंद हो जाएगा ,,जंगल खेत जो अभी केवल नील गांय से तबाह बर्बाद है उनमे खाने के लिए फसल का एक टुकड़ा भी नहीं होगा ,,,,,,ईश्वर ने अपना सिद्धांत बनाया है उसके सिद्धंात को में और आप नहीं बदल सकते ,,आप को नहीं खाना है मत खाइये ,,,लेकिन फिर शुद्ध शाकाहारी बनिए ,,दही वगेरा भी मत खाइये ,,ईमानदार भी बनिए ,,कालाधन मत रखिये ,,बेईमानी खान सचिव सिंघवी साहब की तरह मत करिये ,,मिलावट मत कीजिये ,,,,इधर ज़रा सोचिये तो सही जगदीश चन्द्र बसु भारतीय वैज्ञानिक जिन्होंने वनस्पति की सजीवता साबित करके खुद नोबल पुरस्कार हांसिल किया था ,,सभी धर्मो में वनस्पति से छेड़छाड़ ,,वनस्पति की हत्या भी पाप क़रार दिया गया है तो भाई फिर आखिर बता तो दे के ज़िंदा चीज़ मांस और वनस्पति में सिर्फ क्या इतना फ़र्क़ बचा है एक ज़िंदा को आप खाते है तो जायज़ दूसरे कहते है तो ना जायज़ ,,,,मारकाट ,,क़त्ले आम सभी धर्मो की गाथाओ में है ,,,पांडवो ने कौरवों का वध किया ,,कौरवों ने अभिमन्यु को बेदर्दी से मारा ,,रामजी हिरण को मारने गए ,,खुद शिव भगवान ने पहले पुत्र का गाला काटा फिर जीव हत्या हाथी की कर उसकी गर्दन बेटे के लगा दी यह धार्मिक वृतांत है जिसके पीछे एस फ़लसफ़े है जो हम और आप नहीं समझ सकते सब ईश्वर की लीला है लेकिन जो हुआ उसका हम अपने तरीके से अगर अर्थ लगाएंगे तो अनर्थ ही होगा इसलिए धर्म ,,मज़हब की भावनाओ को क्यों छेड़ते हो यार , सभी के धर्म खुद को प्रिय होना चाहिए हिन्दू को हिन्दू ,,मुस्लिम को मुस्लिम ,जेन को जेन ,,बौद्ध को बौद्ध ,,सिक्ख को सिक्ख ,,,ईसाई को ईसाई होना चाहिए लेकिन वोह इंसान हो वोह राष्ट्रिय हो तो हम उसका आदर करेंगे चाहे किसी भी धर्म का हो ,,अगर मेरे धर्म के लोग दुसरो के धर्म को गाली देते है तो में उनसे नफरत करता हूँ ,,अगर मेरे धर्म के लोग देश के खिलाफ किसी साज़िश ,,किसी झगड़े में शामिल होते है तो में उनसे नफरत करता हूँ ,लेकिन सभी धर्म के लोग भी एस ही हो अपना धर्म सुरक्षित रखे लेकिन दूसरे के धर्म को गाली न दे मेरे भाई यह धर्म परम्पराए हमारी समझ से बाहर है हम इनमे परिवर्तन नहीं कर सकते सिर्फ और सिर्फ पालन ही कर सकते है ,,अगर अपना अपना धर्म हम समझ ले तो सच खुशहाली ,,खुशहाली होगी मेरे भाई ,,धर्म सिर्फ एक है इंसानियत इंसानियत इंसानियत ,,भाईचारा भाईचारा भाईचारा ,,सद्भावना सद्भावना सद्भावना कर्म एक है सिर्फ राष्ट्रीयता राष्ट्रीयता राष्ट्रीयता ,,,क्यों अपने विचार दूसरों पर थोपकर अपनी प्रतिभा जिसका इस्तेमाल राष्ट्र निर्माण में क्या जा सकता है इसमें यूँ ही हम खराब करते है तो भाइयो आपका धर्म मज़हब सब आदरणीय सम्मानीय है आपका खान पान सम्मानीय है ,,हम सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीय बने ,,देश के तिरंगे की रक्षा करे ,,हम मिलकर भूख ,,गरीबी ,,भ्रष्टाचार ,,अनाचार ,,अत्याचार ,,महिलाओं की सुरक्षा ,,,,देश के आर्थिक विकास ,,कालाबाजारियों ,,मिलावटखोरों के खिलाफ लड़े ,,हमारे देश को एक आदर्श हिन्दुस्तान ,,मेरा भारत महान बनाने के लिए लड़े ,,यूँ ही फ़िज़ूल बातों पर बहस बाज़ी कर खुद अपना वक़्त बर्बाद ना करे प्लीज़ प्लीज़ ,,
एक मांसाहारी चिंतक ने कुछ लिखा है जो में पेश कर रहा हूँ ,,,,,,,,,
अक्सर कुछ लोगों के मन में यह आता ही होगा कि जानवरों की हत्या एक क्रूर और निर्दयतापूर्ण कार्य है तो क्यूँ लोग मांस खाते हैं? जहाँ तक मेरा सवाल है मैं एक मांसाहारी हूँ. मुझसे मेरे परिवार के लोग और जानने वाले (जो शाकाहारी हैं) अक्सर कहते हैं कि आप माँस खाते हो और बेज़ुबान जानवरों पर अत्याचार करके जानवरों के अधिकारों का हनन करते हो.
शाकाहार ने अब संसार भर में एक आन्दोलन का रूप ले लिया है, बहुत से लोग तो इसको जानवरों के अधिकार से जोड़ते हैं. निसंदेह दुनिया में माँसाहारों की एक बड़ी संख्या है और अन्य लोग मांसाहार को जानवरों के अधिकार (जानवराधिकार) का हनन मानते हैं.
मेरा मानना है कि इंसानियत का यह तकाज़ा है कि इन्सान सभी जीव और प्राणी से दया का भावः रखे| साथ ही मेरा मानना यह भी है कि ईश्वर ने पृथ्वी, पेड़-पौधे और छोटे बड़े हर प्रकार के जीव-जंतुओं को हमारे लाभ के लिए पैदा किया गया है. अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम ईश्वर की दी हुई अमानत और नेमत के रूप में मौजूद प्रत्येक स्रोत को किस प्रकार उचित रूप से इस्तेमाल करते है.
आइये इस पहलू पर और इसके तथ्यों पर और जानकारी हासिल की जाये...
1- माँस पौष्टिक आहार है और प्रोटीन से भरपूर है
माँस उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत है. इसमें आठों अमीनों असिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति खाने से पूरी हो सकती है. गोश्त यानि माँस में लोहा, विटामिन बी वन और नियासिन भी पाए जाते हैं (पढ़े- कक्षा दस और बारह की पुस्तकें)
2- इन्सान के दांतों में दो प्रकार की क्षमता है
अगर आप घांस-फूस खाने वाले जानवर जैसे बकरी, भेड़ और गाय वगैरह के तो आप उन सभी में समानता पाएंगे. इन सभी जानवरों के चपटे दंत होते हैं यानि जो केवल घांस-फूस खाने के लिए उपयुक्त होते हैं. यदि आप मांसाहारी जानवरों जैसे शेर, चीता और बाघ आदि के दंत देखें तो उनमें नुकीले दंत भी पाएंगे जो कि माँस खाने में मदद करते हैं. यदि आप अपने अर्थात इन्सान के दांतों का अध्ययन करें तो आप पाएंगे हमारे दांत नुकीले और चपटे दोनों प्रकार के हैं. इस प्रकार वे शाक और माँस दोनों खाने में सक्षम हैं.
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता तो उसे नुकीले दांत क्यूँ देता. यह इस बात का सबूत है कि उसने हमें माँस और सब्जी दोनों खाने की इजाज़त दी है.
3- इन्सान माँस और सब्जियां दोनों पचा सकता है
शाकाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल केवल सब्जियां ही पचा सकते है और मांसाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल माँस पचाने में सक्षम है लेकिन इन्सान का पाचन तंत्र दोनों को पचा सकता है.
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमको केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता तो उसे हमें ऐसा पाचनतंत्र क्यूँ देता जो माँस और सब्जी दोनों पचा सकता है.
4- एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी हो सकता है
एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक अच्छा मुसलमान हो सकता है. मांसाहारी होना एक मुसलमान के लिए ज़रूरी नहीं.
5- पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की अनुमति देता है
पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की इजाज़त देता है. कुरआन की आयतें इस बात की सबूत है-
"ऐ ईमान वालों, प्रत्येक कर्तव्य का निर्वाह करो| तुम्हारे लिए चौपाये जानवर जायज़ है, केवल उनको छोड़कर जिनका उल्लेख किया गया है" (कुरआन 5:1)
"रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया जिसमें तुम्हारे लिए गर्मी का सामान (वस्त्र) भी और अन्य कितने लाभ. उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो" (कुरआन 16:5)
"और मवेशियों में भी तुम्हारे लिए ज्ञानवर्धक उदहारण हैं. उनके शरीर के अन्दर हम तुम्हारे पीने के लिए दूध पैदा करते हैं और इसके अलावा उनमें तुम्हारे लिए अनेक लाभ हैं, और जिनका माँस तुम प्रयोग करते हो" (कुरआन 23:21)
6- हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ मांसाहार की अनुमति देतें है !
बहुत से हिन्दू शुद्ध शाकाहारी हैं. उनका विचार है कि माँस सेवन धर्म विरुद्ध है. लेकिन सच ये है कि हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ मांसाहार की इजाज़त देतें है. ग्रन्थों में उनका ज़िक्र है जो माँस खाते थे.
A) हिन्दू क़ानून पुस्तक मनु स्मृति के अध्याय 5 सूत्र 30 में वर्णन है कि-
"वे जो उनका माँस खाते है जो खाने योग्य हैं, अगरचे वो कोई अपराध नहीं करते. अगरचे वे ऐसा रोज़ करते हो क्यूंकि स्वयं ईश्वर ने कुछ को खाने और कुछ को खाए जाने के लिए पैदा किया है"
(B) मनुस्मृति में आगे अध्याय 5 सूत्र 31 में आता है-
"माँस खाना बलिदान के लिए उचित है, इसे दैवी प्रथा के अनुसार देवताओं का नियम कहा जाता है"
(C) आगे अध्याय 5 सूत्र 39 और 40 में कहा गया है कि -
"स्वयं ईश्वर ने बलि के जानवरों को बलि के लिए पैदा किया, अतः बलि के उद्देश्य से की गई हत्या, हत्या नहीं"
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 88 में धर्मराज युधिष्ठर और पितामह के मध्य वार्तालाप का उल्लेख किया गया है कि कौन से भोजन पूर्वजों को शांति पहुँचाने हेतु उनके श्राद्ध के समय दान करने चाहिए? प्रसंग इस प्रकार है -
"युधिष्ठिर ने कहा, "हे महाबली!मुझे बताईये कि कौन सी वस्तु जिसको यदि मृत पूर्वजों को भेट की जाये तो उनको शांति मिले? कौन सा हव्य सदैव रहेगा ? और वह क्या जिसको यदि सदैव पेश किया जाये तो अनंत हो जाये?"
भीष्म ने कहा, "बात सुनो, हे युधिष्ठिर कि वे कौन सी हवी है जो श्राद्ध रीति के मध्य भेंट करना उचित है और कौन से फल है जो प्रत्येक से जुडें हैं| और श्राद्ध के समय शीशम, बीज, चावल, बाजरा, माश, पानी, जड़ और फल भेंट किया जाये तो पूर्वजो को एक माह तक शांति मिलती है. यदि मछली भेंट की जाये तो यह उन्हें दो माह तक राहत देती है. भेंड का माँस तीन माह तक उन्हें शांति देता है| खरगोश का माँस चार माह तक, बकरी का माँस पांच माह और सूअर का माँस छह माह तक, पक्षियों का माँस सात माह तक, पृष्ठा नामक हिरन से वे आठ माह तक, रुरु नामक हिरन के माँस से वे नौ माह तक शांति में रहते हैं. "" के माँस से दस माह तक, भैस के माँस से ग्यारह माह तक और . प्यास यदि उन्हें घी में मिला कर दान किया जाये यह पूर्वजों के लिए क्लासका नाम की जड़ी-बूटी, कंचना पुष्प की पत्तियां और लाल बकरी का माँस भेंट किया जाये तो वह भी अनंत सुखदायी होता है. अतः यह स्वाभाविक है कि यदि तुम अपने पूर्वजों को अनंत काल तक सुख-शांति देना चाहते हो तो तुम्हें लाल बकरी का माँस भेंट करना चाहिए"

8- पेड़ पौधों में भी जीवन
कुछ धर्मों ने शुद्ध शाकाहार अपना लिया क्यूंकि वे पूर्णरूप से जीव-हत्या से विरुद्ध है. अतीत में लोगों का विचार था कि पौधों में जीवन नहीं होता. आज यह विश्वव्यापी सत्य है कि पौधों में भी जीवन होता है. अतः जीव हत्या के सम्बन्ध में उनका तर्क शुद्ध शाकाहारी होकर भी पूरा नहीं होता.
9- पौधों को भी पीड़ा होती है
वे आगे तर्क देते हैं कि पौधों को पीड़ा महसूस नहीं होती, अतः पौधों को मारना जानवरों को मारने की अपेक्षा कम अपराध है. आज विज्ञानं कहता है कि पौधे भी पीड़ा महसूस करते हैं लेकिन उनकी चीख इंसानों के द्वारा नहीं सुनी जा सकती. इसका कारण यह है कि मनुष्य में आवाज़ सुनने की अक्षमता जो श्रुत सीमा में नहीं आते अर्थात 20 हर्ट्ज़ से 20,000 हर्ट्ज़ तक इस सीमा के नीचे या ऊपर पड़ने वाली किसी भी वस्तु की आवाज़ मनुष्य नहीं सुन सकता है| एक कुत्ते में 40,000 हर्ट्ज़ तक सुनने की क्षमता है. इसी प्रकार खामोश कुत्ते की ध्वनि की लहर संख्या 20,000 से अधिक और 40,000 हर्ट्ज़ से कम होती है. इन ध्वनियों को केवल कुत्ते ही सुन सकते हैं, मनुष्य नहीं. एक कुत्ता अपने मालिक की सीटी पहचानता है और उसके पास पहुँच जाता है| अमेरिका के एक किसान ने एक मशीन का अविष्कार किया जो पौधे की चीख को ऊँची आवाज़ में परिवर्तित करती है जिसे मनुष्य सुन सकता है. जब कभी पौधे पानी के लिए चिल्लाते तो उस किसान को तुंरत ज्ञान हो जाता था. वर्तमान के अध्ययन इस तथ्य को उजागर करते है कि पौधे भी पीड़ा, दुःख-सुख का अनुभव करते हैं और वे चिल्लाते भी हैं.
10- दो इन्द्रियों से वंचित प्राणी की हत्या कम अपराध नहीं !!!
एक बार एक शाकाहारी ने तर्क दिया कि पौधों में दो अथवा तीन इन्द्रियाँ होती है जबकि जानवरों में पॉँच होती हैं| अतः पौधों की हत्या जानवरों की हत्या के मुक़ाबले छोटा अपराध है.
"कल्पना करें कि अगर आप का भाई पैदाईशी गूंगा और बहरा है, दुसरे मनुष्य के मुक़ाबले उनमें दो इन्द्रियाँ कम हैं. वह जवान होता है और कोई उसकी हत्या कर देता है तो क्या आप न्यायधीश से कहेंगे कि वह हत्या करने वाले (दोषी) को कम दंड दें क्यूंकि आपके भाई की दो इन्द्रियाँ कम हैं. वास्तव में आप ऐसा नहीं कहेंगे. वास्तव में आपको यह कहना चाहिए उस अपराधी ने एक निर्दोष की हत्या की है और न्यायधीश को उसे कड़ी से कड़ी सज़ा देनी चाहिए."

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुंदर तथा प्रभावी लेख. मैं आपकी सारी बातों से सहमत हूँ. सारे तर्क तथा तथ्य एकदम सटीक हैं. किसको क्या खाना है इसकी स्वतंत्रता इंसान को होनी चाहिए. दूध भी तो किसी पशु के शरीर का हिस्सा है. आपके लेख हमेशा ही प्रेरणा दायक तथा जानकारीपरक होते हैं.

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