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23 अगस्त 2015

शुरूआती जीवन औरंगजेब


औरंगजेब का जन्म ४ नवम्बर १६१८ को दाहोद, गुजरात में हुआ था। वो शाहजहाँ और मुमताज़ की छठी संतान और तीसरा बेटा था। उसके पिता उस समय गुजरात के सूबेदार थे। जून १६२६ में जब उसके पिता द्वारा किया गया विद्रोह असफल हो गया तो औरंगजेब और उसके भाई दारा शिकोह को उनके दादा जहाँगीर के लाहौर वाले दरबार में नूर जहाँ द्वारा बंधक बना कर रखा गया। २६ फ़रवरी १६२८ को जब शाहजहाँ को मुग़ल सम्राट घोषित किया गया तब औरंगजेब आगरा किले में अपने माता पिता के साथ रहने के लिए वापस लौटा। यहीं पर औरंगजेब ने अरबी और फारसी की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की।
औरंगजेब पवित्र जीवन व्यतीत करता था। अपने व्यक्तिगत जीवन में वह एक आदर्श व्यक्ति था। वह उन सब दुर्गुणों से सर्वत्र मुक्त था, जो एशिया के राजाओं में सामन्यतः थे। वह यति-जीवन जीता था। खाने-पीने, वेश-भूषा और जीवन की अन्य सभी-सुविधाओं में वह संयम बरतता था। प्रशासन के भारी काम में व्यस्त रहते हुए भी वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए क़ुरान की नकल करके और टोपियाँ सीकर कुछ पैसा कमाने का समय निकाल लेता था।
औरंगजेब ने बनवाया था बालाजी मंदिर!
वैसे तो मुगल शासक औरंगजेब हिंदुओं के मंदिर तुड़वाने और धार्मिक कट्टरता के लिए बदनाम रहा। लेकिन भगवान श्रीराम की तपोस्थली चित्रकूट के मंदाकिनी तट पर 'बालाजी मंदिर' बनवाकर उसने धार्मिक सौहार्द की मिसाल भी कायम की थी। इतना ही नहीं हिंदू देवता की पूजा-अर्चना में कोई बाधा न आए इसलिए उसने इस मंदिर को 330 बीघा बे-लगानी कृषि भूमि भी दान की थी।
उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के प्रसिद्ध तीर्थस्थल चित्रकूट में भगवान श्रीराम ने अपने बारह वर्ष वनवास के बिताए थे। इसी से यह हिंदू समाज के लिए विशेष श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। यहां हर माह की अमावस्या को देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है। यहां कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक मंदिर हैं जो धार्मिक सद्भावना की मिसाल कायम किए हैं। इनमें से एक है मंदाकिनी नदी के किनारे गोपीपुरम का बालाजी मंदिर।
इसका निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने 328 साल पहले सन् 1683 में कराया था। जिसके अभिलेखीय प्रमाण अब भी मौजूद हैं। इतना ही नहीं इस मंदिर में विराजमान भगवान 'ठाकुर जी' की पूजा-अर्चना में कोई बाधा न आए इसके लिए आठ गांवों की 330 बीघा कृषि भूमि दान कर लगान (भूमि कर) भी माफ किया था।

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