मेरा शहर कुछ बदला बदला सा है ,,,,सरकारी दफ्तरों में तो क़रीब दो हफ्तों
से कोई कामकाज नहीं था ,,आने जाने वालों को एक ही जवाब था ,,पन्द्राह
अगस्त को मुख्यमंत्री आ रही है ,,तय्यरियों में लगे है ,,फिर आना ,अभी काम
नहीं होगा ,,खेर मुख्यमंत्री भी आ गयी ,,एक और बदलाव लगा ,,मेरा यह शहर
जहां मुख्यमंत्री को नही जाना था ,,वहां गंदा ,,,,टूटी फूटी सड़को वाला
,,बेतरतीब सा लगा ,,लेकिन जहां मुख्यमंत्री को आना था वहां कुछ जगह पर तो
आम आदमी की आवाजाही बंद कर दी गई थी ,,,कुछ कार्यक्रम जो आम आदमी
के थे वहां आम आदमी की एन्ट्री ही नहीं थी ,,,,सड़के साफ़ सुथरी थी ,,,सड़को
से आवारा जानवरो का जमावड़ा गायब था ,,व्यवस्थित ट्रेफिक व्यवस्था थी
,,वाहनो की बेतरतीब आवाजाही सुव्यवस्थित थी ,,हर शख्स खुद को सुरक्षित
महसूस कर रहा था ,,,,,,,,चौराहे सजे संवरे थे ,,,,,,,,,,,,टूटी सड़को के
गद्दे भरे हुए थे ,वाहन पार्किंग व्यवस्थित थे ,,चौराहो पर पुलिस की लम्पट
गिरी ,,लूटखसोट का खतरा नहीं था ,,,,आम आदमी सोचता था के काश कोटा की सड़के
,,चौराहे ,,ट्रेफिक व्यवस्था ,,,,रोज़ इसी तरह से हो जाए तो कोटा जन्नत बन
जाए ,,आखिर क्या फ़र्क़ है एक आदमी ,,एक खास आदमी में जो कोटा शहर एक दिन के
लिए इतना बदल गया ,,इतना सुधर गया ,,,,,,,,,,,,क्या वोह सांसद ,,विधायक
,,मंत्री और इतने अधिकारीयों के होते हुए हमेशा के लिए सुधर नहीं सकता
,,,,,,,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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