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17 अगस्त 2015

झूठे निकले रोहतक सिस्टर्स के आरोप, पुलिस ने कोर्ट में पेश किया चालान योगेन्द्र सागर Aug 18, 2015, 02:37 AM IST Print Decrease Font Increase Font Email Google Plus Twitter Facebook COMMENTS 0 1 of 6 Next पूजा और आरती पूजा और आरती रोहतक। चलती रोडवेज बस में कथित छेड़छाड़ के मामले में सोनीपत निवासी दोनों बहनों की ओर से तीन लड़कों पर लगाए गए आरोप संदेह के घेरे में गए हैं। वहीं, 28 नवंबर 2014 को हुई इस घटना का वीडियो बनाने वाली महिला ने भी छेड़छाड़ की बात से इंकार कर दिया है। उसने यह भी कहा है कि घटना का वीडियो बनाने के लिए मोबाइल एक बहन ने ही दिया था। यह खुलासा पुलिस की ओर से अदालत में पेश किए गए चालान में हुआ है। पुलिस ने यह चालान पॉलीग्राफिक टेस्ट, फॉरेंसिक फिजियोलॉजिकल असेसमेंट और अन्य जांच के आधार पर तैयार किया है। पुलिस ने पॉलीग्राफ टेस्ट में आरोपी लड़कों के जवाब ट्रुथफुल बताए हैं, जबकि दोनों बहनों के जवाब भ्रामक और कपटपूर्ण। मामले से जुड़े पांचों लोगों का पॉलीग्राफिक टेस्ट और फोरेंसिक फिजियोलॉजिकल असेसमेंट 18 22 दिसंबर को हुआ था। दोनों लड़कियों ने टेस्ट में वीडियो बनाने के लिए मोबाइल देने से इंकार किया है। कितना सही? न्यूरोलॉजीमें होने वाले ईईजी टेस्ट की तरह इस टेस्ट में भी सवाल पूछते हुए आरोपी या संदिग्ध के ब्लड प्रेशर, पल्स रेट, रेस्पिरेशन और मसल्स मूमेंट को चेक किया जाता है। ये मूमेंट ईसीजी की तरह ग्राफ बनाती जाती है। संदिग्ध में आए फिजियोलॉजिकल चेंज से बने ग्राफ से पता लगाते हैं कि संदिग्ध सच बोल रहा है या नहीं। इसकी एक्यूरेसी 90% रहती है। ...लेकिन, कोर्ट नहीं मानता पॉलीग्राफिक टेस्ट जांचएजेंसियां सच उगलवाने के लिए लाइट डिटेक्शन टेस्ट (पोलिग्राफिक), नारको और ब्रेन मेपिंग का सहारा लेती हैं। हिमाचल प्रदेश स्टेट फोरेंसिक साइंस लैब, धर्मशाला के असिस्टेंट डायरेक्टर और पीजीआई के पूर्व न्यूरो साइंटिस्ट डॉ. सुरेंद्र कुमार पाल की मानें तो इन तीनों टेस्ट में लाइट डिटेक्शन टेस्ट की एक्यूरेसी सबसे ज्यादा है। लेकिन, कोर्ट में इसकी अहमियत नहीं है। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल रहीम तेलगी के केस में इस टेस्ट की कानूनी वैधता पर सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि ये तीनों ही टेस्ट संविधान की धारा 20 (3) का उल्लंघन है।

पूजा और आरती
पूजा और आरती
रोहतक। चलती रोडवेज बस में कथित छेड़छाड़ के मामले में सोनीपत निवासी दोनों बहनों की ओर से तीन लड़कों पर लगाए गए आरोप संदेह के घेरे में गए हैं। वहीं, 28 नवंबर 2014 को हुई इस घटना का वीडियो बनाने वाली महिला ने भी छेड़छाड़ की बात से इंकार कर दिया है। उसने यह भी कहा है कि घटना का वीडियो बनाने के लिए मोबाइल एक बहन ने ही दिया था। यह खुलासा पुलिस की ओर से अदालत में पेश किए गए चालान में हुआ है। पुलिस ने यह चालान पॉलीग्राफिक टेस्ट, फॉरेंसिक फिजियोलॉजिकल असेसमेंट और अन्य जांच के आधार पर तैयार किया है। पुलिस ने पॉलीग्राफ टेस्ट में आरोपी लड़कों के जवाब ट्रुथफुल बताए हैं, जबकि दोनों बहनों के जवाब भ्रामक और कपटपूर्ण। मामले से जुड़े पांचों लोगों का पॉलीग्राफिक टेस्ट और फोरेंसिक फिजियोलॉजिकल असेसमेंट 18 22 दिसंबर को हुआ था। दोनों लड़कियों ने टेस्ट में वीडियो बनाने के लिए मोबाइल देने से इंकार किया है।
कितना सही?
न्यूरोलॉजीमें होने वाले ईईजी टेस्ट की तरह इस टेस्ट में भी सवाल पूछते हुए आरोपी या संदिग्ध के ब्लड प्रेशर, पल्स रेट, रेस्पिरेशन और मसल्स मूमेंट को चेक किया जाता है। ये मूमेंट ईसीजी की तरह ग्राफ बनाती जाती है। संदिग्ध में आए फिजियोलॉजिकल चेंज से बने ग्राफ से पता लगाते हैं कि संदिग्ध सच बोल रहा है या नहीं। इसकी एक्यूरेसी 90% रहती है।
...लेकिन, कोर्ट नहीं मानता पॉलीग्राफिक टेस्ट
जांचएजेंसियां सच उगलवाने के लिए लाइट डिटेक्शन टेस्ट (पोलिग्राफिक), नारको और ब्रेन मेपिंग का सहारा लेती हैं। हिमाचल प्रदेश स्टेट फोरेंसिक साइंस लैब, धर्मशाला के असिस्टेंट डायरेक्टर और पीजीआई के पूर्व न्यूरो साइंटिस्ट डॉ. सुरेंद्र कुमार पाल की मानें तो इन तीनों टेस्ट में लाइट डिटेक्शन टेस्ट की एक्यूरेसी सबसे ज्यादा है। लेकिन, कोर्ट में इसकी अहमियत नहीं है। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल रहीम तेलगी के केस में इस टेस्ट की कानूनी वैधता पर सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि ये तीनों ही टेस्ट संविधान की धारा 20 (3) का उल्लंघन है।

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