आपका-अख्तर खान

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16 जुलाई 2015

रहता हूं किराये के घर में...

रहता हूं किराये के घर में...
रोज़ सांसों को बेच
कर किराया चुकाता
हूं....
मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी...
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं....
मिट जायेगा ये मेरा घर इक दिन...
फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं....
खुद के सहारे मैं कब्रस्तान
तक भी ना जा सकूंगा...
इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ

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