आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

23 जुलाई 2015

आज का हासिल-


न कोई शिकायत न कोई गिला है,
हमारी वफा का यही इम्तहॉ है।
जहॉ पर ज़ुबानों पे ताले लगे हों,
जिग़र का वहॉ पे लहू बोलता है।
गिरफ्तार होता कहीं इश्क में जो,
ज़मानत की फिर वो कहॉ सोंचता है।
बिछाकर पलक, उम्र सारी बिता दूँ,
अगरचे तुम्हारा यही फैसला है।
लगाकर अभी जो गये हैं ये आतिश,
वही पूछते हैं कि क्या माज़रा है।
बहारें, फज़ाएं, हवायें, चमन की,
कसम से तुम्हारे बिना बे मज़ा हैं।
कहे कोइ किस्सा, फसाना, तराना,
गज़ल ये नहीं बस मेरा आइना है।
बिछड़ते कहा तूने लम्बी उमर हो,
न जाने दुआ है कि ये बद्दुआ है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...